एमएस स्वामीनाथन, भारतीय कृषि के एक नायाब शख़्सियत जिनकी एक सोच ने भारत को हरित क्रांति दे दी. आजादी के बाद आगे बढ़ने के लिए जूझ रहे देश को अकाल जैसी गंभीर त्रासदी से मुक्ति दिला दी. उनके मेहनत का ही फल है कि जो देश किसी वक्त अकाल जैसी विभिषिका का सामना करते देश की जनता का पेट भरने में असमर्थ था, आज वही भारत खाद्य उत्पादन के मामले के मामले में आत्मनिर्भर है और इतना ही नहीं दुनिया के कई देश चावल के लिए भारत पर आश्रित हैं. यह एमएस स्वामीनाथन की ही देन है कि आज भारत विश्व में बेहतरीन किस्मों के चावल का नंबर एक निर्यातक है. यह उनका ही योगदान है कभी चावल की कमी झेलने वाला देश पिछले 10 सालों से चावल का नंबर एक निर्यातक बना हुआ है.
किसान तक से बात करते हुए वरिष्ठ वैज्ञानिक पद्मश्री विजय पाल सिंह ने बताया कि आज हम चावल में जो क्रांति कर रहे हैं और निर्यात कर रहे हैं उसमें एमएस स्वामीनाथन जी का बड़ा योगदान है. आज देश को बासमती चावल के एक्सपोर्ट से 35000 करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा हासिल हो रही है, साथ ही देश के अंदर इसका व्यापार हो रहा है. इसका फायदा किसानों को मिल रहा है. इसका पूरा श्रेय उन्हें ही जाता है. एमएस स्वामीनाथन के स्वभाव और प्रोतसाहित करने के गुणों का जिक्र करते हुए विजय पाल सिंह ने बताया कि एमएस स्वामीनाथन ने उन्हें समझाया था कि आप किसान परिवार से हो और आप बासमती क्षेत्र से आते हो इसलिए आपको बासमती की एक अधिक गुणवत्तापूर्ण और अधिक उपज देने वाली किस्म विकसित करनी चाहिए.
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इसके बाद उन्होंने जितना भी जर्म प्लाज्म दुनियाभर से जमा किया वो लाकर उनके सामने रख दिया. उन्होंने बताया कि जब पूसा बासमति 1121 बन रही थी तब उन्होंने स्वामीनाथन को चावल भेजा. चावल को पकाने के बाद स्वामीनाथन ने विजय पाल सिंह को पत्र लिखा और कहा कि इससे बेहतरीन किस्म की चावल आज तक उन्होंने अपने प्लेट पर नहीं देखी थी. इस तरह से वो अपने सहयोगियों का मनोबल बढ़ाते थे. एक और बात का जिक्र करते हुए विजय पाल सिंह ने बताया कि वो साल में दो बार आईआरआई के फील्ड में आते थे और काफी लंबा समय वहां पर बीताते थे. इस दौरान उन्होंने एके सिंह को कहा था एक दिन आप इस डिविजन को दुनिया के मानचित्र पर ले जाओगे. एके आज आईसीएआर के महानिदेशक हैं.
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बासमती चावल पूसा एक के बाजार में आने का जिक्र करते हुए विजय पाल सिंह ने कहा कि स्वामीनाथन ने असम राइस कलेक्शन पर काम किया और इसमें धान की 6000 किस्में आयी. इस दौरान लगातार वो पूरे कार्यक्रम को देखते रहे. फिर स्वामीनाथन ने कहा कि पूसा का नाम मार्केट में जाना चाहिए इसलिए बेहतर उपज और बेहतर किस्म की धान विकसित करनी होगी. इसके बाद पूसा बासमती एक बाजार में आयी जिसने देश के साथ साथ विदेशों में भी अपना रंग जमा लिया. चावल की इस किस्म ने देश में बासमति अनुसंधान और उत्पादन के लिए एक मजबूद आधार तैयार कर दिया. यहां से हुई शुरूआत के बाद देश ने पीछे नहीं देखा और आज विश्व का नंबर एक चावल निर्यातक है.
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