गौरैया प्रेम का अनोखा नजारा, पक्षी को बचाने के लिए घर को ही बना दिया घोंसला

गौरैया प्रेम का अनोखा नजारा, पक्षी को बचाने के लिए घर को ही बना दिया घोंसला

गौरैया रेड लिस्ट में शामिल हैं और विलुप्त होने के कगार पर हैं. तभी से उनके मन में आया कि जैसे गिद्ध विलुप्त हो गए हैं, वैसे ही गौरैया भी विलुप्त हो सकती है. इसके बाद उन्होंने गौरैया को बचाने के लिए खुद को समर्पित करने का निर्णय लिया. सुनीता ने बताया कि एक बार वह हमीरपुर जिले के ममना गांव में अपनी ससुराल गई थीं. वहां खपरेल आदि घर बने हुए थे.

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गौरैया प्रेम का अनोखा नजारा, पक्षी को बचाने के लिए घर को ही बना दिया घोंसलागौरैया के लिए घर को बनाया घोंसला

लंबे समय से संकट में आई गौरैया चिड़िया को बचाने की मुहिम में जुटी सरकारी शिक्षिका सुनीता यादव ने अपने ही घर को ही 'गौरैया हाउस' बना डाला. उत्तर प्रदेश के इटावा जनपद की गंगा बिहार कालोनी में रहने वाली प्राथमिक टीचर सुनीता यादव के गौरैया प्रेम को लेकर इन दिनों चर्चाएं बनी हुई है. गौरैया प्रेमी टीचर सुनीता यादव ने वैदिक प्रकाशन के लिए गौरैया फिर लौट आई शीर्षक से 155 पेज की किताब भी लिखी,जिस पर उन्हें इस साल सर्वश्रेष्ठ लेखिका के रूप में सम्मानित किया गया है. इस पुस्तक में गौरैया से संबंधित बातों को साझा किया गया है.

सुनीता ने अपने तीन मंजिला मकान को गौरैया के घर के रूप में बना दिया है. पहली मंजिल पर सैकड़ों छोटे-बड़े घोंसले बनाए गए हैं, दूसरी मंजिल पर भी ऐसे ही घोंसले तैयार किए गए हैं, जबकि तीसरी मंजिल पर गौरैया के लिए पार्क जैसी जगह बनाई गई है. जहां सुबह-शाम सैकड़ों गौरैया आती-जाती नजर आती हैं. 

बचपन से ही था पशु-पक्षियों से लगाव

विकास खंड बसरेहर के खरदूली गांव में स्थित उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में सहायक टीचर का पद संभाल रहीं सुनीता यादव ने गौरैया की घटती संख्या को देखते हुए अपने घर को ही गौरैया घर में बदल दिया है. सुनीता में गौरैया के संरक्षण के प्रति ऐसा जुनून है कि वह दिन-रात इसे बचाने के बारे में सोचती रहती हैं. उन्होंने बताया कि वह बचपन से ही पशु-पक्षियों को बचाने को लेकर गंभीर रही हैं, लेकिन गौरैया के प्रति उनका अधिक लगाव है.

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रेड लिस्ट में शामिल है गौरैया

उन्हें खबरों से पता चला कि गौरैया रेड लिस्ट में शामिल हैं और विलुप्त होने के कगार पर हैं. तभी से उनके मन में आया कि जैसे गिद्ध विलुप्त हो गए हैं, वैसे ही गौरैया भी विलुप्त हो सकती है. इसके बाद उन्होंने गौरैया को बचाने के लिए खुद को समर्पित करने का निर्णय लिया. सुनीता ने बताया कि एक बार वह हमीरपुर जिले के ममना गांव में अपनी ससुराल गई थीं. वहां खपरेल आदि घर बने हुए थे. वहां बड़ी संख्या में गौरैया दिखीं. इसके बाद ससुराल में बड़ी संख्या में गौरैया देखकर वह बहुत खुश हुईं. हमीरपुर में लोगों ने कच्चे घरों में मोखले आदि बना रखे हैं, जिनमें बड़ी संख्या में गौरैया रहती हैं.

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गौरैया के लिए घर में बनाए घोंसले

जिसे देख वह बहुत खुश हुईं, लेकिन जैसे-जैसे गौरैया की संख्या कम होने लगी, तो साल 2016 में उन्होंने सबसे पहले अपने घर में तीन घोंसले बनाए और गौरैया के लिए पानी का भी इंतजाम किया. शुरुआत में एक-दो गौरैया आने लगीं. अब करीब 8 महीने बाद गौरैया की संख्या बढ़ने लगी और फिर उन्होंने देखा कि उनके घर में गौरैया के 2 जोड़ों ने न सिर्फ अपना घोंसला बनाया बल्कि अंडे भी दिए, जिनसे तीन बच्चे निकले. इसके बाद यह सिलसिला चलता गया. 

लोगों को बांट रही घोंसले

सुनीता अब तक हजारों गौरैया के घोंसले लोगों में बांट चुकी हैं. प्रजनन के बाद करीब 300 बच्चे गौरैया उड़ चुके हैं. सुनीता ने बताया कि वह हर महीने अपने घर पर स्थानीय लोगों के लिए गौरैया संरक्षण पर सेमिनार आयोजित करती हैं, जिसमें एक से दो सौ लोग हिस्सा लेने आते हैं. सेमिनार में आने वाले हर व्यक्ति को वह गौरैया के घोंसले देती हैं और उनसे गौरैया के संरक्षण का संकल्प भी लेती हैं. गौरैया संरक्षण के लिए वर्ष 2010 से गौरैया दिवस का आयोजन किया जा रहा है, जिसके बाद से अब हर जगह गौरैया दिखाई देने लगी हैं.

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