
शाही लीची के लिए मशहूर मुजफ्फरपुर अब लौंगन के लिए भी प्रसिद्ध होने वाला है. यहां के किसानों ने लीची खत्म होने के बाद कमाई बढ़ाने के लिए लौंगन की खेती शुरू की है. जुलाई के दूसरे सप्ताह से यह बाजार में मिलने लगेगा. राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र में इसके पौधे लगाए गए थे. यहां की जलवायु और मिट्टी में इसकी पैदावार अच्छी हुई है. एक पेड़ पर लगभग एक क्विंटल से अधिक फल लगा हुआ है. लौंगन वियतनाम में उगाया जाने वाला एक फल है. इसके छिलके लीची की तरह ही होते हैं, लेकिन लीची से अधिक मजबूत होते हैं. इसके कारण इनपर कीट और पतंगों का प्रकोप नहीं होता है. साथ ही इसकी शेल्फ लाइफ की अधिक लंबी होती है. यह अधिक दिनों तक टिकता है.
किसानों के लिए इसकी खेती इसलिए फायदेमंद मानी जा रही है क्योंकि मुजफ्फरपुर की लीची मई से लेकर जून के आखिरी महीने तक मिलती है. इसके बाद लीची से कमाई करने वाले किसानों की आय का जरिया बंद हो जाता है. पर लौंगन की खेती से फायदा यह होता है कि लीची की खेती खत्म होने के बाद जुलाई के दूसरे सप्ताह से लौंगन टूटना शुरू हो जाता है. यह अगस्त तक चलता है. इस तरह से किसानों को चार महीने तक कमाई होती है. फिर इसके बाद बरसाती सब्जी टूटने लगती है. इस तरह से किसानों का आय का जरिया बना रहता है.
ये भी पढ़ेंः गेहूं की बढ़ती कीमतों और जमाखोरी रोकने के लिए सरकार ने स्टॉक लिमिट लगाई, कहा- देश में गेहूं की कोई कमी नहीं
लौंगन की खेती के फायदे को देखते हुए राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र में कई वर्षों से इसकी खेती पर शोध किया जा रहा है. फिर पिछले तीन वर्षों से इसका फलन अच्छा हो रहा है. इस दौरान आस-पास के किसानों को भी इसकी जानकारी दी गई थी और किसानों ने इसकी खेती की थी. राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के फार्म में सैकड़ों पेड़ों पर लौंगन खूब फला हुआ है. एक पेड़ पर सौ किलो से ज्यादा फल लगा हुआ है जो जुलाई के दूसरे सप्ताह से टूटने लगेगा.
राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. सुनील कुमार ने बताया कि बाजार में लीची खत्म होने के बाद लौंगन उपलब्ध हो जाता है. पर इस बार जो स्थिति है उसके अनुसार जुलाई के अंतिम सप्ताह और अगस्त के पहले सप्ताह में इसकी तुड़ाई होगी. उन्होंने कहा कि अभी भी लौंगन की खेती को लेकर शोध चल रहा है. यहां की मिट्टी और जलवायु के लिए यह उपयुक्त है. अनुसंधान केंद्र के फार्म में काफी बेहतर परिणाम आया है. किसानों को भी इसकी जानकारी दी जा रही है और कुछ किसानों ने इसे लगाया भी है.
मुसहरी के लीची किसान बनवारी सिंह ने बताते हैं कि मुजफ्फरपुर लीची के लिए काफी प्रसिद्ध है. इसलिए वो लीची के बाग को अधिक प्राथमिकता देते हैं. हालांकि अब लौंगन के बारे में जानकारी मिली है. अब इसके भी कुछ पेड़ लगाएंगे, इससे लीची खत्म होने के बाद भी उनकी आमदनी बनी रहेगी. उन्होंने चिंता जताते हुए कहा कि लौंगन यहां के लिए नया फल है, इसलिए इसकी मार्केटिंग में परेशानी हो सकती है. सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए. वहीं दूसरे लीची किसान अंकित सिंह ने बताया कि लीची का अपना बाजार बना हुआ है इसलिए परेशानी नहीं होती है. इसी तरह लौंगन का बाजार बनाने के लिए इसका अधिक उत्पादन करना होगा. तब व्यापारियों का रूझान इसकी तरफ होगा और इसकी मार्केटिंग आसान हो जाएगी.
ये भी पढ़ेंः UP News: उत्तर प्रदेश में चुकंदर से इथेनॉल बनाने की तैयारी, किसानों की होगी डबल कमाई, जानें पूरा प्लान
लीची की खेती करने वाली महिला किसान प्रज्ञा कुमारी ने बताया कि वो आंख बंद करके लीची की खेती करती हैं क्योंकि मुजफ्फरपुर के लीची की डिमांड पूरे देश ही नहीं विदेशों में भी है. उन्होंने बताया कि इस बार अपनी शाही लीची को पुणे तक भेजा है. पुणे में खेप भेजने के लिए पिछली बार से ही संपर्क बना है, इसलिए इस बार अच्छी मांग भी हुई है. लौंगन की खेती को लेकर उन्होंने कहा कि लीची अनुसंधान केंद्र में फलन अच्छा हुआ है. वो भी प्रयोग के तौर पर कुछ पौधे लगाएंगे. पर इसकी मार्केटिंग की पूरी व्यवस्था होनी चाहिए. इससे किसानों के लिए अगस्त तक आमदनी का जरिया हो जाएगा.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today