सोयाबीन खरीद में महाराष्ट्र से आगे निकला मध्य प्रदेश, बाकी राज्यों के जान लें हालात

सोयाबीन खरीद में महाराष्ट्र से आगे निकला मध्य प्रदेश, बाकी राज्यों के जान लें हालात

महाराष्ट्र के मराठवाड़ा और विदर्भ में सोयाबीन की सरकारी खरीद का मुद्दा गंभीर बना हुआ है. किसानों की परेशानी को देखते हुए प्रधानमंत्री से लेकर कृषि मंत्री तक को जवाब देना पड़ा है. राजनीति इतनी तेज हुई है कि विपक्षी दलों ने इसे जीत का हथियार बना लिया है. इन तमाम आरोप-प्रत्यारोप और लड़ाई-झगड़े के बीच मध्य प्रदेश ने सोयाबीन खरीद में महाराष्ट्र को पीछे छोड़ दिया है.

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सोयाबीन खरीद में महाराष्ट्र से आगे निकला मध्य प्रदेश, बाकी राज्यों के जान लें हालातसोयाबीन खरीद को लेकर राजनीति तेज हो रही है

सोयाबीन पर राजनीति जारी है. विधानसभा चुनाव के बीच सोयाबीन खरीद को लेकर पार्टियां एक दूसरे की टांग खिंचाई कर रही हैं. गिरते न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर माथा पीटा जा रहा है. महाराष्ट के मायूस किसान सरकार से सवाल पूछ रहे हैं. इस बीच महाराष्ट्र से सोयाबीन को लेकर एक और बुरी खबर आई है. यह खबर है सोयाबीन खरीद को लेकर. खबर बताती है कि महाराष्ट्र में किसान खरीद का ठीकरा सरकार पर फोड़ रहे हैं, इसी बीच मध्य प्रदेश चुपके से इसकी सरकारी खरीद में महाराष्ट्र से आगे निकल गया है.

महाराष्ट्र के मराठवाड़ा और विदर्भ में सोयाबीन की सरकारी खरीद का मुद्दा गंभीर बना हुआ है. किसानों की परेशानी को देखते हुए प्रधानमंत्री से लेकर कृषि मंत्री तक को जवाब देना पड़ा है. राजनीति इतनी तेज हुई है कि विपक्षी दलों ने इसे जीत का हथियार बना लिया है. इन तमाम आरोप-प्रत्यारोप और लड़ाई-झगड़े के बीच मध्य प्रदेश ने सोयाबीन खरीद में महाराष्ट्र को पीछे छोड़ दिया है. वह भी तब जब मध्य प्रदेश में महाराष्ट्र की तुलना में देरी से सोयाबीन की खरीद शुरू हुई है.

महाराष्ट्र में अधिक खरीद

महाराष्ट्र में बंपर फसल के बाद सोयाबीन की कीमतों में भारी गिरावट आई है. महाराष्ट्र में 50 लाख हेक्टेयर से अधिक जमीन पर उगाई जाने वाली सोयाबीन फसल अब 4,1,00-4,200 रुपये प्रति क्विंटल पर बिक रही है, जबकि एमएसपी 4,892 रुपये प्रति क्विंटल है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में अधिक उत्पादन के कारण भी कीमतें कम हुई हैं. सरकारी एजेंसियों ने 12 नवंबर तक महाराष्ट्र में मात्र 3,887.94 टन सोयाबीन खरीदा था. यह मौजूदा सीजन के लिए निर्धारित 13.08 लाख टन खरीद लक्ष्य के मुकाबले कम है. सोयाबीन की खरीद 15 अक्टूबर से शुरू हुई और अगले साल 12 जनवरी तक चलने की उम्मीद है.

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दूसरी ओर, पड़ोसी तेलंगाना ने 15 सितंबर से अब तक 59,508 टन के लक्ष्य के मुकाबले 24,253 टन तिलहन की खरीद की है. देश में सोयाबीन का सबसे बड़ा उत्पादक मध्य प्रदेश ने अपने 13.68 लाख टन के लक्ष्य में से 9,971.94 टन की खरीद की है. बीजेपी शासित इस राज्य में खरीद 21 अक्टूबर को शुरू हुई थी. हालांकि, देरी से शुरू होने के बावजूद मध्य प्रदेश सोयाबीन की खरीद के मामले में महाराष्ट्र से आगे निकल गया है.

क्यों पिछड़ा महाराष्ट्र

सरकारी आंकड़ा बताता है कि महाराष्ट्र में 40 से अधिक राज्य स्तरीय एजेंसियां (एसएलए) हैं - जो किसी राज्य के लिए सबसे अधिक हैं - जो फसलों की खरीद के लिए केंद्र की एजेंसियों के रूप में काम करती हैं. लेकिन महाराष्ट्र में अधिक खरीद एजेंसियां होने के बावजूद सोयाबीन खरीद के मामले में राज्य को मदद नहीं मिली है. वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों ने 'इंडियन एक्सप्रेस' से कहा कि कम खरीद का एक कारण सोयाबीन में नमी की मात्रा का अधिक होना है. सरकार ने नमी की जो मात्रा तय की है, उससे अधिक नमी होने की वजह से भी महाराष्ट्र में खरीद कम हो रही है.

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एक अधिकारी ने कहा, "फिलहाल सोयाबीन में 15 प्रतिशत से ज़्यादा नमी है, जो सरकार के 12 प्रतिशत नमी के उचित और औसत गुणवत्ता (FAQ) के मानकों का पालन नहीं करता है. ज़्यादा नमी की मात्रा के कारण तिलहन में गलन हो सकती है और इसलिए हम किसानों से खरीद नहीं कर सकते." निजी व्यापारियों के पास सुखाने के शेड हैं, जहां वे ज़्यादा नमी वाली तिलहन खरीद सकते हैं, लेकिन ज़ाहिर है कि कम कीमत पर. हालांकि दो दिन पहले कृषि मंत्री ने ऐलान कर दिया कि 15 परसेंट नमी वाली उपज को भी सरकारी एजेंसियां खरीदेंगी. इसके बाद देखने वाली बात होगी कि महाराष्ट्र में खरीद बढ़ती है या नहीं. 288 सदस्यीय महाराष्ट्र विधानसभा के लिए 20 नवंबर को मतदान होगा और वोटों की गिनती 23 नवंबर को होगी.

 

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