Goat Vaccination: बकरी पालन में बहुत खास होती है मेमनों की तीन से पांच महीने की उम्र, जानें क्यों
Goat Farming केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा के मुताबिक खुरपका, बकरी की चेचक, बकरी की प्लेग जैसी बीमारियों समेत पैरासाइट से बकरियों को बचाया जा सकता है. जरूरत बस वक्त रहते अलर्ट होकर बकरी के बच्चों का टीकाकरण कराने की है. क्योंकि जरा सी भी लापरवाही होने पर एक बकरी में हुई बीमारी पूरे फार्म पर फैल सकती है.
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सीआईआरजी में बकरी के बच्चों की मृत्यु दर को कंट्रोल करने के लिए लगातार काम चल रहा है. फोटो क्रेडिट-किसान तक
Goat Farming कई मायनों में बकरी पालन को बहुत आसान और सस्ता माना जाता है. इसके पीछे एक बड़ी वजह बकरियों की हार्ड इम्यूनिटी भी है. एनिमल एक्सपर्ट की मानें तो गाय-भैंस या दूसरे पशुओं के मुकाबले बकरियां जल्दी बीमार नहीं पड़ती हैं. बकरियों में जो भी मृत्यु दर होती है वो बच्चों में ही होती है. वो भी चार महीने की उम्र तक. इसलिए कहा जाता है कि बकरी पालन में मैमनों यानि बकरी के बच्चों की तीन से पांच महीने की उम्र बहुत खास होती है. इस दौरान उन्हें बहुत देखभाल की जरूरत होती है. खासतौर पर बीमारियों से बचाने के लिए टीके लगवाना और दवाई पिलाना शामिल है.
बकरी पालन में बीमारियों का जोखिम बहुत कम होता है, और जो बचता भी है तो वो टीकाकरण कराने से कंट्रोल हो जाता है. और कुछ ऐसी बीमारियां हैं जिनकी वक्त से पहचान कर इलाज कराने के बाद काबू पा लिया जाता है. एक्सपर्ट का कहना है कि बकरी पालन दूध कम उसके बच्चों के लिए किया जाता है. क्योंकि बड़े करने के बाद यही बच्चे मीट के लिए बाजारों में बेचे जाते हैं. लेकिन इस मुनाफे को कमाने के लिए जरूरी है कि मृत्यु दर को कम किया जाए. और ऐसा करने के लिए जरूरी है कि उन्हें वक्त से टीके लगवाए जाएं.
कब लगवाना है टीका और पिलानी है दवाई
खुरपका- 3 से 4 महीने की उम्र पर. बूस्ट र डोज पहले टीके के 3 से 4 हफ्ते बाद. 6 महीने बाद दोबारा.
बकरी चेचक- 3 से 5 महीने की उम्र पर. बूस्टर डोज पहले टीके के एक महीने बाद. हर साल लगवाएं.
गलघोंटू- 3 महीने की उम्र पर पहला टीका. बूस्टर डोज पहले टीके के 23 दिन या 30 दिन बाद.
पीपीआर (बकरी प्लेाग)- 3 महीने की उम्र पर. बूस्टर की जरूरत नहीं है. 3 साल की उम्र पर दोबारा लगवा दें.
इन्टेरोटोक्समिया- 3 से 4 महीने की उम्र पर. बूस्टर डोज पहले टीके के 3 से 4 हफ्ते बाद. हर साल एक महीने के अंतर पर दो बार.
कुकडिया रोग- दो से तीन महीने की उम्र पर दवा पिलाएं. 3 से 5 दिन तक पिलाएं. 6 महीने की उम्र पर दवा पिलाएं.
डिवार्मिंग- 3 महीने की उम्र में दवाई दें. बरसात शुरू होने और खत्मे होने पर दें. सभी पशुओं को एक साल दवा पिलाएं.
डिपिंग- दवाई सभी उम्र में दी जा सकती है. सर्दियों के शुरू में और आखिर में दें. सभी पशुओं को एक साल नहलाएं.