राज्य सरकार ने किसानों से अपील की है कि वे अब सिर्फ परंपरागत खेती पर निर्भर न रहें, बल्कि तकनीक आधारित खेती, बागवानी और खाद्य प्रसंस्करण जैसे नए विकल्पों को अपनाएं. ग्वालियर में गुरुवार को दो दिवसीय राज्य स्तरीय कार्यशाला की शुरुआत हुई, जिसमें उद्यानिकी और खाद्य प्रसंस्करण विभाग के अधिकारी, कृषि वैज्ञानिक और कई प्रगतिशील किसान शामिल हुए. कार्यशाला में उद्यानिकी मंत्री ने कहा कि जलवायु बदलाव और बाजार की चुनौतियों के बीच किसानों की आमदनी तभी बढ़ सकती है, जब वे पारंपरिक खेती के साथ बागवानी और प्रोसेसिंग पर ध्यान देंगे.
मंत्री ने कार्यशाला में सरकार की नई ‘एक बगिया मां के नाम’ योजना की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि इस योजना के तहत अगर कोई महिला किसान अपने खेत में फलदार पौधों की बगिया लगाती है तो उसे तीन लाख रुपये तक की सब्सिडी दी जाएगी. योजना का उद्देश्य गांवों में छोटे स्तर पर बागवानी को बढ़ावा देना है.
उन्होने कहा कि किसानों की मेहनत के कारण लगातार खाद्यान उत्पादन में मध्यप्रदेश देश में पहले स्थान पर है. उन्होंने कहा कि पहले प्रदेश के किसान फसलों की सिंचाई के लिए काफी परेशान रहते थे, लेकिन जब से नदी जोड़ो अभियान चला है और नए डेम बने हैं, तब से सिंचाई का रकबा काफी बढ़ा है, जिस कारण फसल उत्पादन भी बढ़ा है.
विशेषज्ञों ने कहा कि केवल मंडियों पर निर्भर रहना अब घाटे का सौदा है. किसानों को प्रोसेसिंग यूनिट या स्थानीय स्तर पर मार्केटिंग के नए रास्ते तलाशने होंगे. इससे उत्पादन की लागत घटेगी और मुनाफा बढ़ेगा.
कार्यशाला में किसानों को रासायनिक कीटनाशकों के अंधाधुंध इस्तेमाल से बचने की सलाह दी गई. जैविक खेती को सुरक्षित विकल्प बताया गया. विशेषज्ञों ने बताया कि इससे मिट्टी की उर्वरता भी बरकरार रहेगी और फसल की गुणवत्ता बेहतर होगी.
कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने कहा कि ड्रिप सिंचाई, उन्नत किस्मों के बीज और आधुनिक मशीनों का इस्तेमाल करने वाले किसान अब ज्यादा उत्पादन ले रहे हैं. किसानों को कृषि अनुसंधानों से जुड़ने और योजनाओं के लिए समय पर पंजीयन कराने की सलाह दी गई.
कार्यशाला में किसानों को यह भी बताया गया कि मशीनरी और उपकरणों की खरीद में सावधानी बरतें. सिर्फ ISI मार्क वाली प्रमाणित मशीनें ही इस्तेमाल करें, ताकि सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सके और खराब गुणवत्ता से नुकसान न हो.
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