केंद्र सरकार देश में पाम की खेती को बढ़ावा दे रही है. इसकी वजह है खाद्य तेलों के क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाना और आयात पर होने वाले खर्च को कम करना. देश के कई राज्यों में पाम की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है और इसके लिए किसानों को तरह-तरह की मदद भी दी जा रही है. इस बीच एक शिकायत ये उठी थी कि पाम का पौधा पानी अधिक सोखता है, इसलिए उसकी खेती को जंगल के इलाकों में बढ़ावा दिया जा रहा है. इस भ्रम को दूर करते हुए केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने साफ कर दिया कि जंगल में पाम की खेती को प्रमोट नहीं किया जा रहा बल्कि कुछ राज्यों में इसकी खेती पर जोर है.
पाम की खेती को लेकर इस तरह के सवाल उठे थे कि जंगल के इलाके में इसे बढ़ावा देने से जैव विविधता पर खतरा होगा. इस बात पर कृषि मंत्री ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में बताया कि पाम की खेती गैर-वन क्षेत्र और कृषि क्षेत्रों में करने की सिफारिश की गई है और इस पर अमल भी किया जा रहा है. इस खेती के साथ कुछ फसलों की इंटरक्रॉपिंग की भी जा रही है ताकि किसानों को अन्य फसलों से कमाई हो सके. चूंकि पाम का पौधा तैयार होने में अधिक समय लेता है, इसलिए इंटरक्रॉपिंग से अन्य फसलों की खेती से किसान कमाई बढ़ा सकते हैं.
पाम की खेती के बारे में जानकारी देते हुए कृषि मंत्री ने बताया कि यह पानी की उपलब्धता को बिल्कुल भी प्रभावित नहीं करती है और कई फसलों जैसे केला, गन्ना और धान से कम पानी सोखता है. इसकी खेती पर आईसीएआर ने एक रिसर्च भी किया है और उसकी सिफारिशों के आधार पर ही पाम की खेती को उत्तर पूर्व, अंडमान निकोबार के राज्यों में बढ़ावा दिया जा रहा है. इन राज्यों के मौसम और मिट्टी की संरचना को देखते हुए पाम की खेती की सिफारिश की गई है.
पाम तेल के महत्व को देखते हुए सरकार इसकी खेती को बढ़ावा दे रही है. इसकी खेती बढ़ने से खाद्य तेलों के आयात का बोझ कुछ कम होगा. इसके तेल का उपयोग खाना बनाने, बेक करने और फ्राई करने में मुख्य तौर पर प्रयोग होता है. इसके अलावा कॉस्मेटिक्स, डिटरजेंट और बायोफ्यूल में भी इसका प्रयोग होता है. औद्योगिक इस्तेमाल की बात करें तो इसकी मदद से साबुन और बायोडीजल भी बनाए जाते हैं. इसके कई प्रयोगों को देखते हुए सरकार इसकी खेती को बढ़ावा दे रही है.
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