देश में केले की करीब पांच सौ किस्में हैं, लेकिन व्यवसायिक तौर पर 15 से 20 का ही इस्तेमाल होता है. इन सबकी खासियत अलग-अलग होती है. स्वाद और पैदावार में सब अलग-अलग होते हैं. स्थान, जलवायु और अलग-अलग मिट्टी में इसका स्वाद और उत्पादन अलग हो जाता है. केला कभी अकेला नहीं उगता है. इसके एक गुच्छे में 7-8 से लेकर 38-40 तक की संख्या होती है. महाराष्ट्र में जलगांव और सोलापुर का केला सबसे अच्छा माना जाता है. क्योंकि यहां के केले की न सिर्फ पैदावार अच्छी है बल्कि स्वाद से भरपूर होता है. इसलिए एक्सपोर्ट में इन्हीं दो जगहों का केला सबसे ज्यादा जाता है. वहीं लाल केले की एक गुच्छे में 6 से 7 तक की संख्या होता हैं.
केला किसान संघ के अध्यक्ष किरण चव्हाण ने किसान तक से बातचीत में कहा कि भौगोलिक परिस्थितियों पर निर्भर करता है कि केले के एक गुच्छे में कितने पीस होंगे. मिट्टी अच्छी होगी और बहुत अधिक व बहुत कम तापमान नहीं होगा तो पैदावार अच्छी होगी. पैदावार कैसी होगी इसमें मिट्टी की गुणवत्ता और तापमान काफी अहम है. जिस मिट्टी में जड़ अच्छी तरह से फैलती है. वहां पर पैदावार बहुत अच्छी होगी. राज्य में ज्यादार किसान काली मिट्टी में केले कि खेती करते है. इससे उन्हें रिजल्ट भी अच्छा मिला है. वहीं अब कुछ जिलों में कई किसान काली मिट्टी के उपर पीली मिट्टी बिछकर नया प्रयोग कर अच्छा उत्पादन ले रहे हैं.
चव्हाण ने कहा कि टिश्यू कल्चर वाले केले के गुच्छे में केलों की संख्या ज्यादा होती है. यह कई बार तकनीक और वैराइटी पर भी निर्भर करता है. इस वक्त केले की जी-9 किस्म टिशु कल्चर केले की खेती जमकर हो रही है. क्योंकि इसके किस्म के पौधे छोटे और मजबूत होते हैं. केले की दूसरी प्रजाति जहां 14 से 15 महीने तैयार होती है, वहीं जी-9 प्रजाति का केला 9 से 10 महीने में तैयार हो जाती है. उत्पादन अच्छा मिलता है.
एक्सपोर्ट के लिए उस केले की वैल्यू ज्यादा होती है, जिसे जीआई यानी जियोग्राफिकल इंडीकेशन मिला हुआ होता है. जलगांव के केले को जीआई मिला हुआ है. इसे भुसावली केला भी कहते हैं. महाराष्ट्र का भुसावल पूरे देश में केला उत्पादन के लिए मशहूर है. भुसावल जलगांव जिले का हिस्सा है. केला उत्पादन में महाराष्ट्र तीसरे स्थान पर है, लेकिन एक्सपोर्ट के मामले में नंबर वन है. भारत दुनिया के प्रमुख केला उत्पादक देशों में से एक है. यह वर्ल्ड का लगभग 25 प्रतिशत केला पैदा होता है.
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