
पेट्रोलियम उत्पादों पर विदेशी निर्भरता कम करने के लिए केंद्र सरकार ने कोशिश और तेज कर दी है. इसके लिए बायो इथेनॉल को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिसे पेट्रोल में मिलाकर गाड़ियों को चलाया जा रहा है. बायो इथेनॉल बनाने के लिए सरकार चावल और गन्ने की बजाय मक्के की फसल पर जोर दे रही है, क्योंकि इसमें पानी की खपत कम होती है. मक्के से इथेनॉल का उत्पादन बढ़ाने के लिए भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान (IIMR) ने 'इथेनॉल उद्योगों के जलग्रहण क्षेत्र में मक्का उत्पादन में वृद्धि' नामक प्रोजेक्ट शुरू किया है. इसके तहत उन क्षेत्रों में मक्का उत्पादन बढ़ाने की कोशिश हो रही है, जिनमें इसकी फसल लायक मिट्टी और मौसम मौजूद है, लेकिन वहां पर किसी और फसल की खेती हो रही है.
इसी कड़ी में बिहार के बेगूसराय स्थित क्षेत्रीय मक्का अनुसंधान और बीज उत्पादन केंद्र की ओर से इथेनॉल प्रोग्राम की रणनीति पर एक वर्कशॉप का आयोजन किया गया. जिसमें आईआईएमआर की ओर से डॉ चिक्कपा जीके, डॉ एसएल जाट और डॉ आलोक साहू मौजूद रहे.
मक्का वैज्ञानिक डॉ एस बी सिंह ने उन्नत प्रजाति के बीजों की जानकारी दी. आईसीआर पटना से डॉ राकेश कुमार ने कहा कि जहां अच्छी जमीन है वहां खरीफ मक्का का बहुत ज्यादा स्कोप है. बेमिती पटना बिहार सरकार के निदेशक ने भी खरीफ मक्का को बढ़ने पर जोर दिया ओर उत्तर प्रदेश के स्तर पर ले जाने के लिए कहा. मक्का बिहार के लिए बड़ा उपहार है. इस मौके पर उद्योग (इथेनॉल, फ़ीड, स्टार्च फसल इनपुट आपूर्तिकर्ता) प्रतिनिधि भी उपस्थित थे.
जाट ने कहा कि सर्दियों के मौसम में पूर्वी बिहार में मक्का की खेती का विस्तार किया जाएगा. पूर्वी यूपी में इसकी खेती को लेकर किसानों की अच्छी प्रतिक्रिया दर्ज की गई है. अब बिहार में भी एक नया मक्का बेल्ट स्थापित किया जाएगा. साथ ही इथेनॉल की वजह से मक्का की मांग बढ़ रही है और किसानों को अच्छी कीमत प्राप्त हो रही है.
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डॉ एसएल जाट ने कहा कि मक्के का उत्पादन बढ़ाना है तो न सिर्फ मक्के की खेती का एरिया बढ़ाना होगा बल्कि अच्छी किस्मों के बीजों की भी बहुत जरूरत होगी. इसके लिए हाइब्रिड किस्मों पर जोर दिया जा रहा है. हाइब्रिड तकनीक का ज्यादा इस्तेमाल करके मक्का उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है.
जाट ने कहा कि निरंतर सीखने और विस्तार के लिए एक बड़े पैमाने पर अभियान और संभावित उपज मंच परीक्षण की स्थापना की जानी चाहिए. इसके लिए न्यूमेटिक प्लांटर, रिज फ़रो प्लांटर, मक्का ड्रायर और बाजार लिंकेज जैसी रोपण मशीनरी महत्वपूर्ण होगी. सहकारी समितियों, एफपीओ, एसएचजी के उपयोग से इस लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद मिलेगी.
यह भी सामने आया कि इस वर्ष सरकारी नीतियों और डिस्टिलरी के आसपास मक्का जलग्रहण क्षेत्र विकास परियोजना से मक्का की उपज और क्षेत्रफल में भारी वृद्धि हुई है और 2024-25 में मक्का उत्पादन 44 मिलियन टन से अधिक होने की उम्मीद है. इस कार्यशाला से मिली सीख हमें बिहार के साथ-साथ पूर्वी भारत के संदर्भ में मक्का में बायो-इथेनॉल के लिए रणनीति और रोडमैप डिजाइन करने में मदद करेगी.
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