राजस्थान में बीते तीन-चार दिन से शीतलहर चल रही हैं. जयपुर में न्यूनतम तापमान 5.3 डिग्री तक दर्ज किया जा चुका है जो बीते दो साल में सबसे कम है. प्रदेश के उत्तरी जिले श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़ में तापमान 4 डिग्री तक लुढ़क गया है. उत्तरी दिशा से ठंडी हवाएं चल रही हैं. हालांकि आसमान साफ है. इसीलिए फसलों को पाले से नुकसान की आशंका बढ़ गई है. फसलों को पाले से बचाने के लिए कृषि विभाग ने एडवाइजरी भी जारी की है.
विभाग ने किसानों से भी अपील की है कि वे फसलों को पाले से बचाने के लिए विभाग की एडवाइजरी की पालना करें.
श्रीगंगानगर में कृषि विभाग के उपनिदेशक डॉ. जीआर मटोरिया बताते हैं कि दिन के समय सूरज की गर्मी से पृथ्वी गर्म हो जाती है. जमीन से यह गर्मी विकिरण वातावरण में ट्रांसफर हो जाती है. इसीलिए रात में जमीन का तापमान गिर जाता है. कई बार तो तापमान शून्य के बेहद नजदीक पहुंच जाता है.
ऐसी अवस्था में ओस की बूंदें जम जाती हैं. इसी को पाला कहा जाता है. पाला पड़ने के लक्षणों में सबसे पहले आक वनस्पति में पड़ता है. सर्दियों में गेहूं, सरसों जैसी फसल शीतलहर एवं पाले से खराब होने लगती हैं. पाले से पौधों की पत्तियां व फूल झुलस कर झड़ जाते हैं. साथ ही अधपके फल भी सिकुड़ जाते हैं.
फलियों एवं बालियों में शीतलहर व पाले से दाने नहीं बनते. पाले से फसल झुलसने की संभावना 25 दिसंबर से 15 फरवरी तक सबसे अधिक रहती है. डॉ. मटोरिया कहते हैं कि जब आसमान साफ हो, हवा ना चले और तापमान काफी कम हो जाए तब पाला पड़ने की सबसे अधिक संभावना रहती है.
डॉ. मटोरिया बताते हैं कि रबी फसलों में फूल एवं बालियां/फलियां आने व बनते समय पाला पड़ने की सबसे अधिक सम्भावनाएं रहती है. इस समय किसानों को सतर्क रहकर फसलों की सुरक्षा के उपाय अपनाने चाहिए. पौधों एवं सीमित क्षेत्र वाले उद्यानों/नगदी सब्जी वाली फसलों में भूमि के ताप को कम ना होने दें. इसके लिए किसान फसलों को टाट, पॉलीथिन या भूसे से ढंक सकते हैं. किसानों को ऐसी वायुरोधी टाटियों को हवा आने वाली दिशा की तरफ यानी उत्तर- पश्चिम की तरफ बांधनी चाहिए.
इसके अलावा नर्सरी, किचन गार्डन, खेत व अन्य कीमती फसल वाले खेतों में उत्तर-पश्चिम की तरफ टाटियां बांधकर क्यारियों पर लगानी चाहिए. दिन में धूप निकलने पर इन टाटियों को हटा लेना चाहिए.डॉ. मटोरिया कहते हैं कि पाला पड़ने की अगर संभावना हो तब फसलों में हल्की सिंचाई करनी चाहिए. नमीयुक्त जमीन में काफी देर तक गर्मी रहती है और जमीन का तापमान एक साथ कम नहीं होता. इससे तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस से नीचे नहीं गिरता और फसलों को पाले से बचाया जा सकता है.
डॉ. मटोरिया के अनुसार पाला पड़ने की संभावना होने पर एक एम.एल गंधक का तेजाब या डाइमिथाईल सल्फोआक्साइड प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए. किसान इस बात का विशेष ध्यान रखें कि पौधों पर घोल की फुहार अच्छी तरह लगे.
इस तरह के छिड़काव का असर दो सप्ताह तक रहता है. यदि इसके बाद भी शीत लहर व पाले की सम्भावना रहे तो इसी छिड़काव को 15 दिन के अन्तराल में दोहराते रहें. अगर फायदा ना दिखे तो थायो यूरिया 500 पी.पी.एम.(आधा ग्राम) प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव कर सकते हैं. सरसों, गेहूं, चना, आलू, मटर जैसी फसलों को पाले से बचाने में गन्धक का छिड़काव करने से न केवल पाले से बचाव होता है, बल्कि पौधों में लोहा तत्व की जैविक एवं रासायनिक सक्रियता बढ़ जाती है.
इससे पौधों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. साथ ही यह फसल को जल्दी पकाने में सहायक होती है. दीर्घकालीन उपाय के रुप में खेत की उत्तर-पश्चिमी मेड़ों पर या बीच-बीच में वायु अवरोधक पेड़ जैसे शहतूत, शीशम, बबूल, खेजड़ी, अरडू भी लगाए जा सकते हैं. ठंडी हवाओं के झौंकों से फसल का बचाव हो जाता है.
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