कर्नाटक राज्य का गदग वह जिला है जहां की मिर्च को काफी अच्छी क्वालिटी का समझा जाता है. यहां पर किसान बड़ी मेहनत से मिर्च की खेती करते हैं और अब ये किसान खासे परेशान हैं. बताया जा रहा है कि पिछले पांच-छह महीनों में, उत्तरी कर्नाटक के गदग जिले में किसानों के घरों और कोल्ड स्टोरेज में रखी लाल मिर्च लंबे काली पड़ रही है. इसकी वजह से लंबे समय तक स्टोरेज में रहना और क्वालिटी में कमी आना. इससे किसानों की चिंता बढ़ गई है जो पहले से ही गिरती कीमतों और आर्थिक तनाव की वजह से परेशान हैं.
अधिकारियों की मानें तो पिछले साल जिले में मिर्च की बंपर फसल होने के कारण कीमतों में भारी गिरावट आई थी. घाटे में बेचने से बचने के लिए किसानों ने अपनी फसल को स्टोर करने का फैसला किया. गदग के बागवानी विभाग के डिप्टी डायरेक्ट शशि कांत कट्टीमनी के हवाले हिंदुस्तान टाइम्स ने लिखा है, 'कीमतों में गिरावट का मुख्य कारण पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के यादगिरी, रायचूर और हावेरी जिलों में मिर्च की खेती का क्षेत्र बढ़ना है.'
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गदग जिले में पहले हरे चने की खेती होती थी लेकिन पिछले साल कम बारिश के कारण किसानों ने लाल मिर्च की खेती शुरू कर दी. कम बारिश के कारण मिर्च उगाने वाले जिलों की संख्या बढ़ गई और सप्लाई बढ़ गई. इस वजह से कीमतों में गिरावट आ गई. इसके अलावा, एशिया की सबसे बड़ी मिर्च मंडी ब्यादगी में गुंटूर किस्म की मिर्च की बड़ी मात्रा में सप्लाई हुई. इससे कीमतों में और गिरावट आई.
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एक अधिकारी ने बताया कि शुरुआत में, अनुकूल मौसम की स्थिति के कारण हुबली, ब्यादगी और गदग जिले जैसे बाजारों में किसानों को मिर्च के लिए 40,000 से 45,000 रुपये प्रति क्विंटल के बीच का भाव मिला. हालांकि, फरवरी के बाद से कीमत में कोई खास इजाफा नहीं हुआ. कीमतें 8,000 रुपये से 10,000 प्रति क्विंटल तक गिर गईं. इस वजह से किसानों ने अपनी बची हुई मिर्च घर पर ही रख ली. गदग-बेतागेरी शहरों में, जहां तीन प्राइवेट कोल्ड स्टोरेज हैं, वहां भी मिर्च खराब हो गई. इससे किसानों की स्थिति और खराब हो गई है.
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किसान रुद्र गौड़ा ने बताया कि पिछले पांच महीनों से प्राइवेट कोल्ड स्टोरेज में रखी सूखी मिर्च के लिए प्रति बैग 30 रुपये प्रति माह का भारी शुल्क देना पड़ता है. उन्होंने कोल्ड स्टोरेज में मिर्च के 30 बैग रखे थे. वह कीमतों में गिरावट के बीच हर महीने 900 रुपये का किराया नहीं दे सकते थे. ऐसे में अब उन्हें कम कीमत पर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.
मानसून की शुरुआत ने स्थिति को और खराब कर दिया है. छतों से पानी टपकने और नमी के कारण घरों में रखी मिर्चें काली पड़ गई हैं. अधिकारी ने कहा कि अनुकूल बाजार मूल्य के बिना, किसान अपने खराब हो रहे स्टॉक को बेचने में असमर्थ हैं. इससे आर्थिक संकट बढ़ गया है.
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