मौजूदा वक्त में आयुर्वेदिक और इम्युनिटी बढ़ाने वाले प्रोडक्ट की डिमांड काफी है. वहीं बात चाहे कॉस्मेटिक प्रोडक्ट की करें या आयुर्वेदिक दवा की, एलोवेरा का इन सभी में काफी इस्तेमाल किया जाता है. यही वजह है कि बाजार में इसकी डिमांड हमेशा बनी रहती है. एलोवेरा यह एक अंग्रेजी नाम है, हिंदी में इसे घृतकुमारी और ग्वारपाठा के नाम से जानते हैं. एलोवेरा की खेती की सबसे अच्छी बात यह है कि आप सिर्फ एक बार पौधे लगाकर इससे कई साल तक उपज लेने के साथ ही मुनाफा कमा सकते हैं. वहीं भारत में ज्यादातर इसकी खेती पंजाब, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड, उड़ीसा, राजस्थान और उत्तराखंड में की जाती है.
गौरतलब है कि खेती किसी भी फसल की हो जानकारी होना बेहद जरूरी है. वर्ना फायदे की जगह नुकसान होने की आशंका बढ़ जाती है. ऐसे में आइए आज हम एलोवेरा की उन्नत किस्में, खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु, बुवाई और कटाई के सही समय के बारे में बताते हैं-
एलोवेरा की खेती के लिए उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता होती है. इसके अलावा इसे पहाड़ी और बलुई दोमट मिट्टी में भी उगाया जा सकता है. वहीं एलोवेरा की फसल को खेत में लगाने से पहले उसके खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लेना चाहिए. एलोवेरा की जड़े भूमि के अंदर 20 से 30 सेमी गहराई तक में पाई जाती है. इसके अलावा इसकी खेती में भूमि का पीएच मान 8.5 तक होना चाहिए.
अच्छी पैदावार के लिए एलोवेरा के पौधे जुलाई-अगस्त में लगाना उचित रहता है. एलोवेरा की खेती सर्दियों के महीनों को छोडक़र पूरे साल की जा सकती है. वहीं इसके पौधों को खरीदते समय इस बात का जरूर ध्यान रखें कि पौधे बिल्कुल स्वस्थ हों. खरीदा गया पौधा 4 महीना पुराना होना चाहिए, जिसमें 4 से 5 पत्तियां लगी होनी चाहिए. रोपाई के दौरान एलोवेरा के पौधों के बीच में 40-45 सेमी की दूरी अवश्य रखें. दरअसल, पौधों को दूरी पर लगाने से पत्तियों के तैयार होने पर उनकी तुड़ाई करने में आसानी होती है.
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अगर एलोवेरा के खेत में सिंचाई की बात करें, तो बरसात और ठंड के मौसम में एलोवेरा के खेती में ज़्यादा पानी के आवश्यकता नहीं होती है. अगर मौसम गर्मी का है, तो पंद्रह दिन में एक बार सिंचाई जरूर कर दें.
एलोवेरा के पौधे रोपाई के 8-10 महीने के बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. यदि भूमि कम उपजाऊ है, तो इसके पौधों को तैयार होने में 10 से 12 महीने का समय लग जाता है. वहीं पहली कटाई के बाद इसके पौधे 2 महीने बाद दूसरी कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इसके एक एकड़ के खेत में तक़रीबन 11,000 से अधिक पौधों को लगाया जा सकता है, जिससे आपको 20 से 25 टन की पैदावार प्राप्त हो जाती है.
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एलोवेरा की लगभग 150 प्रजातियां हैं. जिनमें से एलो बार्बेडेंसिस, ए.चिनेंसिस, ए. परफोलियाटा, ए. वल्गारिस, ए इंडिका, ए.लिटोरेलिस और ए.एबिसिनिका आमतौर पर उगाई जाने वाली किस्में हैं और इनमें सबसे अधिक चिकित्सीय गुण पाया जाता है. सीमैप, लखनऊ ने भी एलोवेरा की उन्नत प्रजाति (अंकचा/एएल-1) विकसित की है. एलोवेरा की व्यावसायिक खेती के लिए किसान इस किस्म के लिए इस संस्थान से संपर्क कर सकते हैं.
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