बिहार की धरती पर मॉनसून की पहली बारिश ने दस्तक दे दी है. खेतों में हरियाली की चादर बिछ चुकी है. किसान धान की रोपाई में पूरी जुटे हैं, मगर इस जीवनदायिनी बारिश के साथ एक खतरा भी छिपा हुआ है जिसका नाम है वज्रपात यानी आकाशीय बिजली. मौसम विज्ञान केंद्र, पटना के अनुसार जून और जुलाई के महीने बिजली गिरने की घटनाओं के लिहाज से सबसे ज्यादा खतरनाक साबित होते हैं. वैज्ञानिक आनंद शंकर का कहना है कि वज्रपात से सालभर में होने वाली कुल मौतों में से करीब 70 फीसदी मौतें इन्हीं दो महीनों में होती हैं. खासकर दोपहर 12 बजे से शाम 5 बजे के बीच वज्रपात का प्रभाव सबसे अधिक रहता है.
उत्तरी बिहार की तुलना में दक्षिण बिहार के कैमूर से लेकर बांका तक वज्रपात का खतरा अधिक रहता है. झारखंड से सटे जिलों कैमूर, सासाराम, गया, औरंगाबाद, नवादा, जमुई, बांका और भागलपुर में यह खतरा विशेष रूप से ज्यादा रहता है. यह जिले पठारी क्षेत्र में आते हैं जहां वज्रपात की संभावनाएं सबसे ज्यादा होती हैं. पूर्वी बिहार के बांका से पूर्णिया और पश्चिमी चंपारण से गोपालगंज तक भी कई स्थानों पर बिजली गिरने की घटनाएं होती हैं.
धान की रोपाई और खेतों में काम के चलते किसान और मजदूर दिन के सबसे जोखिम भरे समय में खुले में रहते हैं. मौसम विभाग ने ऐसे लोगों को सतर्क रहने और बारिश के दौरान खेतों में काम न करने की सलाह दी है. विशेष रूप से पहली बारिश के दौरान वज्रपात की आशंका अधिक रहती है.
राज्य सरकार और मौसम विभाग ने मिलकर वज्रपात से बचाव के लिए एक 'सचेत पोर्टल' की शुरुआत की है. इस पोर्टल से जुड़ने वालों को संभावित वज्रपात की जानकारी और अलर्ट सीधे मोबाइल पर मिलते हैं, जिससे समय रहते जान-माल की सुरक्षा की जा सके.
मौसम विभाग के मुताबिक अगले एक सप्ताह तक राज्यभर में मध्यम से भारी बारिश की संभावना बनी हुई है. हालांकि 26 और 27 जून को बारिश में कुछ कमी आ सकती है. अब तक जून महीने की बारिश सामान्य से 26% कम रही है, लेकिन बाकी बचे दिनों में इस कमी की भरपाई की उम्मीद है. कई जिलों में भारी बारिश की आशंका के चलते येलो, ऑरेंज और रेड अलर्ट भी जारी किए गए हैं.
जहां एक ओर मॉनसून ने राहत की सांस दी है, वहीं आसमान में छिपा बिजली का कहर किसानों की परीक्षा लेने को तैयार है. ऐसे में सतर्कता और सजगता ही इस मौसम में सुरक्षा की सबसे बड़ी कुंजी बन सकती है.
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