ओडिशा में इस तरह से हुई मिलेट मिशन की शुरुआत, सात जिलों में चलाया गया था कार्यक्रम

ओडिशा में इस तरह से हुई मिलेट मिशन की शुरुआत, सात जिलों में चलाया गया था कार्यक्रम

समय के साथ इन इलाकों में पिछले दो दशकों में बाजरे की खेती में 60-70 फीसदी की कमी दर्ज की गई थी.इसके लिए किसानों को फिर से तैयार करना परेशानी थी क्योंकि अधिक किसान धान या रागी की खेती को अपना चुके थे.

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ओडिशा में इस तरह से हुई मिलेट मिशन की शुरुआत, सात जिलों में चलाया गया था कार्यक्रमओडिशा की महिला किसान, फोटोः किसान तक

मोटे अनाजों की खेती को बढ़ावा देने के लिए और भोजन के तौर पर इसका इस्तेमाल बढ़ाने के उद्देश्य से लागातार अभियान चलाए जा रहे हैं. लोगों को इसके प्रति जागरूक करने के लिए वर्ष 2023 को अंतराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष (International Year Of Millets-2023) के तौर पर मनाने के निर्णय किया गया है. इससे पहले ही ओडिशा में भी मोटे अनाजों की खेती को बढ़ावा देने के लिए अभियान की शुरूआत की गई थी, इस अभियान में ने ओडिशा में जबरदस्त सफलता हासिल की है. कहानी ये है क‍ि राज्य के आदिवासी बहुल इलाकों में कुपोषण को हटाने में मोटे अनाजों ने महत्वपूर्ण भू‍म‍िका न‍िभाई है. 

2017 में शुरू क‍िया था अभ‍ियान   

ओडिशा में वर्ष 2017 में कृषि और किसान मंत्रालय के सहयोग से ओडिशा मिलेट मिशन (Odisha Millets Mission) को लॉन्च किया गया था. शुरुआत में इस मिशन को राज्य के सात जिलों के 30 प्रखंडों में लाया गया था.मिलेट मिशन की शुरुआत में इसका बजट पांच सालों के लिए 65.54 करोड़ रुपए का रखा गया था. पांच सालों तक चरणबद्ध तरीके से इस मिशन को चलाया गया. हालांकि शुरुआत में इस मिशन को शुरु करने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा था. किसानों का विश्वास जीतना इतना आसान नहीं था.

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कार्यक्रम लॉन्च करने से पहले हुई थी तैयारी

ओडिशा मिलेट मिशन राष्ट्रीय समन्वयक दिनेश वासन बताते हैं कि मिशन की लॉन्चिंग भले ही 2017 में की गई थी पर इसके लिए जमीनी स्तर पर 2016 से कार्य शुरू कर दिया गया था. 2016 में एक कार्यशाला का आयोजन किया गया था. जिसमें मोटे अनाजों की खेती के क्षेत्र में कार्य करने वाले विभिन्न एनजीओ के अलावा कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना सरकार में कार्य करने वाले विशेषज्ञ शामिल हुए थे. मिशन की सफलता के लिए इनसे सुझाव मांगा गया था और शुरुआती दौर में आने वाली समस्याओं के समाधान के उपायों पर चर्चा की गई थी. 

दो दशक में खेती में आयी थी गिरावट

अधिक से अधिक किसानों को इसकी खेती से जोड़ने में परेशानी नहीं हो इसके लिए उन्हें जहां पर पहले से ही इसकी खेती होती है उन जगहों को इसकी खेती करने के लिए चुना गया. हालांकि यह एक परेशानी थी क्योंकि समय के साथ इन इलाकों में पिछले दो दशकों में बाजरे की खेती में 60-70 फीसदी की कमी दर्ज की गई थी.इसके लिए किसानों को फिर से तैयार करना परेशानी थी क्योंकि अधिक किसान धान की खेती को अपना चुके थे. किसानों को फिर से मोटे अनाज की खेती करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए किसान संगठन, एफपीओ, महिला समूहों और लोकल संस्थाओं से मदद ली गई. 

किसानों की समस्या को समझने का किया गया प्रयास

मोटे अनाज की खेती में आने वाली परेशानियों का समझने के लिए लगभग 46 छात्रों को 50 दिनों तक विभिन्न गांवों में रखा गया. छात्रों ने वहां पर स्थानीय स्तर पर किसानों और व्यापारियों से बात करके बाजरे की खती और मार्केटिंग में आने वाली समस्याओं के बारे में समझने का प्रयास किया गया.इससे जानकारी मिली की जंगली जानवर से भी फसल को काफी नुकसान पहुंचता है. पर इससे संबंधित किसानों की सभी प्रकार की समस्याओं के समाधान के प्रयास किया गया. 


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