इथेनॉल उत्पादन बढ़ाने के लिए अब केंद्र सरकार मक्के की खेती का विस्तार करने की योजना पर काम कर रही है. इसके लिए उन राज्यों में मक्के की खेती के प्रति किसानों का रुझान बढ़ाने की कोशिश की जा रही है जिनमें इसका रकबा कम है. पंजाब ऐसे ही राज्यों में शामिल है. पंजाब में धान की खेती ज्यादा हो रही है, जबकि यहां पर मक्के की खेती के लिए भी बड़ी संभावना है. इथेनॉल उत्पादन और पोल्ट्री इंडस्ट्री के लिए बढ़ती मक्के की मांग को देखते हुए अब यहां के किसान भी इसकी खेती बढ़ा रहे हैं और उन्हें अच्छा मुनाफा मिल रहा है. पठानकोट के किसान शिव दास ने भी मक्के की खेती में हाथ आजमाया और उन्हें उसका अच्छा फायदा मिला.
शिवदास ने अपने खेत में प्रति एकड़ 21 क्विंटल तक की उपज हासिल की. उन्होंने 2 एकड़ खेत में इसकी बुवाई की थी, जिससे 42 क्विंटल मक्का निकला और उसे उन्होंने इथेनॉल बनाने के लिए बेचा. पंजाब में एक प्रमुख इथेनॉल उत्पादक, राणा शुगर लिमिटेड के जरिए उन्हें सुनिश्चित दाम मिला. शिवदास ने अपनी खेती का तौर तरीका बदलकर अच्छी उत्पादकता हासिल की. अच्छी उत्पादकता के लिए अच्छे बीजों का होना भी जरूरी है. जिसे उन्हें खरीफ सीजन में भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान (IIMR) ने 'इथेनॉल उद्योगों के जलग्रहण क्षेत्र में मक्का उत्पादन में वृद्धि' नामक प्रोजेक्ट के जरिए उपलब्ध करवाया था.
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IIMR के निदेशक डॉ. हनुमान सहाय जाट ने बताया कि प्रोजेक्ट के तहत इथेनॉल उत्पादन बढ़ाने के लिए मक्के की खेती को बढ़ावा देने का काम किया जा रहा है. आईआईएमआर ने किसान को 16 किलोग्राम उच्च गुणवत्ता वाले पायनियर मक्का के बीज और उसके साथ टाइनजर, एट्राजिन और कोराजेन जैसे कीटनाशक भी दिए थे. इस प्रोजेक्ट में शिव दास की भागीदारी ने खेती में एक नया चैप्टर जोड़ा. उन्होंने 2 एकड़ में मक्का लगाकर जो फायदा लिया है, उससे दूसरे किसान भी प्रेरित होंगे. पठानकोट की जलोढ़ मिट्टी लंबे समय से अपनी उर्वरता और क्षमता के लिए जानी जाती है. इसमें मक्के का बंपर उत्पादन हो सकता है.
प्रोजेक्ट से जुड़े वरिष्ठ वैज्ञानिक एसएल जाट का कहना है कि पंजाब में धान की अंधाधुंध खेती की वजह से भू-जल स्तर लगातार गिर रहा है. ऐसे में उसके स्थान पर कम पानी की खपत वाली मक्के की खेती पर्यावरण के लिए अच्छी मानी जा रही है. धान की बजाय मक्के की खेती करके किसान कार्बन क्रेडिट भी ले सकते हैं. बहरहाल, शिव दास की सफलता की कहानी पठानकोट की मिट्टी की क्षमता का भी प्रमाण है. उन्होंने मक्के की खेती को अपनाकर न केवल अपनी स्थिति में सुधार किया बल्कि् दूसरे किसानों को संदेश भी दिया.
पंजाब में हरित क्रांति से पहले मक्के की खूब खेती होती थी, लेकिन बाद में एमएसपी पर खरीद की अघोषित गारंटी ने वहां पर धान-गेहूं का बोलबाला कर दिया. कृषि विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 1960-61 में पंजाब की कुल खेती में मक्का का रकबा 6.9 फीसदी हुआ करता था, जो अब घटकर महज 1.3 फीसदी रह गया है. ऐसे में अब सरकार यहां पर मक्का की खेती बढ़ाने के लिए प्रयास में जुटी हुई है, ताकि भू-जल स्तर का गिरना कम हो.
इस समय मक्के की मांग इथेनॉल और पोल्ट्री इंडस्ट्री के लिए बढ़ रही है. ऐसे में इसका किसानों को सही दाम मिल रहा है. इस समय मक्के का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 2225 रुपये प्रति क्विंटल है, जबकि बाजार में दाम 2300 से 2800 रुपये प्रति क्विंटल तक मिल रहा है. ऐसे में यह समय मक्के की खेती को बढ़ावा देने के लिए अनुकूल है.
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