देश में आम चुनावों की तैयारी शुरू हो चुकी है. वहीं, राजस्थान में भी इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर राजस्थान यानी गंगानगर, हनुमानगढ़ जिले के सिख किसानों को साधने के लिए किसान संगत शुरू की है. इसी सिलसिले में 24 फरवरी को बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने किसानों के साथ संगत की. हनुमागढ़ के जाट भवन में हुई किसान संगत में नड्डा सिख पगड़ी पहनकर पहुंचे.
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार नड्डा ने अपने 30 मिनट के भाषण में से करीब 23 मिनट सिख और किसानों को संबोधित किया. उन्होंने ‘बोले सो निहान, सतश्री अकाल’ से भाषण शुरू किया और सिखों और किसानों का देश के विकास में योगदान को गिनाया. नड्डा ने किसानों को अन्नदाता बताते हुए कहा कि यह कार्यक्रम किसान संगत के साथ-साथ राजनीतिक मंच भी है. इसके माध्यम से मैं कहना चाहता हूं कि अन्नदाता के साथ लंबे समय से छल हुआ है. स्वयंभू किसान नेताओं ने किसानों के भले के लिए कुछ नहीं किया.
उन्होंने कांग्रेस पर कर्जमाफी के वादे से मुकरने का आरोप लगाया. कहा, “कांग्रेस के ही नेता ने 10 दिन में कर्ज माफ करने की बात कही थी, लेकिन उन्होंने इस मुद्दे पर वादाखिलाफी की है. हमारी सोच देश के साथ-साथ राजस्थान को भी आगे बढ़ाने की है.”
हनुमानगढ़ जिले की तीन विधानसभा सीटों पीलीबंगा, संगरिया और हनुमानगढ़ में सिख मतदाताओं का जीत-हार में भूमिका होती है. इन तीनों विधानसभा सीटों पर 80 हजार से अधिक सिख मतदाता हैं. इन्हीं वोटों को साधने के लिए भाजपा इन पर फोकस कर रही है. वोटों में तब्दील करने के लिए किसान संगत जैसे कार्यक्रम कर रही है. संगरिया विधानसभा में करीब 40 हजार, हनुमानगढ़ में 30 और पीलीबंगा में 10-15 हजार सिख वोट हैं.
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श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ पंजाब से सटे जिले हैं. इसीलिए दो साल पहले हुए किसान आंदोलन का असर यहां दिखता है. केन्द्र सरकार के कृषि कानूनों का विरोध पंजाब से शुरू हुआ था, जिसका असर यहां भी हुआ. इसके अलावा पंजाब में इन दोनों जिलों के लोगों की रिश्तेदारियां हैं. किसान आंदोलन के दौरान हनुमानगढ़ के टोल प्लाजों पर एक साल तक आंदोलन चला.
सिख किसान मतदाताओं के प्रभाव को ऐसे भी समझा जा सकता है. किसान आंदोलन के दौरान भारतीय किसान संघ के तत्कालीन अध्यक्ष ने आंदोलन के पक्ष में अपना इस्तीफा दे दिया था. चूंकि भाजपा सिख मतदाओं को अपना परंपरागत वोट मानती है, लेकिन किसान आंदोलन ने इस तस्वीर को बदला है. इसीलिए बीजेपी सिख किसानों को अपने पक्ष में वापस करने की कोशिश कर रही है.
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किसान आंदोलन के दौरान दिसंबर 2020 में हुए पंचायतीराज चुनाव में जिला परिषद और पंचायत समिति चुनावों में बीजेपी को काफी नुकसान हुआ था. यहां अधिकतर सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार जीते. इसी कारण यहां कांग्रेस के बोर्ड बने. क्योंकि कांग्रेस ने इन चुनावों में किसान आंदोलन को मुद्दा बनाया था. इसीलिए अब बीजेपी खुद से छिटके इन सिख किसान वोटों को जोड़ने के लिए किसान संगत कर रही है.
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