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Jharkhand: इमली घोल रही जिंदगी में मिठास, जानें कैसे किसानों को मिल रही एक्स्ट्रा कमाई

Jharkhand: इमली घोल रही जिंदगी में मिठास, जानें कैसे किसानों को मिल रही एक्स्ट्रा कमाई

आमतौर पर सब्जियों या फसलों की खेती में पूंजी लगानी पड़ती है पर इमली के उत्पादन में पूंजी नहीं लगानी पड़ती है. इमली के उत्पादन में अनियमितता बहुत होती है क्योंकि किसी साल उत्पादन अच्छा होता है, किसी साल उत्पादन कम होता है.

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इमली की ग्रेडिंग करती महिलाएं                फोटोः खालिद हुसैन इमली की ग्रेडिंग करती महिलाएं फोटोः खालिद हुसैन

झारखंड में सब्जियों के अलावा काफी मात्रा में वनोपज का भी उत्पादन होता है. यहां के 26 फीसदी वनक्षेत्र में लाह, चिरौंची, कुसुम, केंदु, इमली और अन्य वनोत्पाद पाए जाते हैं. इससे यहां के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों की आजीविका का एक प्रमुख साधन भी माना जाता है. इसे समझते हुए झारखंड सरकार भी वनोत्पाद को बढ़ावा देने के लिए कार्य कर रही है. झारखंड में कई गैर सरकारी और सरकारी संस्थाएं इस क्षेत्र में काम करती है. जो वनोत्पाद में वैल्यू एडिशन के अलावा मार्केटिंग का भी कार्य करती है. इसका फायदा भी किसानों को मिल रहा है, उन्हें पहले की अपेक्षा अब बेहतर दाम मिल रहे हैं. इन्हीं में से एक इमली भी है, जो इन द‍िनों झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की ज‍िदंगी में म‍िठास घोल रही है. मसलन, क‍िसानों को एक्स्ट्रा कमाई करा रहे हैं. 

इमली प्रमुख तौर पर लगभग नौ महीने की फसल होती है. अप्रैल-मई महीने में इसे तोड़ने के इसके पत्ते झड़ जाते है फिर नए पत्ते और फूल आ जाते हैं. इसके बाद फिर से इसे तोड़ने के के लिए तैयार होने में लगभग नौ महीने का समय लगता है. इसके बाद मार्च-अप्रैल के महीने में फिर यह तोड़ने के लिए तैयार हो जाती है. झारखंड में ट्राइफेड और झामकोफेड जैसी संस्थाएं हैं, जो वनोत्पाद की खरीद-बिक्री का कार्य करती है. गुमला जिले के कामडारा प्रखंड के टूरंडू गांव के किसान प्रदीप बताते हैं कि इमली और अन्य वनोत्पाद किसानों के लिए बिना पूंजी लगाए अतिरिक्त आय का साधन बनते हैं.

इमली के जरिए होती है अतिरिक्त आय

आमतौर पर सब्जियों या फसलों की खेती में पूंजी लगाना पड़ता है, लेक‍िन इमली के उत्पादन में पूंजी नहीं लगाना पड़ता है. इमली के उत्पादन में अनियमितता बहुत होती है क्योंकि किसी साल उत्पादन अच्छा होता है, किसी साल उत्पादन कम होता है. यह पूरी तरह मौसम पर निर्भर करता है. किसान प्रदीप ने बताया की उन्हें इमली से प्रतिवर्ष 15-20 हजार रुपये की अतिरिक्त कमाई हो जाती है.उनके खुद के पास पांच पेड़ हैं, जिससे तीन से चार क्विंटल का उत्पादन प्राप्त होता है. इमली उत्पादन में खाद बीज या कीटनाशक जैसे झंझटों का सामना नहीं करना पड़ता है, लेक‍िन इसे तोड़ने में काफी मेहनत लगता है.पेड़ पर चढ़कर इसे तोड़ना पड़ता है और अगर इस दौरान मौसम खराब हो जाए तो इसकी गुणवत्ता पर इसका खासा असर पड़ता है. 

राज्य में हैं 39 वनधन केंद्र

संस्था जोहार से जुड़े खालिद हुसैन ने बताया कि पूरे राज्य में वनोत्पाद की अच्छे दामों पर खरीद के लिए पूरे राज्य में 39 वनधन केंद्र खोले गए हैं. जो ट्राईफेड के जरिए संचालित किए जाते हैं. इसके अलावा झामकोफेड भी किसानों से इमली की खरीद कर देश और विदेशों के बाजार में भेजने का कार्य करती है. उन्होंने बताया कि वर्ष 2022-23 में 7159 किसानों से इमली के लिए निर्धारित एमएसपी की दर से 79 मीट्रिक टन इमली की खरीद की गई थी. जबकि इमली का कुल उत्पादन 563 मीट्रिक टन रहा. उन्होंने कहा कि कई जगहों पर महिलाओं को प्रोसेंसिग की भी सुविधा दी गई हैं जहां पर वो लोग इमली खरीद कर उसे ईट के आकार का बनाते हैं और बाजार में बेचते हैं.