एक तरफ नारियल की कीमतें आसमान छू रही हैं तो दूसरी ओर देश में इसकी खेती करने वाले किसानों को इसका फायदा ही नहीं मिल रहा है. किसानों ने अब सरकार से मांग की है कि उन्हें इस तरह का इंफ्रास्ट्रक्चर मुहैया कराया जाए, जो उन्हें निर्यात में मदद कर सके ताकि उनका जीवन स्तर सुधर सके. इन किसानों का कहना है कि नारियल के निर्यात में काफी संभावनाएं हैं लेकिन इस बारे में उन्हें सही जानकारी न होने की स्थिति में उनके लिए अच्छी आय हासिल कर पाना मुश्किल हो रहा है.
भारत के दक्षिण के राज्य जैसे कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल, नारियल के उत्पादन में आगे हैं. नारियल की खेती यहां के किसानों के लिए सबसे बड़ा सहारा है. किसानों का कहना है कि नारियल की शेल्फ लाइफ बहुत कम होती है. ऐसे में उन्हें इससे जुड़े निर्यात के विकल्पों के बारे में जानकारी कम है. तमिलनाडु का पोलाची देश का वह हिस्सा है जहां पर सबसे ज्यादा नारियल पैदा होता है. यहां के एक नारियल उत्पादक एक आनंदराज ने कहा कि टेंडर या कच्चे नारियल की शेल्फ लाइफ सिर्फ सात दिन की होती है. अगर इस नारियल को विदेश भेजा जाना है तो उन्हें एयरकंडीशंड कंटेनर्स में प्रिजर्व किया जाना चाहिए. उनका कहना था कि कुछ किसानों ने पहले भी दुबई में जहाज से टेंडर नारियल की शिपमेंट भेजी है. लेकिन उनका यह बिजनेस सफल नहीं हो सका.
शेल्फ लाइफ कम होने की वजह से टेंडर नारियल का निर्यात मुश्किल है. जहाज से शिपमेंट भेजने में ज्यादा समय लग जाता है. जबकि हवाई जहाज से भेजने पर इसकी लागत बढ़ सकती है. चूंकि पैदावार में गिरावट के बीच घरेलू बाजार में टेंडर नारियल की मांग अधिक है. इसलिए किसानों ने इसके निर्यात के लिए कोई और प्रयास नहीं किया है. कंटेनर्स के मसले को आसान बनाने के बावजूद नारियल के निर्यात में भी कमी आई है. बाजार विशेषज्ञों के अनुसार कोविड-19 महामारी से पहले, मैं हर हफ्ते कई देशों को करीब तीन लाख नारियल निर्यात करता था. लेकिन अब यह एक महीने में सिर्फ चार लाख नारियल ही निर्यात करता है. निर्यात के लिए भेजे जाने वाले नारियल का आदर्श वजन 520 ग्राम या उससे ज्यादा होना चाहिए. लेकिन उनका वजन काफी कम हो गया और दो महीने पहले यह 400 ग्राम से ज्यादा नहीं था.
पोलाची के नारियल बाकी देशों में अपनी बेहतर गुणवत्ता और लंबे शेल्फ लाइफ के लिए पसंद किए जाते हैं. श्रीलंका, बांग्लादेश, फिलीपींस और इंडोनेशिया जैसे बाकी देशों से नारियल का बड़े पैमाने पर निर्यात किया जाता है. लेकिन जाहिर तौर पर उनमें पोलाची के नारियल का खास स्वाद नहीं होता है. किसानों ने कहा है कि सरकार को नारियल निर्यात को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन प्रदान करना चाहिए. साथ ही, नारियल के पेड़ों को प्रभावित करने वाली सफेद मक्खी और बीमारियों को खत्म करके उपज बढ़ाने के प्रयास किए जाने चाहिए. इसी तरह, किसानों का कहना है कि टेंडर नारियल के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे के साथ एक प्रोसेसिंग यूनिट भी लगाई जानी चाहिए.
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