दलहन की खेती करने वाले किसानों के लिए राहत भरी खबर है. उत्तराखंड स्थित जीबी पंत एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने उड़द की दो नई किस्में विकसित की हैं. इन दोनों किस्मों को पंत उड़द-13 और पंत उड़द-14 नाम दिया गया है. इन दोनों किस्मों को वैज्ञानिकों ने ज्यादा उत्पादन और रोग प्रतिरोधक क्षमता को ध्यान में रखते हुए विकसित किया है. वैज्ञानिकों की मानें तो ये किस्में मौजूदा जलवायु परिस्थितियों के तहत बेहतर प्रदर्शन करेंगी. साथ ही इससे किसानों की आय में भी इजाफा होगा.
यूनिवर्सिटी के कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि नई किस्में जल्दी पकने वाली हैं. साथ ही इनका उत्पादन भी पारंपरिक किस्मों की तुलना में ज्यादा है. इसके अलावा, इन किस्मों को कीट और बीमारियों से लड़ने में भी सक्षम बनाया गया है. इससे किसानों को रासायनिक दवाओं पर खर्च कम करना पड़ेगा. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इन किस्मों को बड़े पैमाने पर अपनाया गया, तो यह क्षेत्रीय स्तर पर दलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा.
विश्वविद्यालय की तरफ से किसानों से इन किस्मों को अपनाने की अपील की है ताकि वे कम लागत में ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमा सकें. एक नजर डालिए कि इन दोनों किस्मों की खासियतें क्या हैं-
यह किस्म खासतौर पर उन क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है जहां मानसून के समय बारिश कम होती है. इसकी फसल औसतन 75 से 80 दिनों में पक जाती है, जिससे यह जल्दी बुवाई और कटाई के लिए तैयार हो जाती है. वैज्ञानिकों ने इस किस्म की उपज क्षमता 10 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक बताई है. यह किस्म पीला मोजेक वायरस और झुलसा रोग के प्रति काफी हद तक प्रतिरोधक है. इस वजह से किसानों को फसल सुरक्षा पर कम खर्च करना पड़ता है.
यह किस्म अधिक उपज देने वाली और मध्यम अवधि में पकने वाली है. इसकी फसल 80 से 85 दिनों में तैयार हो जाती है. यह किस्म भूरे रंग के बड़े दाने देती है, जो बाजार में अधिक पसंद किए जाते हैं. पंत उड़द-14 भी प्रमुख रोगों जैसे कि पत्ती मुड़ान रोग और जड़ सड़न के प्रति सहनशील है. इसके तहत प्रति हेक्टेयर 12 से 14 क्विंटल तक उपज की संभावना जताई गई है. यह किस्म विशेषतौर पर तराई और समतल क्षेत्रों के लिए उपयुक्त मानी जा रही है.
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