मछली पालन युवाओं के लिए रोजगार का एक बेहतर विकल्प हो सकता है. इसके जरिए कई युवा सफलता की कहानी लिख रहे हैं और तरक्की कर रहे हैं. झारखंड में भी कई युवाओं ने मछली पालन के जरिए सफलता की नई कहानी लिखी है. पलामू जिले के मछली पालक मुकेश कुमार चौधरी भी एक ऐसे ही किसान हैं, जिन्होंने पलामू जैसे जिले में मछली पालन करने में सफलता हासिल की है. दरअसल पलामू जिले की गिनती झारखंड के ड्राई जोन वाले जिलों में होती है. ऐसे में यहां पर मछली पालन को रोजगार के तौर पर अपनाना किसी चुनौती से कम नहीं है.
पर इन तमाम चुनौतियों के बावजूद मुकेश कुमार सफलतापूर्वक मछली पालन कर रहे हैं. इतना ही नहीं उन्होंने अपने साथ-साथ अन्य 20 से 30 लोगों को भी रोजगार दिया है. मुकेश चौधरी बताते हैं कि नौवीं क्लास से वो मछली पालन कर रहे थे. उनके घर में उनके पूर्वजों के आजीविका का यही जरिया था, यही कारण रहा कि मुकेश चौधरी भी इस पेशे में आ गए. बचपन से घर में हो रहे मछली पालन को देखकर बड़े हुए तो उन्हें इसके बारे में काफी कुछ जानकारी भी थी. हालांकि अब वो मछली पालन में वैज्ञानिक तरीकों का भी इस्तेमाल करते हैं. इससे उनकी कमाई काफी बढ़ी है. इसके साथ ही वो झारखंड सरकार द्वारा आयोजित प्रशिक्षण में भी शामिल हो चुके हैं.
15-20 तालाबों में करते हैं मछली पालन
फिलहाल मुकेश चौधरी के पास 15 से 20 तालाब हैं जहां पर वो मछली पालन करते हैं. इनमें से कुछ तालाबों को पहले से ही उन्होंने मत्स्य विभाग से खरीद लिया है, जबकि कुछ तालाबों को उन्होंने लीज पर लिया है. इन तालाबों में कुछ तालाब सूख जाते हैं जबकि कुछ में साल भर पानी रहता है. पानी की कमी की परेशानी को देखते हुए मुकेश मछली बीज का उत्पादन करते हैं. इसके अलावा जिन तालाबों में साल भर पानी रहता है वहां पर वो बड़ी मछलियों का पालन करते हैं.
मछली बीज का करते हैं कारोबार
मुकेश चौधरी विभाग के अलावा सोन नदी से जीरा मंगवाते हैं. इसके बाद उन मछलियों को अपने नर्सरी तालाब में डालते हैं. जहां पर 45-60 दिन में फिंगर के आकार की मछलियां वो फिर दूसरे मत्स्य पालकों को बेचते हैं. जुलाई से नवंबर महीने तक मुकेश बीज बेचने का कार्य करते हैं. इसके बाद नवंबर में जब मछलियों का आकार बड़ा हो जाता है तो वह फिंगर या फिर इयर आकार की मछली बेचते हैं. इस बीच जो मछलियां बच जाती हैं उसे वो सदाबहार तालाब में डाल देते हैं.
इतनी होती है कमाई
मुकेश के पास से झारखंड के अलावा बिहार और छत्तीसगढ़ के भी मछलीपालक आते हैं और जीरा के अलावा फिंगर और इयर आकार की मछलियां खरीद कर ले जाते हैं. मछली का बीज बेचकर उन्हें प्रतिवर्ष 10-12 लाख रुपए का मुनाफा होता है, जबकि बड़ी मछलयों को स्थानीय बाजार में बेचकर वह चार से पांच लाख रुपए की कमाई कर लेते हैं. फिलहाल उन्होंने पलामू में प्रयोग के तौर पर पंगास और महाझींगा मछली पालन करने की तैयारी की है.
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