Sea Food Export सीफूड एक्सपोर्ट 84 हजार करोड़ रुपये पर पहुंच गया है. केन्द्र सरकार की कोशिश है कि इसे एक लाख करोड़ तक पहुंचाया जाए. इसके लिए सरकार लगातार कोशिश कर रही है. हालांकि सीफूड एक्सपोर्ट में झींगा अहम रोल निभाता है. एक्सपोर्ट में करीब 50 फीसद की हिस्सेदारी झींगा की है. लेकिन अब सरकार झींगा के साथ ही टूना फिश पर भी फोकस कर रही है. सरकार टूना फिश के भरोसे ही अब 84 हजार करोड़ रुपये के सीफूड एक्सपोर्ट को एक लाख करोड़ तक पहुंचाने के लिए कई अलग-अलग योजनाएं बना रही है. उसी में से एक है क्लस्टर आधारित टूना फिशरीज. मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय प्रधानमंत्री मछली संपदा योजना (PMMSY) के तहत टूना से जुड़े मछुआरों के लिए एक बड़ी योजना पर काम कर रहा है.
ये योजना है क्लस्टर विकास. इसी के तहत मछली विभाग ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह को टूना क्लस्टर घोषित किया है. फिशरीज एक्सपर्ट की मानें तो अंडमान और निकोबार द्वीप समूह मछली पालन विकास के लिए एक प्रमुख अवसर प्रदान करता है. यहां करीब 6 लाख वर्ग किलोमीटर का विशेष आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) है.
जानकारों की मानें तो भारत के स्पेशल इकोनॉमिक जोन (SEZ) में टूना मछली भरी पड़ी है. एक सर्वे के मुताबिक भारत के गहरे समुद्र में करीब दो लाख टन टूना मछली हैं. हमारे देश में दो तरह की टूना मछली पाई जाती हैं. एक येलोफिन और दूसरी स्किपजैक टूना. लेकिन अफसोस की बात है कि दो लाख टन में से सिर्फ 25 हजार टन टूना मछली ही पकड़ी जा रही हैं. इसकी एक वजह इंटरनेशनल मार्केट में उसका सही दाम नहीं मिलना भी है. फिशरीज एक्सपर्ट का कहना है कि मालदीव की टूना मछली आठ डॉलर के हिसाब से बिकती है. जबकि भारतीय टूना मछली को कोई पूछता तक नहीं है. इसकी वजह ये है कि गहरे समुद्र से टूना पकड़कर लौटने में छह से सात दिन तक लग जाते हैं. ऐसे में मछली खराब होने लगती है. अगर फिशिंग बोट में ही कोल्ड स्टोरेज की सुविधा हो तो भारतीय मछुआरों को भी इंटरनेशनल मार्केट में अच्छे दाम मिल सकते हैं.
फिशरीज एक्सपर्ट का कहना है कि टूना क्लस्टर बनाने की ये फायदा होगा कि टूना मछली पालन में ट्रांसपोर्ट को मजबूत करने, वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने, बुनियादी ढांचा तैयार करने, निवेशक भागीदारी, प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण में निवेश पर काम करने में आसानी होगी. क्योंकि निर्यात लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए गहरे समुद्र में मछली पकड़ने को बढ़ावा देने और प्रोसेसिंग सुविधाओं को विकसित करने की जरूरत है.
दक्षिण पूर्व एशिया के साथ सीमित संपर्क के कारण रसद संबंधी मुद्दे, MPEDA और EIC कार्यालयों (चेन्नई निकटतम कार्यालय है) नहीं होने की वजह से व्यापार मंजूरी में देरी होती थी. बेहतर परिवहन बुनियादी ढांचे की कमी है. हालांकि इन चुनौतियों से निपटने के लिए अंडमान और निकोबार द्वीप समूह से दक्षिण पूर्व एशिया के साथ कुआलालंपुर, इंडोनेशिया को जोड़ने वाली सीधी उड़ान का उद्घाटन 16 नवंबर, 2024 को हो चुका है. साथ ही अंडमान और निकोबार द्वीप समूह से समुद्री खाद्य निर्यात को बढ़ावा देने के लिए MPEDA और EIC ने पोर्ट ब्लेयर में डेस्क कार्यालय स्थापित कर दिए हैं.
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