Vegetables Farming Tips: उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड जिले (Bundelkhand News) में एक ऐसा किसान है जो गोमूत्र (Gaumutra) और बेसन के घोल से खेती कर रहे हैं. वहीं इस खास तकनीक से हरी सब्जियों से लेकर सरसों तक की अच्छी पैदावार हो रही है. बता दें कि इस किसान के खेत में लगाए गए सरसों 8 फीट के हैं, जो किसानों में चर्चा का केंद्र बना हुआ है. इंडिया टुडे के डिजिटल प्लेटफॉर्म किसान तक से खास बातचीत में सफल किसान धर्मेंद्र नामदेव का कहना है कि 'गोमूत्र से फसल की अच्छी पैदावार हो रही है. फास्फोरस की कमी बेसन से दूर कर रहा है और उससे उत्पादन क्षमता भी बढ़ रही है. यह अनूठा प्रयोग काफी काम आ रहा है. झांसी जिले के रहने वाले किसान धर्मेंद्र ने बताया कि वो भिंडी, बैगन और खीरे की खेती में कर रहे हैं.' इसके अलावा वो तिलहन और दहलन की भी करते है. उन्होंने बताया कि वो केमिलक युक्त से बिल्कुल परहेज करते है, क्योंकि इससे फसलों के साथ इंसान के स्वास्थ पर बुरा असर डालती हैं.
प्रगतिशील किसान धर्मेंद्र बताते हैं कि रासायनिक उत्पादों का इस्तेमाल करने के बजाय प्राकृतिक उत्पादों का सहारा लेकर फसलों की ऐसे किस्म तैयार की है जो उनकी कमाई का बड़ा जरिया बन रही है और लोगों के आकर्षण का केंद्र भी. उन्होंने बताया कि भिंडी की बड़े स्तर पर झांसी में खेती की है और सबसे खास बात है कि इस खेती के लिए उन्होंने सिर्फ गोमूत्र का ही इस्तेमाल किया है. फसलों के लिए जो फास्फोरस का इस्तेमाल करते हैं उसकी जगह बेसन के घोल का इस्तेमाल करना शुरू किया और इसके चमत्कारिक परिणाम सामने आए. धर्मेंद्र ने बताया कि उनके इस तरह के अलग प्रयोग और उसकी सफलता को देखते हुए झांसी के कृषि विश्वविद्यालय ने अपने परिसर में खेती करने का आमंत्रण दिया है. उन्होंने बताया कि अस विधि से खेती करने से फसलों पर मौसम का प्रभाव नहीं पड़ता है.
उनका दावा है कि 'मैं उत्तर प्रदेश का ऐसा पहली किसान हूं जो सिर्फ गोमूत्र और फास्फोरस के साथ नीम के तेल का इस्तेमाल कर अपने खेत की फसलों की पैदावार कर रहा है और उत्पादन भी बढ़ा रहा है. खासकर इंसानों की सेहत के लिए ऐसी सब्जियां, दलहन और तिलहन काफी लाभदायक भी साबित हो रहे हैं. बेसन सस्ता पड़ रहा है. उसकी वजह है कि आधा लीटर पानी में सिर्फ 10 ग्राम बेसन ही घोलना है और उसका छिड़काव कर देना है वह फास्फोरस से ज्यादा असरकारक साबित हो रहा है. हमारी भिंडी 20 सेंटीमीटर की है वो भी काफी मुलायम और स्वादिष्ट है.
प्राकृतिक खेती करने वाले प्रगतिशील किसान धर्मेंद्र नामदेव अपनी खास तकनीक के लिए सम्मानित भी हो चुके हैं. धर्मेंद्र बीते पांच साल से गो-आधारित प्राकृतिक खेती कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि वह अपने खेतों में केवल गौमूत्र का ही उपयोग करते हैं. वह किसी भी रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक यहां तक कि गाय के गोबर का उपयोग भी नहीं करते हैं. धर्मेंद्र ने आगे बताया कि गौमूत्र में जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के गुण मौजूद है. उनके खेत से पैदा होने वाली फसल का स्वाद काफ़ी अच्छा है. वर्तमान में उनके खेतो में बैगन, टमाटर, उड़द और मसूर की फसल है.
झांसी जिले के रहने वाले किसान धर्मेंद्र नामदेव ने बताया कि अपने खेतों में सिंचाई के पानी के साथ ही गौमूत्र का उपयोग करते हैं. एक एकड़ खेत में 35 से 40 लीटर गोमूत्र का उपयोग करते हैं. वह किसानों से देसी नस्ल के गोमूत्र को खरीदते हैं. वहीं उनकी फसलों का उत्पादन भले ही कम है, लेकिन उनकी फसल लागत भी कम है. उत्पादन कम होने के बावजूद भी किसान का मुनाफा कम नहीं होता है. उनके फसल उत्पादों में स्वाद के साथ-साथ भरपूर पोषक तत्व पाए जाते हैं.
धर्मेंद्र नामदेव ने बताया कि देसी नस्ल की गाय के गौमूत्र में नाइट्रोजन, गंधक अमोनिया, कापर, यूरिया, यूरिक एसिड, फास्फेट, सोडियम, पोटेशियम , मैग्निज, कर्बोलिक एसिड जैसे महत्वपूर्ण तत्व पाए जाते हैं. इसके अतिरिक्त लवण विटामिन ए, विटामिन बी, विटामिन सी, विटामिन डी और ई के साथ-साथ हिप्युरिक एसिड, क्रिएटनीन और स्वर्ण क्षार भी पाए जाते हैं.
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