Success Story: 50 हजार की नौकरी छोड़ शुरू किया मछली पालन, अब 15 लाख रुपये तक पहुंची कमाई

Success Story: 50 हजार की नौकरी छोड़ शुरू किया मछली पालन, अब 15 लाख रुपये तक पहुंची कमाई

बिहार के जमुई जिले के एक किसान ने 50 हजार की नौकरी छोड़कर मछली पालन का काम शुरू किया जिसमें अब वे हर साल 15 लाख रुपये कमा रहे हैं. किसान का कहना है कि लोगों के बीच मछली की बहुत खपत है और उस हिसाब से ताजा मछली लोगों को मिल नहीं पाती है. इसलिए कमाई कीं संभावना बढ़ जाती है.

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Success Story: 50 हजार की नौकरी छोड़ शुरू किया मछली पालन, अब 15 लाख रुपये तक पहुंची कमाईबिहार के किसान ने 50 हजार की नौकरी छोड़ शुरू किया मछली का कारोबार

जमुई के एक युवक की कहानी किसी प्रेरणा से कम नहीं है. अगर लगन हो और व्यक्ति मेहनती हो तो कोई भी काम असंभव नहीं है. ऐसा ही एक किसान हैं जमुई प्रखंड के गांव बरुअट्टा के अविनाश कुमार सिंह. अविशान सिंह लॉकडाउन के बाद दिल्ली से 50 हजार रुपये की नौकरी छोड़कर घर वापस आ गए. उन्होंने यूट्यूब से मछली पालन का काम सीखा और अपना कारोबार शुरू किया. अब वे मछली पालन से 15 लाख रुपये का सालाना कारोबार कर रहे हैं. अभी वे अपने 17 कट्ठा जमीन में तीन तालाब बनाकर मछली पालन कर रहे हैं. लेकिन आने वाले कुछ ही दिनों से चार एकड़ में तालाबों का निर्माण कराएंगे.

अविशान सिंह दिल्ली में एक निजी कंपनी में नौकरी करते थे. इस काम से वे महीने में करीब 50 हजार रुपये कमाते थे. कोविड के कारण 2020 में लॉकडाउन लगने से वे घर बैठ गए. इसी बीच उन्हें यूट्यूब देखते-देखते गांव में रोजगार करने का एक विचार आया. उन्होंने फैसला किया कि वे गांव जाकर मछली पालन का काम करेंगे. इसकी ट्रेनिंग भी उन्होंने यूट्यूब से ही ली.

यूट्यूब से सीखा मछली पालन

गांव आकर अविनाश ने 2020 में पहले एक तालाब का निर्माण कराया और यू-ट्यूब से ही सीख कर मछली पालन की शुरुआत की. मेहनत और लगन की वजह से पिछले तीन साल में अविनाश अब तीन तालाब में मछली पालन कर रहे हैं. इस बार अविनाश को उम्मीद है कि उनकी आमदनी 15 लाख रुपये तक पहुंच जाएगी. वहीं अविनाश यूट्यूब से मछली पालन की ट्रेनिंग लेकर अलग-अलग नस्ल की मछलियों का पालन कर रहे हैं.

तीन तालाबों में मछली पालन

अविनाश कुमार बताते हैं कि तीन तालाब में से एक में मछली का बीज तैयार किया जाता है और दो तालाब में मछली पालन किया जाता है. उनका कहना है कि बाहर में रहकर काम जो दूसरों के लिए करते हैं, उससे अच्छा तो यही है कि अपना कारोबार किया जाए और इसमें कुछ लोगों को रोजगार भी दिया जाए. अविनाश का कहना है कि वे बंगाल से मछली का बीज लाते हैं और उसे एक तालाब में डाला जाता है. जब बीज का वजन 100 ग्राम के आसपास हो जाता है तो उसे दो अन्य तालाबों में डाला जाता है. इस काम में वे सुबह-शाम दो घंटे मेहनत करते हैं. वहीं उन्होंने बताया कि पानी की व्यवस्था पंपिंग सेट लगाकर की जाती है. पानी को बदलते रहना पड़ता है. तालाब से निकाले गए पानी को खेतों में डालते हैं जिससे फसल भी अच्छी होती हैं. तालाब से निकाले गए पानी डालने से उन खेतों में किसी तरह की खाद डालने की जरूरत नहीं पड़ती है.

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17000 मछलियों का पालन 

अविशान का कहना है एक कट्ठा में करीब 1000 हजार मछली डाली जाती है. अभी 17 कट्ठा में तालाब है तो उन तालाबों में 17000 मछली पाल रहे हैं. उन्होंने कहा कि उनके तालाब में फंगास (जासर) मछली ज्यादा संख्या में डाली गई है. उनका ये भी कहना है फंगास मछली पालने से यह फायदा है कि उसके साथ रोहू और कतला मछली पालने में कोई खर्च नहीं है. उन्होंने कहा कि मार्च महीने में मछली का बीज तालाब में डाला गया था जो अगले महीने अक्टूबर से निकलना शुरू हो जाएगा.

मछली पालक किसान अविनाश सिंह
मछली पालक किसान अविनाश सिंह

बिहार में मछली की अधिक खपत

बिहार में मछली की बहुत खपत है और उस हिसाब से ताजा मछली लोगों को मिल नहीं पाती है. आंध्र प्रदेश और बंगाल से मछली बिहार में आती है. ऐसी स्थिति में उनके तालाब में पाली गई मछलियां घर बैठे ही बिक जाती हैं. उनका कहना है कि उनकी मछलियां बाजार पहुंच ही नहीं पाती हैं. घर से सारी मछलियां ताजा होने की वजह से बिक जाती हैं और कीमत भी अच्छी मिल जाती है.

चार एकड़ में मछली पालन की योजना

अविनाश बताते हैं कि उनकी योजना है कि उनके तालाब से 12 महीने मछली निकल सके, इसकी तैयारी वे कर रहे हैं. वे ये भी बताते हैं कि अभी तो 17 कट्ठा में मछली का पालन किया जा रहा है, लेकिन अगले सीजन से तीन से चार एकड़ में मछली पालन करने की योजना है. अविनाश का मानना है कि परंपरागत खेती से किसान आगे नहीं बढ़ सकते. ऐसे में मछली पालन एक बहुत ही अच्छा व्यवसाय है. उन्होंने अन्य किसानों से अपील की है कि वे परंपरागत खेती को छोड़कर मछली पालन का कारोबार शुरू करें.

सरकार ने नहीं की कोई मदद

अविनाश कहते हैं कि राज्य सरकार के स्तर से किसी प्रकार की मदद नहीं मिली. उन्होंने कहा कि ट्रेनिंग करने को लेकर और अन्य जानकारी के लिए जिला मुख्यालय के मत्स्य विभाग के कार्यालय गए, लेकिन वहां से किसी प्रकार का सहयोग नहीं मिला. उन्होंने मत्स्य विभाग के अधिकारियों को पूरी जानकारी दी. इसके बावजूद उन लोगों ने किसी प्रकार की दिलचस्पी नहीं दिखाई. ऐसी स्थिति में अब वे किसी निजी संस्थान से मछली पालन का बड़े स्तर पर ट्रेनिंग लेंगे ताकि वे इस कारोबार में एक नजीर पेश कर सकें.

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