MS Swaminathan: भारत में कैसे आई हर‍ित क्रांत‍ि, क्या था एमएस स्वामीनाथन का योगदान?

MS Swaminathan: भारत में कैसे आई हर‍ित क्रांत‍ि, क्या था एमएस स्वामीनाथन का योगदान?

Green Revolution: हर‍ित क्रांत‍ि के जर‍िए देश को भुखमरी से बाहर न‍िकालने वाले 'नायक' एमएस स्वामीनाथन ने आईपीएस में सेलेक्ट होने के बाद भी कृष‍ि को चुना. बंगाल के अकाल ने बदल द‍िया था मेड‍िकल की पढ़ाई करने का मन. जान‍िए कैसे मैक्स‍िको ले आए गेहूं की बौनी क‍िस्मों का बीज और बदल दी देश की तस्वीर.

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MS Swaminathan: भारत में कैसे आई हर‍ित क्रांत‍ि, क्या था एमएस स्वामीनाथन का योगदान? पूसा कैंपस, द‍िल्ली स्थि‍त गेहूं के खेत में नॉर्मन बोरलॉग के साथ डॉ. एमएस स्वामीनाथन (Photo-IARI).

भारत में हर‍ित क्रांत‍ि के जनक एमएस स्वामीनाथन नहीं रहे. लेक‍िन उनका नाम यहां के इत‍िहास में हमेशा स्वर्णाक्षरों में दर्ज रहेगा. जब खाने की बात आती है तो ‘रोटी’ की बात होती है और रोटी की बात होती है तब गेहूं सबसे आगे खड़ा म‍िलता है. हर‍ित क्रांत‍ि की शुरुआत गेहूं की फसल से ही हुई थी. कृष‍ि जगत की इस क्रांत‍ि से पहले भारत रोटी के लिए अमेरिका के गेहूं का मोहताज था. लेक‍िन कृष‍ि वैज्ञान‍िक एमएस स्वाम‍िनाथन ने अपनी सूझबूझ से भारत को इस संकट से न स‍िर्फ बाहर न‍िकाल ल‍िया बल्क‍ि हमें इस मामले में आत्मन‍िर्भर और न‍िर्यातक बना द‍िया. गेहूं मांगने से लेकर बांटने तक की भारत की इस अन्नयात्रा के वो नायक हैं. तमिलनाडु के कुंभकोणम में 7 अगस्त 1925 को जन्मे स्वामीनाथन ने आज 28 सितंबर 2023 को अंत‍िम सांस ली. 

एक ऐसा शख्स जो मेड‍िकल की पढ़ाई करना चाहता था. एडम‍िशन भी ले ल‍िया था. लेकिन, 1943 के बंगाल अकाल, जिसमें लगभग 30 लाख लोग भूख से मर गए, ने उनका मन बदल दिया. वो खेती को आगे बढ़ाने के ल‍िए कृषि की पढ़ाई करने लगे. आईपीएस की परीक्षा भी पास की, ले‍क‍िन कृष‍ि की पढ़ाई को प्राथम‍िकता दी. क्योंक‍ि उनके मन में भारत को खाद्यान्न संकट से न‍िकालकर लोगों को अकाल और भुखमरी से बचाने का बड़ा लक्ष्य था. अपनी मेहनत की बदौलत कृष‍ि क्षेत्र में उन्होंने वो कर द‍िखाया क‍ि दुन‍िया देखती रह गई. भारत, जहां अकाल आम बात थी, वहां पर 'हरित क्रांति' के लागू होने के बाद से एक भी अकाल नहीं पड़ा.

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इस तरह बढ़ाया गया गेहूं उत्पादन 

साल 1943 में हम बंगाल के अकाल को देख चुके थे. लेक‍िन, दो दशक बीतने के बाद 1964-65 के आसपास भी देश में अन्न का संकट बरकरार था. मॉनसून कमजोर हो गया और फ‍िर अकाल की नौबत आने लगी थी. यह वो दौर था जब हम अमेरिका की पीएल-480 समझौते के तहत हासिल न‍िम्न स्तर का लाल गेहूं खाने को मजबूर थे. इस बीच 1965 में पाक‍िस्तान से युद्ध शुरू हो गया था. अमेरिका भारत को धमकी दे रहा था क‍ि अगर युद्ध नहीं रुका तो गेहूं नहीं म‍िलेगा. हम अमेर‍िका से गेहूं मांग रहे थे. 

इसका मतलब यह नहीं था क‍ि 1964 से पहले भारत में गेहूं की खेती नहीं होती थी. गेहूं की खेती होती थी. लेक‍िन 1950 में उसका एर‍िया 97.5 लाख हेक्टेयर तक ही सीम‍ित था. उत्पादन स‍िर्फ 64.6 लाख मीट्र‍िक टन होता था, जो हमारे खाने के ल‍िए नाकाफी था. सच तो यह है क‍ि गेहूं की कई क‍िस्में भारत में मौजूद थीं. लेक‍िन इन क‍िस्मों के तने काफी लंबे थे. जो रेनफेड यानी इरीगेशन लेस या वर्षा आधारित क्षेत्रों के ल‍िए थीं. लेकि‍न जब बौनी क‍िस्में आईं तब संकट का यह दौर बदलने लगा. इन्हीं बौनी क‍िस्मों को भारत के खेतों तक लाकर हर‍ित क्रांत‍ि करने का श्रेय एमएस स्वामीनाथन को जाता है. 

मैक्स‍िको से ले आए बौनी क‍िस्मों के बीज  

कृष‍ि मंत्रालय के दस्तावेज बताते हैं क‍ि 1964 से पहले भारत में मौजूद अपनी गेहूं की क‍िस्मों में पैदावार काफी कम थी. साल 1950 में प्रत‍ि हेक्टेयर स‍िर्फ 663 क‍िलो गेहूं पैदा होता था. हमारी अपनी क‍िस्मों के गेहूं के तने 115 से 130 सेंटीमीटर तक लंबे हुआ करते थे. ज‍िसकी वजह से वो ग‍िर जाते थे. उन द‍िनों स‍िंथेट‍िक फर्टिलाइजर यूर‍िया भी आ गया था. ऐसे में हमें गेहूं का उत्पादन बढ़ाने के ल‍िए गेहूं की बौनी वैराइटी की जरूरत थी. जो स‍िंचाई और यूर‍िया को सह सके, ग‍िरे नहीं. 

तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने क‍िसी बौनी क‍िस्म के बीज मंगाने की कोश‍िश की. बौनी क‍िस्म का यह सीड मैक्स‍िको के इंटरनेशनल मेज एंड वीट इंप्रूवमेंट सेंटर यानी स‍िमि‍ट (CIMMYT) से भारत लाया गया. उन द‍िनों डॉ. नॉर्मन बोरलॉग स‍िमि‍ट में एग्रीकल्चर र‍िसर्चर थे. वहां वो मैक्सिकन ड्वार्फ (अर्ध-बौनी), उच्च उपज और रोग प्रतिरोधी गेहूं की किस्में विकसित करने में जुटे हुए थे. बौनी क‍िस्मों के गेहूं का बीज भारत के खेतों तक पहुंचाने के काम को मैक्स‍िको से डॉ. बोरलॉग और भारत से डॉ. एमएस स्वामीनाथन देख रहे थे. यह बहुत ही महत्वपूर्ण काम था. 

स्वामीनाथन ने कहां रोपे हर‍ित क्रांत‍ि के बीज 

भारत ने मैक्सिको के स‍िम‍िट से लर्मा रोहो (Lerma Rojo), सोनारा-64, सोनारा-64-A और कुछ अन्य किस्मों के गेहूं के 18,000 टन बीज का इंपोर्ट क‍िया. यह काम स्वामीनाथन के ब‍िना असंभव सा था. उन्हीं की लीडरश‍िप में भारतीय कृष‍ि अनुसंधान संस्थान द‍िल्ली, पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी लुधियाना और पंत नगर एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने द‍िल्ली, हर‍ियाणा और पंजाब के कई स्थानों पर मैक्स‍िको से आए इन बौने गेहूं की क‍िस्मों का ट्रॉयल क‍िया. ट्रायल द‍िल्ली के जौंती गांव में भी हुआ था. टेस्ट में ये बौनी न‍िकलीं और प्रोडक्ट‍िव‍िटी भारतीय क‍िस्मों से कहीं अच्छी थी. 

हमेशा याद रखे जाएंगे स्वामीनाथन.

जब स्वामीनाथन को म‍िली सफलता  

फ‍िर इन तीनों संस्थानों ने 1966 के आसपास इन बौनी क‍िस्मों की मदद से 'कल्याण सोना' नाम से अपनी नई बौनी क‍िस्म व‍िकस‍ित की. दूसरी क‍िस्म थी सोनाल‍िका. यह सॉर्ट ड्यूरेशन की क‍िस्में थीं ज‍िनकी लेट बुवाई भी की जा सकती थी. इन दोनों क‍िस्मों की वजह से भारत के गेहूं उत्पादन में जंप आया. इसील‍िए इस घटना को हम हर‍ित क्रांति के नाम से भी जानते हैं. ज‍िसमें एमएस स्वामीनाथन का सबसे बड़ा योगदान माना जाता है. स्वामीनाथन नारमन बोरलॉग को भी द‍िल्ली के खेतों तक लेकर आए थे, जो दुन‍िया में हर‍ित क्रांत‍ि के जनक थे. 

नई क‍िस्मों का असर यह था क‍ि गेहूं का उत्पादन 1965 में जो सिर्फ 12 मिलियन टन था वो 1968 में बढ़कर 17 मिलियन टन तक हो गया. उस वक्त देश के कृषि मंत्री के पद पर सी. सुब्रमण्यम आसीन थे. उसके बाद भारत ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. आज हमारे पास गेहूं की करीब पांच सौ क‍िस्में हैं. हम 108 म‍िल‍ियन टन गेहूं पैदा करने लगे हैं.

आसान नहीं था हर‍ित क्रांत‍ि का काम

हर‍ित क्रांत‍ि और गेहूं की इस यात्रा की एक कड़ी अभी बाकी है. ज‍िसके तार कोर‍िया और जापान से भी जुड़े हुए हैं. दरअसल, लर्मा रोहो, सोनारा-64 जैसी जो क‍िस्में मैक्स‍िको में डेवलप हुईं, उनमें बौने जीन के स्रोत के रूप में नोरिन-10 किस्म का गेहूं काम आया. ज‍िसका जर्मप्लाज्म कोरिया से जापान और फिर संयुक्त राज्य अमेरिका पहुंचा. क्रॉप वैराइटी इंप्रूवमेंट प्रोग्राम के तहत नोरिन-10 के जीन को इंटरनेशनल मेज एंड वीट इंप्रूवमेंट सेंटर, मैक्स‍िको को भी द‍िया गया. 

नोरिन-10 का उपयोग यहां नॉर्मन बोरलॉग और उनके सहयोगियों द्वारा स्थानीय किस्मों के साथ बौनी किस्मों का उत्पादन करने के लिए किया गया था. नोरिन-10 का तना केवल 60-100 सेमी तक लंबा होता था. इसके दो जीन, Rht1 और Rht2 के जर‍िए गेहूं की ऊंचाई कम हो गई. इससे व‍िकस‍ित नई क‍िस्मों को बाद में दुनिया भर में वितरित किया गया. मतलब साफ है क‍ि परोक्ष रूप से नोरिन 10 ने भारत के गेहूं उत्पादन में मदद की. आज भारत दुन‍िया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक है.

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भारत के असली 'अन्नदाता'

भारतीय कृष‍ि अनुसंधान संस्थान में पढ़े-ल‍िखे स्वामीनाथन को असल मायने में भारत का 'अन्नदाता' कहा जा सकता है. उनकी मदद से धान और दूसरी फसलों में भी कृष‍ि क्रांत‍ि के बीज रोपे गए. उन्हें जैविक विज्ञान के लिए 1961 में शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार मिला. उनके योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने 1989 में स्वामीनाथन को पद्म विभूषण से सम्मानित किया. उन्होंने इतने बड़े देश को भुखमरी से बाहर न‍िकालने में मदद की. 1971 में, उन्हें सामुदायिक नेतृत्व के लिए रेमन मैग्सेसे पुरस्कार मिला. उन्होंने दुन‍िया का पहला वर्ल्ड फूड प्राइस हास‍िल क‍िया. 


 
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