भारत में मछली पालन एक खास व्यापार बनते जा रहा है. इसको लेकर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के उप महानिदेशक जेके जेना ने कहा कि भारत में 2047 तक अपने मछली उत्पादन को 18 मिलियन टन से बढ़ाकर 40 मिलियन टन करने की क्षमता है. बशर्ते राज्य और केंद्र सरकारें प्रमुख नीतिगत बदलावों को लागू करें. जेना ने स्पष्ट किया कि 40 मिलियन टन का लक्ष्य भारत की विशाल क्षमता को दर्शाता है, जरूरी नहीं कि यह इसकी तत्काल जरूरत हो. उन्होंने इस क्षेत्र की मजबूत बढ़ोतरी का उल्लेख किया है, जो वर्तमान में सालाना 9 प्रतिशत है, जो वैश्विक औसत 2.5 प्रतिशत और चीन के 4 प्रतिशत से काफी अधिक है. वहीं, पिछले चार दशकों में भारत की अपनी 6 प्रतिशत वृद्धि से भी तेज है.
इस बढ़ोतरी का श्रेय बढ़ते निवेश, वैज्ञानिक प्रगति और सहायक सरकारी नीतियों को जाता है. जेना ने 50 अलग-अलग मछली बीज प्रजातियों की उपलब्धता पर प्रकाश डाला, जबकि पहले केवल कार्प ही उपलब्ध थे, जो अलग-अलग पालन के विकल्प प्रदान करते हैं. उन्होंने नए विचारों के साथ इस क्षेत्र में प्रवेश करने वाले तकनीकी रूप से योग्य व्यक्तियों के सकारात्मक प्रभाव की ओर भी इशारा किया.
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उन्होंने कहा कि समुद्री मछली पालन में लगभग 4 मिलियन टन का वर्तमान उत्पादन नई तकनीकों और मछली पकड़ने वाले क्षेत्रों की बेहतर पहचान के माध्यम से 5.3 मिलियन टन तक बढ़ाया जा सकता है. गहरे समुद्र के संसाधनों, जो अनुमानित 2 मिलियन टन है, उनमें मुख्य रूप से स्क्विड जैसी कम कीमत वाली मछलियां शामिल हैं, जिन्हें पकड़ने के लिए विशेष कारखाने के जहाजों की आवश्यकता होती है.
जेना ने इस बात पर भी जोर दिया कि भारत बेहतर कीमत वाली टूना का उत्पादन करता है, लेकिन तट पर पहुंचने तक इसकी क्वालिटी अक्सर खराब हो जाती है, जिससे कीमतें कम हो जाती हैं. वहीं, जहाज पर प्रसंस्करण से इस समस्या का समाधान हो सकता है. उन्होंने गहरे पानी में पिंजरे में पालन की अनुमति देने की भी बात की, जो कि बहुत बड़ी संभावना वाला क्षेत्र है. खासकर अंडमान तट से दूर, जिसके लिए सरकार एक नीति विकसित कर रही है.
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