धान की कटाई के साथ ही पराली जलाने की समस्या बढ़ती जा रही है. कुछ दिनों पराली का मैनेजमेंट एक बड़ी समस्या बन गया है. कृषि वैज्ञानिक शिवाधार मिश्र, रणबीर सिंह और शान्ति बमबोईया के अनुसार भारत में कृषि संबंधित क्रियाओं से हर साल लगभग 635 मिलियन टन फसलों की पराली होती है. यह पराली किसानों के लिए कई उपयोग में लाए जाने वाले प्राकृतिक संसाधन हैं. इनका उपयोग पशु आहार, जैविक खाद, कम्पोस्ट, ईंधन, छप्पर, झोंपड़ी, घरों की छत बनाने एवं उद्योगों के लिए किया जा सकता है. कुल पराली का 58 प्रतिशत अनाज वाली फसलों, 17 प्रतिशत गन्ना फसलों से, 20 प्रतिशत रेशे वाली फसलों, 3 प्रतिशत दलहनी फसलों तथा 5 प्रतिशत तिलहनी फसलों से प्राप्त होते हैं.
किसान मजबूरी में अधिकतर फसलों की पराली को जला देते हैं. जबकि इसमें बहुत सा अवशेष गलने-सड़ने लायक होता है. वैज्ञानिक तरीकों द्वारा इनका कम्पोस्ट तैयार किया जा सकता है. यह कम्पोस्ट पौधों की वृद्धि में उर्वरक की तरह कार्य करता है. किसानों को जागरूक किया जा रहा है कि वे पराली में आग न लगाकर इन्हें खेतों में प्रयोग करके कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ाकर मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार करें. सरकार की अपील की बावजूद पराली जलाने की घटनाएं कम नहीं हो रही हैं.
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वैज्ञानिकों का कहना है कि मिट्टी में जीवाशं पदार्थ की मात्रा लगातार कम होने से फसलों की उत्पादकता या तो घट रही है या स्थिर हो गई है. इसलिए फसलों की पराली का प्रयोग मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों एवं उसकी उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए किया जा सकता है. खासतौर पर संरक्षण खेती के मूल सिद्धांत के अनुसार मिट्टी की ऊपरी सतह पर पिछली फसल के कम से कम 30 प्रतिशत अवशेष होने अति आवश्यक हैं. भूमि की ऊपरी सतह पर इन्हें बिछाकर मिलाया जा सकता है.
खेतों में पड़े अवशेषों को बार-बार जुताई करके मिलाएं. पराली मिट्टी में देर से विघटित होती है. जल्दी एवं अच्छी तरह से विघटन के लिए सुपर फॉस्फेट भी इसके साथ मिला सकते हैं. कुछ फसलों के अवशेषों जैसे-आलू, गन्ना व सब्जियां आदि के पत्ते तथा अन्य भागों के उपयोग व प्रबंधन से मिट्टी में पोषक तत्वों की हानि को रोका जा सकता है. कुछ खरपतवार भी हरी खाद के रूप में प्रयोग किए जा सकते हैं. इन्हें मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करके मिट्टी में मिला देना चाहिए.
जैविक खेती में फसल अवशेषों का विशेष योगदान है. विभिन्न फसलों की पराली जैसे-गेहूं का भूसा, कपास के डंठल, गन्ने की सूखी पत्तियां तथा धान पुआल इत्यादि की कुछ मात्रा का खेत में रिसाइक्लिंग किया जा सकता है. अनेक प्रयोगों से यह सिद्ध हुआ है कि गेहूं व धान का भूसा मिलाने से भूमि की उर्वरा शक्ति पर अच्छा प्रभाव होता है. हालांकि धान व गेहूं का भूसा डालने पर प्रारम्भ में पोषक तत्वों के स्थिरीकरण के कारण इनकी कमी हो जाती है. इसके साथ किसी दलहनी फसल के भूसे को मिलाकर इस कमी को दूर किया जा सकता है. फसल अवशेषों के प्रयोग से मिट्टी की उर्वरा शक्ति व उत्पादकता को बढ़ाकर अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है.
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