आजकल मौसम में अचानक से परिवर्तन देखने को मिल रहा है. वहीं लगातार मौसम में बदलाव और तापमान में गिरावट की वजह से इस समय आलू की फसल में कई तरह के रोग लगने की संभावना बनी रहती है. अगर समय रहते इन रोगों पर नियंत्रण नहीं पाया जाये तो किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है. दरअसल आसमान में बादल होने पर आलू की फसल में फंफूद का संक्रमण होने की संभावना बढ़ जाती है. जो झुलसा रोग का सबसे बड़ा कारण होता है. साथ ही इस माह में सरसों की फसल में माहू कीट लगने की संभावना बनी रहती है. वही सरसों की फसल में माहू कीट फसल की बढ़वार से लेकर फलियां बनने तक पौधे को प्रभावित करता है. ऐसे में आइए जानते हैं इस रोग और कीट पर नियंत्रण कैसे पाएं-
झुलसा रोग दो प्रकार का होता है- अगेती झुलसा और पछेती झुलसा. आलू की फसल में अगेती झुलसा रोग होने की वजह से निचली व पुरानी पत्तियों पर छोटे अंडाकार भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं. वहीं धीरे-धीरे इसका प्रभाव पत्तियों और कंद दोनों पर दिखाई देने लगता है. इस रोग से प्रभावित कंदों में धब्बे के नीचे का गूदा भूरा एवं शुष्क हो जाता है, जबकि पछेती झुलसा रोग आलू की फसल में लगने वाला एक बहुत बड़ा रोग है.
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इस रोग का प्रकोप पत्तियों, तनों एवं कंदों पर होता है. जब तापमान 10 से 20 डिग्री सेल्सियस होता है और आसमान में बादल होते हैं तो इस रोग के होने की संभावना सबसे ज्यादा होती है.
अमित कुमार जायसवाल, कृषि रक्षा अधिकारी, अलीगढ़ के अनुसार आलू में अगेती एवं पछेती झुलसा रोग की समस्या होने पर किसान नियंत्रण के लिए मैंकोजेब 75 प्रतिशत डब्लू०पी० 2 किग्रा० अथवा कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत डब्लू०पी० की 25 किग्रा0 मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से लगभग 500-700 लीटर पानी में घोलकर स्प्रे करें.
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वहीं सरसों की फसल में माहू कीट के नियंत्रण के लिए एजाडिरेक्टिन 0.15 प्रतिशत ई०सी० की 25 लीटर मात्रा को 400-500 लीटर पानी में घोल बनाकर स्प्रे करना चाहिए. रासायनिक नियंत्रण के लिए डाईमेथोएट 30 प्रतिशत ई०सी०, ऑक्सीडेमेटान मिथाइल 25 प्रतिशत ई०सी० अथवा क्लोरपायरीफॉस 20 प्रतिशत ई०सी० की एक लीटर मात्रा को 600-750 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से स्प्रे करना चाहिए.
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