बिहार के गया जिले में कृषि क्षेत्र में काफी क्रांतिकारी बदलाव देखने को मिल रहा है. मौजूदा वक्त में जो फसलें विलुप्त होती जा रही हैं, अब उसका दौर वापस लौटता नजर आ रहा है. वहीं, ये सब संभव कर रहे हैं वहां के मेहनतकश किसान. सेहत के लिए रामबाण माने जाने वाले मोटे अनाजों की खेती यहां के किसानों ने फिर से शुरू कर दी है. बता दें कि ये फसल इस जिले से लगभग विलुप्त हो चुकी थी. लेकिन इससे होने वाले फायदों और कमाई को देखते हुए यहां के किसान सांवा, बाजरा और मड़ुआ यानी रागी की खेती कर रहे हैं.
गया जिले के गुरारू प्रखंड के 25 एकड़ में सांवा की फसल आज लहलहा रही है. जो भूमि कभी बंजर और असिंचित रह जाती थी, उस भूमि पर मोटे अनाज की खेती का प्रयोग काफी सफल होता दिख रहा है. इस प्रखंड के कई किसानों ने 25 एकड़ कलस्टर एरिया में कृषि विभाग के सहयोग से सांवा की खेती की है. वहीं, कुछ ही दिनों में इसकी कटनी भी शुरू हो जाएगी. इसके अलावा क्लस्टर सेंटर बनाकर कई किसान बाजरा और मड़ुआ की भी खेती कर रहे हैं. इसके लिए किसानों को कृषि विभाग भी काफी प्रोत्साहित कर रहा है.
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मोटे अनाज के तहत 8 फसलें आती हैं. इन फसलों का राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में काफी डिमांड है. यह फसल सेहत के लिए फायदेमंद तो हैं ही, इन फसलों की खेती से किसानों की आमदनी भी बढ़ती है. वहीं, बाजार में इन फसलों की कीमत 5000 से 7000 हजार रुपये प्रति क्विंटल तक है. इन फसलों की खासियत यह है कि पुराना होने के बाद भी इसमें कीड़े नहीं लगते है और उपज खराब नहीं होती है.
मोटे अनाज का सेवन करना शरीर के लिए काफी फायदेमंद होता है. डायबिटीज सहित कई गंभीर बीमारियों में इसके सेवन करने से लाभ होता है. इसे खाने से हड्डियों में मजबूती आती है. दरअसल, इसमें प्रोटीन और कैल्शियम की मात्रा भरपूर पाई जाती है. साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी मोटे अनाज की काफी डिमांड है क्योंकि संयुक्त राष्ट्र ने इन फसलों की खेती करने के लिए 2023 में मिलेट्स वर्ष घोषित किया था.
अनुमंडल कृषि पदाधिकारी मोटे अनाज की खेती कर रहे किसानों को बढ़ावा देने के लिए उनके खेत तक जाते हैं, जिससे किसानों का मोटे अनाज की खेती करने में हौसला बढ़ता है. कृषि पदाधिकारी खेतों में पहुंचकर किसानों के प्रयास की सराहना करते हैं.
वहीं, गया जिले के अनुमंडल कृषि पदाधिकारी ने बताया कि मोटे अनाज चना, मसूर, मक्का और तिलहन फसल, सरसों, तीसी के उत्पादन में आत्मनिर्भर होने के लिए किसानों को सस्ती दर पर बीज और फसल लगाने के बाद प्रति एकड़ 2 हजार रुपये प्रोत्साहन राशि सीधे बैंक खाते में दी जाती है. सरकार यह कदम इसलिए उठा रही है ताकि किसान धान, गेहूं जैसी मुख्य फसल के साथ-साथ ऐसे फसलों के उत्पादन में रुचि लें और बेहतर कमाई करें. वहीं, प्रखंड कृषि पदाधिकारी ने कहा कि मोटे अनाज और मिलेट्स क्रॉप फसलों को अपने आहार में शामिल कर लोग अपनी सेहत में सुधार कर सकते हैं क्योंकि ये फसलें प्रोटीन और फाइबर युक्त होती हैं.
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