बिहार में पिछले दो-तीन सालों से आम के छोटे फलों (टिकोले) को लाल पट्टी वाले छेदक (रेड बैंडेड बोरर) कीट के आक्रमण से किसानों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है. इस साल भी आम के किसानों को डर सता है कि ये खतरनाक कीट आम की फसल को नुकसान ना पहुंचाए. इस कीट का प्रकोप बारिश और वातावरण में अत्यधिक नमी होने की वजह से देखा गया है, जिससे किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ा है. अभी तक बिहार के किसी भी जिले से इस कीट के आक्रमण की खबर नहीं है. लेकिन नुकसान से बचने के लिए जरूरी है कि आम के बाग की नियमित निगरानी की जाए. अगर समय से इस कीट का प्रबंधन नहीं किया गया तो भारी नुकसान होने की संभावना रहती है.
डॉ राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा, समस्तीपुर, बिहार के विभागाध्यक्ष, पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी एवं नेमेटोलॉजी, डॉ एस. के. सिंह ने बताया कि यह कीट लार्वा के रूप में आम के फलों पर लगता है. आम का जो भाग सटा हुआ होता है उसी पर लगता है. शुरुआत में ये आम के फल पर काला धब्बा जैसा दाग बना देता है. अगर समय से इसकी रोकथाम नहीं की गई तो ये फल को छेद कर अंदर से सड़ा देता है. कुछ ही दिनों में आम के फल गिर जाते हैं.
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इस कीट को रेड बैंडेड मैंगो कैटरपिलर (RBMC) के नाम से जाना जाता है. यह आम के लिए एक गंभीर खतरा है. इस कीट से 10 से 50 फीसदी के बीच हानि पहुंचा सकता है. इस कीट के अंडे का रंग दूधिया सफेद होता है, लेकिन 2-3 दिनों के बाद क्रिमी रंग में बदल जाता है. शुरू में इस कीट के लार्वा बहुत छोटे होते हैं. इनका रंग गुलाबी होता है और काले सिर पर क्रीम रंग होते हैं. जैसे ही लार्वा बढ़ते हैं, वे चमकीले, गहरे लाल और सफेद रंग के बैंड के साथ चमकदार हो जाते हैं. लार्वा के सिर के पास एक काला 'कॉलर' होता है. यह लंबाई में 2 सेमी तक बढ़ सकता है.
डॉ एस. के. सिंह ने बताया कि एक आम के फल में एक से अधिक लार्वा मौजूद हो सकते हैं और वे अलग-अलग आकार के हो सकते हैं. रेड बैंडेड मैंगो कैटरपिलर आम के फलने के मौसम में और सबसे अधिक आम के फल में गुठली बनने के दौरान की एक बड़ी समस्या है. रेड बैंडेड मैंगो कैटरपिलर गुठली बनने के पहले की अवस्था और हरे फल को भी संक्रमित कर सकता है. ये कीट आम के फल के छिलके और फल के अंदर सुरंगें बनाता है और फल के गुठली को भी खाता है जिससे फल खराब होते हैं और जल्दी गिर जाते हैं.
इस कीट के अंडे आमतौर पर फलों के डंठल पर पाए जाते हैं. 12 दिनों के बाद अंडे लार्वा में बदल जाते हैं जो फलों के गूदे में और बाद में आम की गुठली में सुरंग बनाते हैं. लार्वा फल में आमतौर पर 1 बोर छेद के माध्यम से प्रवेश करते हैं. आम के अंदर के भाग को लार्वा खाते हैं और फल को खराब कर देते हैं. आमतौर पर फल के अंदर लगभग 20 दिन रहते हैं. इसके बाद लार्वा कीट रेशम के धागे बना कर अन्य फलों पर जाते हैं, फिर वहां पर नुकसान पहुंचाते हैं.
डॉ सिंह ने बताया कि जब वे फल से खाकर बाहर निकलते हैं, तो आम के पेड़ों की छाल के नीचे या मिट्टी में चले जाते हैं. जब आम के फलने का मौसम खत्म हो जाता है, तो प्यूपा अगले फलने के मौसम तक जीवित रह सकता है. आम में मंजर निकलने के समय वयस्क पतंगे उत्पन्न होते हैं. पतंगों की मादा अंडे देना शुरू कर देती है. यह कीट टिकोले की अवस्था से लेकर आम के पकने से ठीक पहले तक आम के फल को नुकसान पहुंचाता है. इससे केवल आम का फल प्रभावित होता है, अन्य हिस्सों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है. विगत दो-तीन वर्षों से यह कीट बिहार में आम के फल की सबसे बड़ी समस्या के तौर पर उभरा है. इस कीट से कुछ जिलों में 30 से लेकर 60 प्रतिशत तक टिकोले प्रभावित हुए हैं. इसे तुरंत समय पर नियंत्रित करने की जरूरत है, अन्यथा आम की फसल को इस कीट से बहुत नुकसान पहुंच सकता है.
डॉ एस. के. सिंह ने कहा कि आम के फल को इस कीट से बचाने के लिए जरूरी है कि बाग से सड़े गले और गिरे हुए फल को बाग से इकट्ठा कर बाहर नष्ट कर दें. अगर संभव हो तो फल की बैगिंग कर दें. इस कीट का आक्रमण टिकोले की अवस्था से लेकर फल के पकने से ठीक पहले तक होता है क्योंकि इस कीट की जनन प्रक्रिया लगातार चलती रहती है. फल वृद्धि की पूरी अवस्था तक यदि इसकी संख्या को कम नहीं किया गया तो भारी नुकसान होता है. इस कीट के प्रबंधन के लिए क्लोरीनट्रानिलिप्रोएल (कोरिजन) @ 0.4 मिली प्रति लीटर पानी या इमामेक्टिन बेंजेट @ 0.4 ग्राम या डेल्टामेथ्रिन 28 ई.सी.1 मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से इस कीट की उग्रता में कमी लाई जा सकती है.
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इसके अलावा क्वीनलफास या क्लोरपैरिफोस 2 मिली प्रति लीटर या लैम्डा साइहलोथ्रिन 5 ईसी @ 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से घोलकर छिड़काव कर सकते हैं. यह कीट सुबह ज्यादा सक्रिय रहता है, इसलिए छिड़काव सुबह करना अच्छा रहता है.
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