केला, आम के बाद भारत की महत्तवपूर्ण फल की फसल है. यह मंडियों में लगभग सालभर उपलब्ध रहता है. वहीं भारत केला उत्पादन के मामले में पहले स्थान पर और फलों के क्षेत्र में तीसरे नंबर पर है. भारत के अंदर आंध्र प्रदेश राज्य में केले का सबसे अधिक उत्पादन होता है. केले का उत्पादन करने वाले अन्य राज्य जैसे- महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, आंध्र प्रदेश और असम हैं. वहीं इसकी खेती के लिए चिकनी बलुई मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है. इसकी खेती के लिए भूमि का पीएच मान 6-7.5 के बीच होना चाहिए. ज्यादा अम्लीय या क्षारीय मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती है. ऐसे में अगर आप केले की उन्नत किसानों की आधुनिक तरीके से खेती करते हैं, तो लाखों कमा सकते हैं.
ड्रिप सिंचाई की सुविधा हो, तो पॉली हाउस में टिश्यू कल्चर पद्धति से केले की खेती सालभर की जा सकती है. महाराष्ट्र में इसकी रोपाई के लिए खरीफ सीजन में जून-जुलाई, जबकि रबी सीजन में अक्टूबर-नवम्बर का महीना महत्वपूर्ण माना जाता है.
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केले में कैल्शियम, शर्करा जैसे कई तत्व पाए जाते हैं, जो मानव शरीर के लिए बहुत जरूरी है. इससे इंस्टेंट एनर्जी मिलती है. वहीं केले के गुणों के कारण न केवल इसके फल, बल्कि इसके पत्तों की भी मांग रहती है. लोग कच्चे केले से, पके केले से कई प्रकार के खाद्य पदार्थ बनाते हैं. वहीं इनके पत्तों का इस्तेमाल खाना खाने में, पूजा में और सजावट के लिए भी किया जाता है.
कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि हमारे देश में ही केले की 500 से अधिक किस्में उगाई जाती है. जिसमें से रोवेस्टा, बत्तीसा, कुठिया, लाल केले, सफ़ेद वेलाची, बसराई, पूवन, न्याली, रास्थाली जैसी किस्मों को प्रमुख माना जाता है. बत्तीसा किस्म के केले को सबसे अधिक सब्जी और अन्य खाद्य पदार्थों को बनाने के लिए उगाया जाता है. वहीं कुटिया का इस्तेमाल फल और सब्जियों दोनों रूप में किया जाता है.
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वहीं जो किसान केले के जी-9 किस्म को खरीदना चाहते हैं, वो किसान एनएससी भुवनेश्वर के नर्सरी से मांगा सकते हैं. मालूम हो कि भुवनेश्वर से 500 किमी की दूरी पर रहने वाले किसान 20,000 पौध की कीमत 337476 रुपये ऑनलाइन चुकता करके अपने घर आसानी से मांगा सकते हैं. यदि दूरी भुवनेश्वर से 500 किमी से अधिक है, तो अतिरिक्त टारस्पोर्टेशन लागत देना पड़ेगा.
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