दुनिया भर में पैदा हुए चावल संकट के बीच भारत को बासमती का मुंहमांगा दाम मिल रहा है. केंद्र सरकार ने जब 'चावल की रानी' के नाम से मशहूर बासमती राइस का न्यूनतम निर्यात मूल्य (MEP) 1200 डॉलर प्रति टन तय किया था तब इसे लेकर काफी हंगामा हुआ था. इंडस्ट्री के विरोध के बाद सरकार को यह फैसला वापस लेना पड़ा था. सरकार ने बीच का रास्ता निकालते हुए एमईपी 950 डॉलर प्रति टन कर दिया. लेकिन क्या आपको पता है कि अब कितने दाम पर बासमती चावल का एक्सपोर्ट हो रहा है. दरअसल, अप्रैल 2023 से जनवरी 2024 तक हुए निर्यात के औसत दाम की बात करें तो यह 1117 यूएस डॉलर प्रति टन बनता है. हालांकि, कई ऐसे देश हैं जहां 1200 डॉलर प्रति टन से भी अधिक कीमत पर बासमती चावल का एक्सपोर्ट हो रहा है. अर्जेंटीना में तो भारत ने 1969 यूएस डॉलर प्रति टन के रिकॉर्ड भाव पर बासमती बेचा है.
केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए 1200 डॉलर प्रति टन की एमईपी का विरोध करने वाले लोगों का तर्क यह था कि ज्यादा दाम की वजह से एक्सपोर्ट कम हो जाएगा. हमारे अंतरराष्ट्रीय बाजार को पाकिस्तान कब्जा कर लेगा, क्योंकि वो इस मामले में हमारा प्रतिद्वंदी है. लेकिन, कड़वा सच यह है कि एक्सपोर्ट घटने की बजाय काफी बढ़ गया है और दाम भी ज्यादा मिल रहा है. आखिर इसकी वजह क्या है. बाजार के जानकारों का कहना है कि गैर बासमती चावल के एक्सपोर्ट में काफी कमी आ गई है. जिससे बासमती का दाम और एक्सपोर्ट दोनों बढ़ गया है.
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डायरेक्टरेट जनरल ऑफ कमर्शियल इंटेलिजेंस एंड स्टैटिस्टिक्स (DGCIS) से मिले आंकड़ों का विष्लेषण करने पर पता चलता है कि साल 2022-23 के अप्रैल से जनवरी के मुकाबले 2023-24 के अप्रैल से जनवरी तक की समय अवधि में गैर बासमती चावल के एक्सपोर्ट में 54,36,032 टन की कमी आ गई है. अगर रुपये में इसकी बात करें तो गैर बासमती चावल के एक्सपोर्ट में 26.34 फीसदी की कमी है.
दरअसल, सरकार ने घरेलू बाजार में दाम पर काबू रखने के लिए गैर बासमती सफेद चावल और टूटे चावल के एक्सपोर्ट पर बैन लगा रखा है. इसका सकारात्मक असर बासमती चावल के एक्सपोर्ट पर पड़ा है. एक्सपोर्ट भी बढ़ा है और दाम भी अच्छा मिला है. अप्रैल से जनवरी (2022-23) तक 10 महीने में 36,55,634 मीट्रिक टन बासमती चावल का एक्सपोर्ट हुआ था. जबकि अप्रैल से जनवरी (2023-24) तक के 10 महीनों में 41,05,108 मीट्रिक टन बासमती एक्सपोर्ट हो चुका है.
देश | यूएस डॉलर/टन |
अर्जेंटीना | 1969 |
स्लोवानिया | 1737 |
जापान | 1726 |
यूक्रेन | 1575 |
स्विट्जरलैंड | 1521 |
जमैका | 1517 |
नार्वे | 1422 |
जर्मनी | 1401 |
बेल्जियम | 1352 |
साइप्रस | 1351 |
Source: DGCIS |
राइस एक्सपोर्ट के मामलों पर पैनी नजर रखने वाले बिनोद कौल के मुताबिक किसी भी चावल के चार वैरिएंट होते हैं, जिन्हें क्रीमी सेला, गोल्डन सेला, स्टीम और सफेद चावल कहा जाता है. उसके हिसाब से दाम कम ज्यादा रहता है. अब कौन सा देश किस किस्म के चावल का कौन सा वैरिएंट मंगा रहा है, दाम इस बात पर निर्भर करता है. गोल्डन सेला का दाम दूसरे वैरिएंट से 15 फीसदी तक ज्यादा रहता है. यही नहीं बासमती-1509 किस्म के चावल की कीमत कम है, जबकि बासमती-1121 का दाम सबसे ज्यादा है. ऐसे में दाम के लिए किस्म और उसका वैरिएंट बहुत मायने रखता है.
दिसंबर 2023 में शिरोमणि अकाली दल की सांसद हरसिमरत कौर बादल की ओर से लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने बताया था कि आखिर सरकार ने बासमती चावल पर 1200 डॉलर प्रति टन का एमईपी क्यों लगाया. पटेल के अनुसार, "बासमती चावल के निर्यात पर प्राइस लिमिट तय करने का मकसद इसके निर्यात को प्रतिबंधित करना नहीं था. सरकार को इस बारे में विश्वसनीय फील्ड रिपोर्ट प्राप्त हुई थी कि गैर-बासमती सफेद चावल, जिसका निर्यात 20 जुलाई 2023 से प्रतिबंधित कर दिया गया है, को बासमती चावल के एचएस कोड के तहत निर्यात किया जा रहा था. गैर-बासमती चावल के अवैध निर्यात को नियंत्रित करने के लिए, सरकार ने इतना एमईपी लगाया."
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