गन्ने की खेती में किसानों का घट रहा मुनाफापंजाब के किसान संगठनों ने सरकार से गन्ने का समर्थन मूल्य बढ़ाकर 450 रुपये प्रति क्विंटल करने का आग्रह किया है. उनका कहना है कि गन्ने की लागत अधिक होने के कारण किसानों को कम लाभ मिलता है. चालू वित्त वर्ष के लिए, केंद्र ने गन्ने का उचित और लाभकारी मूल्य (एफआरपी) 355 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है. पंजाब सरकार का राज्य परामर्शित मूल्य (एसएपी) अगेती किस्मों के लिए 401 रुपये प्रति क्विंटल है, जबकि पछेती किस्मों के लिए 391 रुपये प्रति क्विंटल है. राज्य सरकार ने नवंबर में एसएपी में 10 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की थी.
बता दें कि धान और गेहूं के न्यूनतम समर्थन मूल्य की तर्ज पर, केंद्र और राज्य सरकारें हर साल गन्ने की दरें तय करती हैं, जिन्हें चीनी मिलें किसानों से खरीदे गए गन्ने के लिए भुगतान करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य हैं. वर्तमान में, राज्य में लगभग 1 लाख हेक्टेयर में गन्ने की खेती की जाती है. 1996-97 में अपने चरम पर, इसकी खेती का रकबा 1.73 लाख हेक्टेयर था. किसान नेताओं का कहना है कि भुगतान में देरी, कम मुनाफा और बढ़ती लागत के कारण गन्ने की खेती में लगातार गिरावट आ रही है. स्थानीय किसान राजबीर सिंह ने चेतावनी दी कि अगर सरकार हस्तक्षेप नहीं करती है, तो किसान गन्ने की खेती छोड़ने पर मजबूर हो सकते हैं.
अंग्रेजी अखबार 'द ट्रिब्यून' की एक रिपोर्ट में बॉर्डर एरिया संघर्ष समिति से जुड़े किसान नेता रतन सिंह रंधावा बताते हैं कि कीमतों को लाभदायक बनाया जाना चाहिए. तरनतारन में बंद पड़ी सहकारी चीनी मिलों को भी चालू किया जाना चाहिए. जम्हूरी किसान सभा के किसान नेता सतनाम सिंह अजनाला ने कहा कि यदि गन्ने की खेती को लाभदायक बनाया जाए तो इससे फसल विविधीकरण के प्रयासों में मदद मिल सकती है.
किसानों ने यह भी मांग की कि चीनी मिलें हर साल 15 अक्टूबर तक चालू हो जाएं. अजनाला के एक किसान मंदीप सिंह ने बकाया भुगतान समय पर करने की मांग करते हुए कहा कि अक्सर चीनी मिलें नवंबर के अंत तक ही काम शुरू करती हैं, जो किसानों के हितों के खिलाफ है. वर्तमान में पंजाब में 9 सहकारी और छह निजी चीनी मिलें हैं.
पंजाब के अलावा महाराष्ट्र के किसानों ने भी गन्ने का मूल्य बढ़ाने की मांग उठाई है. स्वाभिमानी शेतकरी संगठन के नेता राजू शेट्टी ने शनिवार को मांग की थी कि मराठवाड़ा के सभी शुगर फैक्ट्रियों को किसानों को गन्ने के लिए न्यूनतम 3,500 रुपये प्रति टन का भुगतान होना चाहिए. उन्होंने कहा कि अगर फैक्ट्रियां इस दर पर भुगतान करने से इनकार करती हैं, तो किसानों को सामूहिक रूप से गन्ना सप्लाई करने से इनकार करना चाहिए.
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