भारत सरकार की पहल के बाद वर्ष 2023 को संयुक्त राष्ट्र संघ ने इंटरनेशनल इयर ऑफ मिलेट्स घोषित किया हुआ है. इसके साथ ही मोटे अनाजों की लोकप्रियता दुनियाभर में होने लगी है. वहीं देश में भी मोटे अनाजों का उत्पादन बढ़ाने की तैयारियां तेज हो गई है. इसके लिए कई राज्य सरकारें किसानों को बढ़ावा दे रही है. हालांकि किसानों के सामने फसल चक्र में बदलाव करना अभी एक चुनौती की तरह है, लेकिन, सच ये है कि मोटे अनाज स्वास्थ्य के लिए जितने लाभदायक होते हैं, इनकी खेती उतनी ही सहज है. कुल मिलाकर मोटे अनाजों की खेती किसानों के लिए फायदे का सौदा है, जो कम पानी में अधिक उत्पादन देने में सक्षम है.
अधिकांश लोगों को मोटे अनाजों के बारे में अधिक जानकारी नहीं है. दरअसल इनकी खेती बहुत पहले और सीमित व्यवस्थाओं के समय की जाती थी. कृषि क्षेत्र का विस्तार और आधुनिकता के कारण लोगों ने मोटे अनाजों की खेती को महत्व देना कम कर दिया. पिछले कुछ सालों से इन्हें फिर से चलन में लाने का प्रयास जोरों पर है. मोटे अनाजों की खेती की बात करें तो अन्य फसलों की तुलना में मोटे अनाजों को सिंचाई के लिए ढ़ाई गुना कम पानी की जरूरत होती है.
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असल में मोटे अनाजों का महत्वपूर्ण गुण उसकी बुआई और उपज ही है. इसकी खेती करने के लिए न ही बहुत अधिक भूमि की तैयारी करने की जरूरत है और न ही बहुत अधिक सिंचाई की. ये असिंचित भूमि में भी इनकी खेती संभव है. मोटे अनाज अन्य फसलों की तुलना में ढाई गुना कम पानी में भी अच्छी पैदावार देते हैं.
मोटे अनाज अपने कई गुणों के लिए जाने जाते हैं, जिसमें से पोषणयुक्त खाद्य पदार्थ होना इनका प्रमुख गुण है. इसके साथ साथ ये सीमित व्यवस्थाओं में भी पैदावार देने की क्षमता रखते हैं. ये खनिज पदार्थो और मिनिरल्स से भरपूर होते हैं. यही कारण है कि दुनिया भर के लोगों को पोषण से भरपूर भोजन देने के लिए इनके इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जा रहा है.
मोटे अनाजों के बारे में कम लोगों को ही सही जानकारी है. कुछ लोगों का मानना है कि चावल और गेहूं भी मोटे अनाजों की लिस्ट में शामिल हैं. लेकिन, ऐसा नहीं है. ज्वार, बाजरा, रागी, कंगनी, कोदो, कुटकी, चेना मुख्य मोटे अनाज हैं जो अपने पोषण गुणों और सीमित व्यवस्थाओं में अधिक पैदावार देने के लिए जाने जाते हैं.
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