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हरियाणा: शुरू नहीं हुई सरसों की सरकारी खरीद, व्यापारियों को कम दाम में उपज बेचने को मजबूर किसान

हरियाणा: शुरू नहीं हुई सरसों की सरकारी खरीद, व्यापारियों को कम दाम में उपज बेचने को मजबूर किसान

किसानों का कहना है कि वे छोटी जोत के काश्तकार हैं. इसलिए उनके लिए यह उपयुक्त नहीं है कि वे एमएसपी के इंतजार में लंबे समय तक अपनी उपज को रोक कर रखें. इन किसानों के पास इतनी जगह नहीं है कि वे सरसों को धूप में सुखाएं और फिर उसे स्टोर करें.

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हरियाणा में 28 मार्च से शुरू होगी सरसों की सरकारी खरीद हरियाणा में 28 मार्च से शुरू होगी सरसों की सरकारी खरीद

जिन किसानों ने तमाम तरह की चुनौतियों को पार कर फसलें उगा लीं, उनकी कटाई भी कर ली, अब वे एक नई परेशानी से जूझ रहे हैं. यह परेशानी है स्टोरेज की. करनाल में इस बार सरसों की बंपर पैदावार हुई है और इसकी आवक शुरू हो गई है. लेकिन गरीब किसानों के पास पैदावार रखने की पर्याप्त जगह नहीं है. साथ ही, इन किसानों पर खेती-किसानी का भारी कर्जा है. इससे पार पाने के लिए सरसों के किसान कम दामों पर अपनी उपज प्राइवेट कंपनियों या व्यापारियों को बेचने के लिए मजबूर हैं. इस वजह से उन्हें सरकारी खरीद का लाभ नहीं मिल पा रहा है.

हरियाणा में सरकार ने फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा पहले ही कर दी है. अमूमन हर राज्यों में इस मूल्य की घोषणा पहले ही कर दी जाती है. हरियाणा में हालांकि सरसों की सरकारी खरीद शुरू नहीं हो सकी है. इससे उन किसानों को भारी मुसीबत झेलनी पड़ रही है जिन्होंने पैदावार खेत से निकाल ली है. चूंकि इन किसानों के पास उपज स्टोर करने के लिए पर्याप्त जगह नहीं है, इसलिए मजबूरी में औने-पौने दामों पर व्यापारियों को पैदावार बेची जा रही है.

इससे व्यापारी तो फायदे में जा रहे हैं, पर किसान नुकसान झेलने को मजबूर हैं. अगर वे उपज नहीं बेचेंगे, तो उसके खराबे का डर रहेगा. दूसरी बड़ी समस्या किसानों पर कर्जे की है. किसानों ने कर्ज लेकर खेती की है. ऐसे में उनका ध्यान इस बात पर रहता है कि फसल बेचकर हुई आमदनी से सबसे पहले कर्ज अदायगी की जाए. इसलिए कर्च चुकाने के लिए भी वे व्यापारियों को सरसों बेच रहे हैं. इससे उन्हें सरकारी स्कीम और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का लाभ नहीं मिल पा रहा है.

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किसानों का कहना है कि वे छोटी जोत के काश्तकार हैं. इसलिए उनके लिए यह उपयुक्त नहीं है कि वे एमएसपी के इंतजार में लंबे समय तक अपनी उपज को रोक कर रखें. इन किसानों के पास इतनी जगह नहीं है कि वे सरसों को धूप में सुखाएं और फिर उसे स्टोर करें.

इंद्री ब्लॉक के किसान इशाम सिंह 'दि ट्रिब्यून' से कहते हैं, मैंने दो एकड़ में सरसों की खेती की. अभी हमने पूरी पैदावार को 5,000 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बेच दिया. हम सरकारी खरीद का इंतजार नहीं कर सकते, क्योंकि हमें पैसे चाहिए ताकि आढ़तिए के कर्ज को चुका सकें. अभी व्यापारियों को 450 रुपये प्रति क्विंटल के घाटे के साथ सरसों बेच रहे हैं. लेकिन अपने पास दूसरा कोई विकल्प नहीं है. आढ़तिए को पैसा लौटाना है जिससे ब्याज पर लोन लिया है.

असंध ब्लॉक के किसान शमशेर सिंह कहते हैं, मैंने सरसों की कटनी के तुरंत बाद उपज को बेच दी क्योंकि उसे सुखाने और फिर स्टोर करने के लिए कोई जगह नहीं थी. इस तरह की शिकायतें और भी कई किसानों की हैं जो अपनी उपज को उचित दाम के लिए रोक कर रखना चाहते हैं, मगर उनके पास स्टोर करने के लिए जगह की कमी है. सरकार ने भी अभी एमएसपी पर खरीद शुरू नहीं की है जिससे किसान व्यापारियों को उपज देकर निकल रहे हैं.

किसानों की एक समस्या और भी है जिससे वे एमएसपी पर सरसों बेचने का इंतजार नहीं करना चाहते. जिन किसानों को अपनी उपज सरकारी खरीद में एमएसपी पर बेचनी है, उनके लिए 'मेरी फसल मेरा ब्योरा' पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य है. किसान इस काम को बहुत पेचीदा और थकाऊ मानते हैं. 

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किसान जतिंदर सिंह इस बारे में कहते हैं, हमें फसलों के रजिस्ट्रेशन कराने के बारे में कोई जानकारी नहीं है. बिना रजिस्ट्रेशन कराए हम सरकारी रेट पर उपज नहीं बेच पाएंगे. यही वजह है कि किसान अपनी उपज को जल्दी में बेचकर निकल जाना चाहते हैं, भले ही उन्हें इसका दाम कम क्यों न मिल रहा हो. 

सरकारी खरीद में हो रही देरी पर हाफेड के चेयरमैन कैलाश भगत कहते हैं, सरसों की खरीदी 28 मार्च से शुरू होगी. किसान खरीद को जल्द शुरू करने का अनुरोध कर रहे हैं. इसलिए मैं मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से आग्रह करता हूं कि वे खरीद प्रक्रिया को कुछ पहले शुरू कर दें ताकि सरसों उगाने वाले किसानों को फायदा हो सके.