Guava Disease: सावधान! अगस्त में अमरूद बाग को सुखा देता है ये खतनाक रोग, जानिए कैसे बचाएं बागवानी

Guava Disease: सावधान! अगस्त में अमरूद बाग को सुखा देता है ये खतनाक रोग, जानिए कैसे बचाएं बागवानी

अगस्त से अक्टूबर के बीच अमरूद का उकठा रोग बागानों के लिए जानलेवा साबित होता है. फ्यूजेरियम फंगस से फैलने वाला यह मिट्टी जनित रोग पत्तियों को पीला कर सुखा देता है, अंततः पूरा पेड़ मर जाता है, जिससे 100% तक नुकसान हो सकता है. इस रोग की समय पर पहचान और एकीकृत प्रबंधन ही आपके बाग को इस विनाशकारी रोग से बचा सकता है जिसके बारे डिटेल जानकारी दी गई है.

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Guava Disease: सावधान! अगस्त में अमरूद बाग को सुखा देता है ये खतनाक रोग, जानिए कैसे बचाएं बागवानीअमरूद की खेती को फंगस से बचाना जरूरी

अमरूद भारत के लगभग सभी राज्यों में उगाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण फल फसल है. इसकी व्यापक उपलब्धता और पोषण गुणों के कारण यह काफी पसंद की जाती है. हालांकि, अमरूद में उकठा रोग एक बेहद खतरनाक और विनाशकारी रोग है. जब यह रोग सूत्रकृमियों (nematodes) की उपस्थिति के साथ जुड़ जाता है, तो यह फसल को और भी गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है. इस परिस्थिति में, रोग के कारक जीव की सही पहचान और सटीक निदान बेहद ज़रूरी हो जाता है. यह रोग मिट्टी जनित होता है, अतः इसके नियंत्रण में कई चुनौतियां आती हैं. यह रोग भारत के विभिन्न हिस्सों में तेज़ी से फैल रहा है. अमरूद में उकठा रोग का प्रभाव केवल पौधे की वृद्धि और उत्पादन पर ही नहीं पड़ता, बल्कि यह रोग पूरे बाग को समाप्त करने की क्षमता रखता है. इस रोग की समय पर पहचान और एकीकृत प्रबंधन ही आपके बाग को इस विनाशकारी रोग से बचा सकता है.

बागों पर अगस्त में मंडराता है बड़ा खतरा

यह रोग ख़ास तौर पर अगस्त से अक्टूबर के महीनों में ज़्यादा फैलता है. यह रोग अक्सर पत्तियों के पीले पड़ने और मुरझाने से शुरू होता है, जिसके बाद शाखाएं सूखने लगती हैं. गंभीर मामलों में, पूरा पौधा अपेक्षाकृत कम समय में, कभी-कभी कुछ हफ्तों में, पत्तियों से रहित होकर मर सकता है. हालांकि कुछ पेड़ों को पूरी तरह से सूखने में एक साल भी लग सकता है. यह रोग युवा पेड़ों या पौधों की तुलना में पुराने पेड़ों में ज़्यादा गंभीर होता है. अमरूद का उकठा रोग उत्पादन में भारी कमी ला सकता है. कुछ रिपोर्टों के अनुसार, इस रोग के कारण उपज में 30 फीसदी तक का नुकसान हो सकता है. गंभीर मामलों में, यह रोग पेड़ की पूरी तरह से मौत का कारण बन सकता है, जिससे 100 फीसदी तक उपज का नुकसान हो सकता है.

ऐसे सुख जाता है पूरा अमरूद का पेड़

रोग का पहला संकेत अक्सर पत्तियों का पीला पड़ना होता है, खासकर निचली शाखाओं की पत्तियों का. इन पत्तियों के सिरे हल्के मुड़ सकते हैं. जैसे-जैसे रोग बढ़ता है, पत्तियां लाल रंग की हो सकती हैं और समय से पहले झड़ सकती हैं. इसके बाद तने पर भूरापन या रंग में बदलाव दिख सकता है. अंदर के संवहन ऊतक का रंग भी बदल सकता है. शाखाएं धीरे-धीरे सिरे से नीचे की ओर सूखना शुरू कर देती हैं. कुछ मामलों में, संक्रमण पूरे तने को घेर लेता है, जिससे पूरा पौधा तेज़ी से मुरझा जाता है. पौधे की महीन जड़ों पर काली धारियां दिख सकती हैं, जो छाल हटाने पर ज़्यादा साफ़ नज़र आती हैं. जड़ों में सड़न के लक्षण भी दिख सकते हैं, खासकर पौधे के निचले हिस्से में. जड़ की छाल आसानी से कॉर्टेक्स से अलग हो सकती है. संक्रमित फल छोटे, कठोर और पथरीले हो सकते हैं, और उनमें सड़न के लक्षण भी दिख सकते हैं.

जानिए रोकथाम के कारगर उपाय

उकठा रोग के रोकथाम के लिए खेत की मिट्टी में जिप्सम का प्रयोग 500-1000 किग्रा/हेक्टेयर देने से मिट्टी में मौजूद रोगजनकों की सक्रियता कम होती है. जैविक खाद जैसे गोबर की खाद, कम्पोस्ट और संतुलित उर्वरक NPK का उपयोग मिट्टी की गुणवत्ता सुधारता है और पौधों की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है.

जैविक नियंत्रण 
ट्राइकोडर्मा spp. जैसे जैविक कवकनाशी ट्राइकोडर्मा हार्ज़ियानम ट्राइकोडर्मा विरिडे का 50–100 ग्राम प्रति पौधा की दर से प्रयोग करें. इसे जड़ों के पास मिट्टी में मिलाकर सिंचाई करें. वेसिकुलर अर्बस्कुलर माइकोराइजा (VAM) का 5 किलोग्राम प्रति पौधा की दर से उपयोग करने से पौधों की वृद्धि और रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है. जैविक जीवाणु जैसे स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस और बेसिलस एमाइलोलिक्विफेशियंस भी प्रभावी जैव-नियंत्रक एजेंट हैं.

केमिकल निंयत्रण 
कर्बेन्डाजिम 50% WP फफूंदनाशी का उपयोग निवारक उपाय के रूप में मॉनसून से पहले करें. 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर, प्रत्येक पौधे की जड़ों के पास 20-30 लीटर घोल से मृदा डेंचिंग करें और इस प्रक्रिया को 20 दिन के अंतराल पर दोहराएं. जिंक सल्फेट और डाय-अमोनियम फॉस्फेट (DAP) के मिश्रण का छिड़काव पत्तियों पर करें. इससे पौधों की पोषण स्थिति बेहतर होती है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है.

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