महाराष्ट्र में किसान अब पारंपरिक फसलों को छोड़कर दूसरी खेती की ओर बढ़ रहे हैं. आलम ये है कि महाराष्ट्र के किसानों को अब रेशम की खेती पसंद आ रही है. जिसके लिए महाराष्ट्र के किसान कॉटन छोड़कर अपने खेत खलिहान में शहतूत उगा रहे हैं. महाराष्ट्र में पिछले कुछ सालों में रेशम की खेती का दायरा बढ़ा है, जिसमें बीड़, जलाना समेत लातूर जिले के किसान रेशम उत्पादन के लिए शहतूत उगा रहे हैं. मालूम हो कि महाराष्ट्र् के ये तीनों जिलों प्रमुख कॉटन उत्पादक जिलों के तौर पर पहचाने जाते हैं, लेकिन अब यहां पर रेशम की खेती होने लगी है. इसके लिए किसान शहतूत के पेड़ लगा रहे हैं. शहतूत के पेड़ में ही रेशम की कीटों को पाला जाता है.
रेशन की खेती किसानों को कम लागत में अच्छा मुनाफा दे रही है. रेशम की खेती करने वाले किसान नवाले पाटिल बताते है कि उन्होंने अपने पांच एकड़ खेत में रेशम की खेती की है, जिसमें से ढ़ाई लाख कीटों का उत्पादन कर एक महीने में उन्हें बेचा हैं. उन्होंने बताया कि इससे उन्हें डेढ़ लाख से ज्यादा का मुनाफा मिला हैं, जबकि इसकी खेती में लागत सिर्फ 20 हजार के आस-पास आई थी. पाटिल ने आगे बताया की इस महीने उन्होंने 4 लाख रेशम बेचा हैं, जिसका उन्हें ढ़ाई से 3 लाख रुपये का मुनाफा मिलेगा.
नवाले पाटिल ने कहना है कि उनके गांव के सभी किसान रेशम की खेती से अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. पूरे गांव के किसान रेशम की खेती करते हैं. और हमारा पूरा गांव इस खेती से समृद्ध हो गाय हैं. पाटिल ने बताया इस खेती में महीने मे ही पैसा मिलता हैं जो कि दूसरे किसी फसल में नहीं मिलता हैं. पाटिल के अनुसार इसमे कृषि विभाग कि तरफ से पूरा सहयोग मिलता मिलता हैं और पखारा योजना से अच्छा अनुदान भी आसानी से मिल जाता हैं. वहीं जालना जिले किसान भी इसकी खेती अधिक करते हैं.
महाराष्ट्र के बीड, लातूर और जालना में रेशम की खेती हो रही है. इसलिए यहां की मंडियों में इसकी अच्छी आवक देखी जा सकती है. इन दिनों जालना के बाजार में रेशम की आवक बढ़ गई है. चालू वित्त वर्ष में यहां के रेशम बाजार में 38 करोड़ रुपये का कारोबार हुआ है. इससे किसानों भी अच्छा मुनाफा हो रहा है. साल 2018-2019 को अस्तित्व में आई जालना कृषि उपज बाजार समिति के इस रेशम बाजार में रेशम किसानों का दबदबा है. राज्य के कुछ रेशम बाजारों में जालना रेशम और बीड़ बाजार की प्रतिष्ठा पिछले 5 वर्षों में बढ़ी है. यहां पर रेशम बेचने के लिए उत्तरी महाराष्ट्र, पश्चिमी महाराष्ट्र, विदर्भ, मराठवाड़ा और गुजरात राज्यों के किसान आ रहे हैं. रेशम उत्पादन से होने वाली आमदनी से कई किसान खुश हैं.
मराठवाड़ा के विदर्भ में रेशम उत्पादन के किसानों की निकट और सही बाजार तक पहुंचा है, जिससे खेती के क्षेत्र में भी तुलनात्मक रूप से वृद्धि हुई है. अकेले जालना जिले में पिछले साल 853 एकड़ में रेशम उत्पादन की खेती की गई थी. इसे मिलाकर यह रकबा 1 हजार 400 एकड़ हो गया है.
वर्तमान में अन्य कृषि जिंसों का बाजार मंदा है. कई फसलों के बाजार भाव गिरे हुए हैं. लेकिन रेशम की खेती करने वाले किसानों को अच्छा मुनाफा हो रहा हैं. रेशम किसान खुश हैं क्योंकि रेशम की कीमतें उन्हें अच्छा मिल अरहा हैं. अन्य किसान भी अब मुख्य फसलों को रेशम की खेती और रुख कर रहे हैं.
लातूर जिले के रेनापुर तहसील में खरोला गांव के रहने वाले सिद्धेश्वर भगवान कारले भी रेशम की खेती करते हैं. उन्होंने डेढ़ एकड़ क्षेत्र में रेशम की खेती की है, जिसमें से उन्होंने एक साल में दस लाख रुपयों की कमाई कर दिखाई है. उन्होंने बताया की रेशम की खेती में हर 3 महीने में एक बार रेशम का क्रॉप लिया जाता है, जिसके लिए पच्चीस हजार रुपयों की लागत लगती है. वहीं पर इससे लगभग ढाई लाख रुपयों की कमाई भी हो जाती है. इस हिसाब से एक साल में 4 बार रेशम का क्रॉप लिया जाता है, जिससे 10 लाख रुपयों का मुनाफा इस खेतीं से सिर्फ 1 साल में मिलता है.
रेशम खेती में शहतूत के पेड़ों का महत्वपूर्ण कार्य होता है. इसी शहतूत के पत्तों को रेशम कीट खाकर रेशम बनाते हैं. जिसके चलते सिद्धेश्वर कारले ने अपने डेढ़ एकड़ क्षेत्र में शहतूत के पेड़ों का बगीचा लगाया है. इसी बगीचे से शहतूत की पत्तियों को तोड़कर नेट पर रखे गए रेशम कीट को खाने के लिए डाला जाता है. शहतूत की पत्तियां रेशम कीट का पसंदीदा खाना होने के कारण कीट इसे खाकर अधिक मात्रा में रेशम का उत्पादन करते हैं. (इनपुट अनिकेत जाधव )
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today