त्रिपुरा में 'मुख्यमंत्री रबर मिशन' की सफलता को देखते हुए राज्य सरकार इस कार्यक्रम को अगले पांच साल के लिए बढ़ाने के बारे में सोच रही है. त्रिपुरा देश का दूसरा सबसे बड़ा रबर उत्पादक राज्य है. 2021-22 में रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए शुरू की गई पहल को 2025-25 तक पूरा करने का लक्ष्य है. जनजातीय कल्याण निदेशक सुभाशीष दास ने बताया कि इस मिशन से अब तक कुल 56,400 परिवार जुड़ चुके हैं. मिशन के पहले चार साल के दौरान 46,086 हेक्टेयर जमीन पर रबर की खेती की गई.
सुभाशीष दास ने न्यूज़ एजेंसी पीटीआई को बताया कि मिशन के तहत रबर बोर्ड ने विभिन्न जिलों में क्वालिट वाले पौधों की सप्लाई, रोपण से पहले और बाद में प्रशिक्षण दिया. यही वजह है कि पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों के बीच यह मिशन बहुत लोकप्रिय हो गया. ऑटोमेटेड टायर मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (एटीएमए) ने भी इस मिशन को सफल बनाने में बड़ी भूमिका निभाई है. एटीएमए ने चयनित लाभार्थियों को निशुल्क पौधे दिए तो वहीं, त्रिपुरा कल्याण विभाग ने बाड़ लगाने और खाद उपलब्ध कराने जैसी मदद की.
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जनजातीय कल्याण निदेशक सुभाशीष दास ने कहा कि यह मिशन वित्तीय रूप से भी व्यवहारिक है और लोकप्रिय भी है, जिसके चलते विभाग इसे अगले पांच साल के लिए बढ़ाने पर विचार कर रहा है. उन्होंने कहा, "हम मिशन का पहला फेज़ पूरा होने के बाद 60,000 परिवारों के लिए रबर की खेती से जोड़ने की योजना बना रहे हैं, जबकि इस बार 60,000 हेक्टेयर भूमि पर खेती की प्लानिंग तैयार की जा रही है."
सुभाशीष दास ने कहा कि आत्मसमर्पण करने वाले उग्रवादी भी रबर की खेती में रुचि देखा रहें है. यह आजीविका का एक अच्छा विकल्प है. उन्होंने कहा कि हाई-ग्रेड रबर लेटेक्स के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए अलग-अलग साइज के इंटीग्रेटेड रबर प्रोसेसिंग सेंटर्स बनाने के लिए कदम उठाए गए हैं. वहीं, लेटेक्स कलेक्शन में क्वालिटी बनाए रखने के लिए रबर टैपिंग में स्किल डेवलेपमेंट प्रोग्राम भी आयोजित किए गए है.
भारत में प्राकृतिक रबर के उत्पादन में केरल पहले नंबर पर आता है. देश के कुल रबर उत्पादन का 75.70 प्रतिशत हिस्सा यहीं से आता है. केरल में साकोट्टायम और कोझिकोड में सबसे ज्यादा रबर की खेती की जाती है. इसके अलावा तमिलनाडु और नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों में रबर का उत्पादन किया जाता है.
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