बारिश की पहली बूंद गिरते ही जैसे ही मौसम सुहावना होता है, चौराहों, हाइवे किनारे और गलियों के नुक्कड़ों पर भुट्टे की खुशबू हर किसी को अपनी ओर खींच लेती है. चाहे वो उबला हुआ हो या अंगीठी पर भुना हुआ, हर कोई एक भुट्टा जरूर खाना चाहता है. यही वजह है कि इस मौसम में स्वीट कॉर्न की मांग अचानक बढ़ जाती है और किसान इसका फायदा उठाने लगते हैं. खासकर वे किसान जो शहरों के पास रहते हैं, उन्हें इसका अच्छा दाम मिल जाता है. ऐसे में अब स्वीट कॉर्न सिर्फ स्वाद ही नहीं बल्कि किसानों की आमदनी का मीठा जरिया भी बन चुका है. इसकी खेती के लिए उपयुक्त जल निकासी की व्यवस्था जरूरी होती है, जिससे फसल जलभराव से बच सके. खास बात यह है कि इसकी खेती पूरे भारत में की जा सकती है, लेकिन उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में बड़े स्तर पर किसान इसे उगा रहे हैं.
स्वीट कॉर्न (मीठी मक्का) की खेती कम समय में अधिक मुनाफा कमाने का एक बेहतर विकल्प बनती जा रही है. यह फसल मात्र 60 से 90 दिनों में तैयार हो जाती है, जिससे किसानों को जल्दी आय प्राप्त होती है. बाजार में इसकी मांग और कीमत दोनों ही अच्छी होती है, खासकर बारिश के मौसम में. कई प्रगतिशील किसान एक एकड़ भूमि से 1.5 से 2 लाख रुपये तक की आमदनी आसानी से कमा रहे हैं. स्वीट कॉर्न की खेती वैसे तो बिल्कुल मक्के की तरह ही होती है, लेकिन इसका एक फायदा ये है कि इसे फसल पकने से पहले ही तोड़ लिया जाता है, जिससे कम समय में फसल तैयार हो जाती है और किसान जल्दी मुनाफा कमा लेते हैं. उत्तर भारत में इसकी बुवाई खरीफ सीजन में यानी जून-जुलाई में की जाती है. अब बात करते हैं उन उन्नत किस्मों की जो किसानों के लिए वरदान साबित हो रही हैं.
पूसा सुपर स्वीट कॉर्न-1- जो 'श्रंकेन-2' आधारित हाईब्रिड है. इसमें मिठास बहुत अधिक होती है और इसकी बिक्स वैल्यू 15.9 फीसदी है. ये किस्म लगभग 78 दिनों में तैयार हो जाती है और प्रति एकड़ 50-52 क्विंटल टन तक ग्रीन कॉब की उपज देती है. यह किस्म उत्तर भारत, पहाड़ी इलाकों और प्रायद्वीपीय क्षेत्रों के लिए बेहतर है.
सीएमवीएल स्वीट कॉर्न-1-जो वर्षा आधारित इलाकों के लिए खासतौर पर विकसित की गई है. समतल जमीन पर यह 70-72 दिनों में तैयार हो जाती है और 40 से 42 क्विंटल प्रति क्विंटल उपज देती है. यह रोग प्रतिरोधी है और कम पानी वाले इलाकों में भी बेहतर प्रदर्शन करती है.
क्यूएमएचएससी-1182-ये प्रोसेसिंग इंडस्ट्री के लिए बेहतर स्वीट कॉर्न है. यह स्वाद में बेहतर, लंबी भुट्टियों वाली और ज्यादा उपज देने वाली किस्म है. इसकी खेती प्रोसेसिंग यूनिट्स के लिए करने वाले किसानों के लिए बेहद फायदेमंद हो सकती है.
इनके अलावा पूसा सुपर स्वीट कॉर्न-2, वीएल संकर-2, प्रिया, माधुरी, न्यूजी-260, अल्मोड़ा स्वीट कॉर्न, ऑरेंज स्वीट कॉर्न, एचएससी-1, विन स्वीट कॉर्न जैसी और भी कई किस्में हैं, जिन्हें अलग-अलग क्षेत्रों में सफलतापूर्वक उगाया जा रहा है.
स्वीट कॉर्न की अच्छी उपज के प्रति एकड़ 4-5 किलो बीज पर्याप्त रहता है. स्वीट कॉर्न की बुवाई लाइन से लाइन 60 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 30 सेमी रखना उचित रहता है. बीज को लगभग 5 सेमी गहराई में बोना चाहिए और मल्टी-क्रॉप सीड ड्रिल जैसी मशीनों से बुवाई करने पर अधिक सटीकता मिलती है. अगर मिट्टी की जांच न हो पाई हो, तो जल्दी पकने वाली किस्मों के लिए प्रति एकड़ 45-50 किलो नाइट्रोजन, 25 किलो फास्फोरस और 16 किलो पोटाश देना चाहिए. जबकि देर से पकने वाली किस्मों के लिए नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाकर 60 किलो की जा सकती है. नाइट्रोजन की खुराक को तीन-चार बार में बांटकर देना लाभकारी होता है. बुवाई के समय, चार पत्ते आने पर, पौधे के दो फीट लंबा होने पर और नर फूल निकलते समय नाइट्रोजन देना चाहिए.
जब भुट्टियों से दूधिया रस निकलने लगे, तभी तुड़ाई कर लेनी चाहिए. कटाई सुबह या शाम के समय करें, ताकि भुट्टी अधिक समय तक ताजा बनी रहे. लेकिन ध्यान रखें कि कटाई के बाद जल्दी से जल्दी बाजार में बेच दें, क्योंकि ज्यादा समय स्टोर करने पर इसकी मिठास कम हो जाती है. इस प्रकार,अगर किसान वैज्ञानिक तरीके से स्वीट कॉर्न की उन्नत किस्मों के साथ खेती करें, तो कम समय में ज्यादा मुनाफा कमाना संभव है. शहरी बाजारों की बढ़ती मांग और प्रोसेसिंग सेक्टर की संभावनाएं इस फसल को भविष्य का एक सशक्त विकल्प बना रही हैं.
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