पोल्ट्री सेक्टर बहुत कमाई वाला साबित हो रहा है, लेकिन इस बात को ध्यान में रखने की जरूरत है कि मुर्गियां रोगों को लेकर बहुत संवेदनशील हैं. इसलिए इस कारोबार में हाथ डालने वालों को जैव सुरक्षा के उपाय जरूर करने चाहिए. दरअसल, जैव सुरक्षा, रोग पैदा करने वाले कीटाणुओं को मुर्गी फार्म में प्रवेश को रोकने तथा एक फार्म से दूसरे फार्म में फैलने से बचाने के लिये अपनाए गए उपायों का दूसरा नाम है.इसलिए पोल्ट्री की दुनिया में इसका महत्व बहुत अधिक है. यह उन सभी कारकों में शामिल है, जो पक्षियों को घातक रोग लगने से बचाते हैं. ध्यान रहे कि मुर्गियों को होनेवाला एक भयंकर संक्रामक रोग रानीखेत है.
वैज्ञानिक विक्रमजीत सिंह, सुनील कुमार यादव, अशोक चौधरी, अक्षय घिंटाला और सुरेश चंद कांटवा बताते हैं कि रानीखेत वायरस के संक्रमण से होता है. यह बड़े पैमाने पर शीघ्रता से फैलने वाला जानलेवा रोग है. इसके अलावा तनाव और गीला या गंदा आवास सभी प्रकार की मुर्गियों के लिए बीमारी का प्रमुख कारण है. हालाँकि, चूहे, मक्खियाँ, मच्छर और गौरैया भी बीमारियाँ फैलाते हैं इसलिए रोकथाम हमेशा इलाज से बेहतर होती है.
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रोग का जन्म होने वाले मार्कर, वायरस, फंगस, प्रोटोजोआ, अंतः एवं बाह्य परजीवी इत्यादि.
इसमें पेयजल का मौलिक रासायनिक एवं जैविक संदूषण से पूर्णतः मुक्त होना चाहिये.
खाद्य आहार या कुक्कुट आहार का किसी भी प्रकार के संक्रमण से मुक्त होना आवश्यक है.
आसपास की हवा स्वच्छ एवं संक्रमण युक्त होनी चाहिये.
जैव सुरक्षा के उपाय मुर्गी फार्म की संरचना से जुड़े होते हैं. मुर्गी फार्म में जगह का चयन एवं मुर्गी घर निर्माण के लिए निम्न बातों का विशेष ध्यान रखना चाहियेः
मुर्गी घर का लम्बवत् अक्ष पूर्व से पश्चिम दिशा में होना चाहिये. इससे सूर्य के प्रकाश से गर्मी कम से कम पड़े.
दो मुर्गी घरों के बीच कम से कम 15 मीटर की दूरी होनी चाहिये.
दो मुर्गी फार्मों के बीच कम से कम 1 से 2 कि.मी. की दूरी होनी चाहिये.
हैचरी इकाई एवं मुर्गी घर के बीच कम से कम 500 फीट की दूरी होनी चाहिये.
मुर्गी घर का फर्श कंक्रीट का बना होना चाहिये, जिससे साफ-सफाई, सोडा से धुलाई, विद्युतीकरण (फ्यूमिगेशन) आसान हो सके. इसके अलावा कंक्रीट के फर्श में चूहे अपना घर नहीं बना पाते.
मुर्गी घर का जमीन से कम से कम 3 फीट ऊंचे पर फर्श होना चाहिये. इससे बाहय परजीवी एवं बारिश का पानी अंदर न आ सके.
मुर्गी घर के आसपास पेड़-पौधे नहीं होने चाहिये, क्योंकि ये वन्य पक्षी को आश्रय देते हैं एवं मुर्गियों के लिए रोगवाहक का कार्य करते हैं.
मुर्गी फार्म के प्रवेश द्वार एवं प्रत्येक मुर्गी घर के प्रवेश द्वार पर फुटबाथ (कीटाणुनाशक घोल) अवश्य होना चाहिए. इससे फार्म में प्रवेश करने वाले के पैरों के संक्रमण से मुर्गियों में संक्रमण न फैले.
मुर्गियों में अधिकतर रोग एक फार्म से दूसरे फार्म तक संदूषित व्यक्तियों, उपकरणों एवं वाहनों से फैलते हैं.
हवा के धूल कणों से मुख्यतः श्वासन संबंधित रोग फैलते हैं.
हैचरी से भी रोग फैलने की आशंका रहती है. जैसे-एस्परजिलोसिस, फंगस का संक्रमण, स्टैफाइलोकोकस जनित बम्बल फीट रोग इत्यादि.
चूहों, वन्यजीवों, घुमक्कड़ पक्षियों द्वारा भी संक्रामक रोग फैलते हैं.
बाहृय परजीवी जैसे-मक्खी, मच्छर इत्यादि रोग फैलाने का कार्य करते हैं.
संदूषित दाना, दाने के बैग, वाहन एवं मुर्गी फार्म का विछावन जैसे-मेडीहस्क, लकड़ी का बुरादा इत्यादि रोग फैलाने के माध्यम हैं.
संक्रामक रोगों से युक्त हुई मुर्गियां कई रोगों के वाहक का कार्य करती हैं.
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