अगर आप याददाश्त पर जोर डालेंगे तो याद आएगा कि साल 2019 में पिछली बार जब महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव हुए थे तब राज्य लंबे वक्त से सूखे की मार झेल रहा था. इस सूखे से सबसे ज्यादा प्रभावित मराठवाड़ा क्षेत्र, उससे सटे अहमदनगर और सोलापुर जिलों में सरकारी खर्चे पर चारा शिविर चल रहे थे जिनमें 11 लाख से अधिक मवेशियों को आश्रय मिल रहा था. बता दें कि ये शिविर सितंबर के अंत तक संचालित थे. गौर करने वाली बात ये है कि इन चारा शिविरों में जानवरों को खिलाने के लिए सरकार किसानों से गन्ना खरीद रही थी. किसानों को इन शिविर में अपने गन्ने का दाम शुगर मिल से भी ज्यादा मिल रहा था.
इतना ही नहीं अप्रैल-मई 2024 में हुए लोकसभा चुनाव में भी यहां लगभग यही तस्वीर देखने को मिली थी. पिछले साल महाराष्ट्र में दक्षिण-पश्चिम (जून-सितंबर) और उत्तर-पूर्वी मानसून (अक्टूबर-दिसंबर) का सीजन कमजोर रहा था. इसकी वजह से महाराष्ट्र में जनवरी-फरवरी 2024 की सर्दियों में बारिश कम हुई, जिसका नतीजा ये रहा कि फसल पकने के सबसे अहम वक्त, यानी मार्च में ही राज्य का पारा 40 डिग्री सेल्सियस को पार गया था.
मगर इस बार महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव, जो कि 20 नवंबर को होने वाले हैं, के दौरान राज्य के सभी चार मौसम संबंधी उप-संभागों (विदर्भ, मराठवाड़ा, मध्य महाराष्ट्र और कोंकण) में अतिरिक्त मानसूनी वर्षा हुई है. इसका फायदा ये रहा कि राज्य के प्रमुख जलाशय जैसे जयकवाड़ी, भीमा, मुला और पेंच लबालब भर गए और वाटर लेवल में सुधार हुआ है. यही वजह है कि आगामी रबी फसल के लिए भी उम्मीद सकारात्मक बनी हुई है. अगर सीधी-सीधे कहा जाए तो 2024 का महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में कृषि उतना बड़ा मुद्दा नहीं बन पाई जितना कि पिछले दो चुनावों (विधानसभा 2019 और लोकसभा 2024) में देखने को मिला था.
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2023-24 में महाराष्ट्र की जीडीपी में कृषि का हिस्सा (वर्तमान मूल्यों पर, उत्पाद करों और सब्सिडी को छोड़कर) सिर्फ 11.2% रहा, जो कि राष्ट्रीय औसत के मुकाबले 17.7% से कम ही है. लेकिन 2023-24 के आधिकारिक आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के मुताबिक, इसमें राज्य के 43.2% श्रमिकों को रोजगार मिला है, जो राष्ट्रीय औसत 46.1% से थोड़ा ही कम है. इसके अलावा, 2021-22 के लिए हाल ही में आई नाबार्ड अखिल भारतीय ग्रामीण वित्तीय समावेशन सर्वेक्षण रिपोर्ट में महाराष्ट्र के 59% ग्रामीण परिवारों को "कृषक" के रूप में पहचाना गया है. इसका मतलब ये हुआ कि ये 59 प्रतिशत परिवार अपनी आय का एक अहम हिस्सा खेती से संबंधित कामों से ही कमाते हैं. यही वजह है कि जब महाराष्ट्र में चुनाव का समय आए तो कृषि का मुद्दा सबसे अहम है.
महाराष्ट्र का चुनाव सूखे के मुद्दे पर हो रहे हैं या अपेक्षाकृत अधिक बारिश पर, इसका असर महाराष्ट्र की सबसे "राजनीतिक" फसल गन्ने पर पड़ सकता है. बता दें कि महाराष्ट्र भारत का सबसे बड़ा चीनी उत्पादक है. हालांकि, पिछले साल महाराष्ट्र में पड़े सूखे की वजह से 2024-25 के चीनी वर्ष (अक्टूबर-सितंबर) में उत्तर प्रदेश टॉप पर पहुंच सकता है.
समझने वाली बात ये है कि भरपूर मानसून से होने वाले बम्पर उत्पादन से महाराष्ट्र में कृषि संकट भले ही कम दिखाई दे रहा हो, लेकिन चुनावी अभियान के जोर पकड़ने के साथ ही फसलों की कम कीमतें और बढ़ती खेती की लागत अभी भी चुनावी मुद्दा बन सकता है. इसके अलावा, यह भी देखना होगा है कि 'लड़की बहिन' और ग्रामीण भूमिहीन मजदूरों के लिए अन्य योजनाओं से किसानों की नाराजगी दूर होगी.
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