क्या आप इस बात पर यकीन करेंगे कि किसी फसल में जुताई के बाद ना तो पानी देने की जरूरत पड़ती है और ना ही किसी तरह का खाद? किसान एक-दो बार बिजाई के बाद सीधे फसल काटता है और उत्पादन अन्य खेतों से ज्यादा लेता है. आप इस बात पर भी यकीन नहीं करेंगे कि यह खेती देश में सबसे कम बारिश वाले क्षेत्र यानी रेगिस्तान में होती है. जी हां, ये खेती है जैसलमेर की पारंपरिक खड़ीन खेती. जैसलमेर के लोग सैंकड़ों सालों से ये पारंपरिक खेती कर रहे हैं. ये पूरी तरह जैविक होती है. इसमें सैंकड़ों बीघा में रबी की मुख्य फसल गेहूं, चना, सरसों की जाती हैं. खड़ीन खेती में उत्पादन बाकी आम खेती से ज्यादा होता है.
खड़ीन का मतलब है पानी जमा करने की जगह या छोटा बांध. जैसलमेर क्षेत्र में बहुत बड़े-बड़े घास के मैदान हैं. जिनमें हजारों की संख्या में सालभर भेड़, बकरी, गाय और अन्य जानवर चरते हैं. जैसलमेर के लोग सैंकड़ों सालों से अपने पारंपरिक सहज ज्ञान से इन घास के मैदानों के ढलान में छोटे-छोटे बांध बनाते रहे हैं. जिसमें बारिश का पूरा पानी जमा होता है. इसी बारिश के पानी के साथ घास, वहां चरने वाले जानवरों का मल और मिट्टी बहकर जमा होती रहती है.
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रबी सीजन की बुवाई के वक्त तक इन बांधों का पानी सूख जाता है या अतिरिक्त पानी को बांध के बीचों-बीच बनाए नाले में से निकाल दिया जाता है. नमी वाली इसी जमीन पर किसान जुताई कर बीज बो देते हैं. इसके बाद पानी के साथ बहकर आई मिट्टी, पत्ते, घास, गोबर सब फसल के लिए खाद का काम करते हैं. बांध की नमी फसल के लिए पानी की जरूरत को पूरा करती है.
इसीलिए फसल पकने तक इसमें किसी भी तरह के खाद और पानी की जरूरत नहीं होती. फसल उगने से कटने तक सिर्फ एक-दो बार बिजाई करनी होती है. इस तरह रेगिस्तानी जिले जैसलमेर में सैंकड़ों साल से लोग पूरी तरह जैविक खड़ीन खेती कर रहे हैं.
खड़ीन खेती की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें कम लागत में ज्यादा उत्पादन किसान लेते हैं. लागत में सिर्फ जुताई, निराई-गुड़ाई और कटाई का खर्च होता है. जबकि आम तौर पर एक फसल में जुताई, बीज, पानी, निराई-गुड़ाई, खाद और कटाई में किसानों का काफी पैसा खर्च होता है.
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जैसलमेर में रहने वाले पर्यावरणविद् पार्थ जगाणी किसान तक से कहते हैं, “पहली बात तो खड़ीन खेती इस धारणा को तोड़ती है कि पश्चिमी राजस्थान बंजर है या यहां सिर्फ बाजरा ही उगाया जा सकता है या वहां खेती संभव नहीं. दूसरा, जैसलमेर की आबो-हवा और पारिस्थितिकी तंत्र खड़ीन खेती के लिए मुफीद है. खासकर यहां घास के बड़े-बड़े मैदान इस खेती में सबसे बड़े सहायक हैं. तीसरा, जैसलमेर के लोगों का पानी और खेती को लेकर पारंपरिक ज्ञान और उससे खेती करना. ये सब बातें खड़ीन खेती को पूरे देश में अलग बनाती है.”
पार्थ जोड़ते हैं, “फसल अच्छी होने के साथ-साथ किसानों की मवेशियों को भी सालभर चरने के लिए अच्छा घास मिलता है. इससे दूध का उत्पादन बढ़ता है और किसानों की आय भी बढ़ती है. मवेशियों के खड़ीन में चरने से उनका गोबर भी इसी में मिलता है. यही अगले साल फसल में खाद का काम भी करती है. इसीलिए खड़ीन का पूरा एक इकोसिस्टम है. चूंकि इस क्षेत्र में किसानों के पास खेती का रकबा काफी अच्छा होता है इसीलिए 80-100 बीघा में होने वाली जैविक खेती का दाम भी किसानों को अच्छा मिलता है.”
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