संडे हो या मंडे, रोज खाओ अंडे...हमने और आप सब ने ये स्लोगन खूब सुना होगा. नेशनल ऐग कोऑर्डिनेशन कमेटी (NECC) हेल्थ के नजरिए से टीवी पर इसका खूब प्रचार-प्रसार कराती थी. इसका एक बड़ा मकसद अंडे के इस्तेमाल को बढ़ावा देना था, ताकि लोगों में प्रोटीन की कमी न हो. लेकिन क्या आपको पता है कि ये स्लोगन किसने दिया था? दरअसल, जैसे दूध क्रांति के लिए वर्गीज कुरियन और खेती-किसानी के लिए एमएस स्वामीनाथन को याद किया जाता है, ठीक वैसे ही पोल्ट्री को नई ऊंचाई और एक पहचान दिलाने के लिए डॉ. बीवी राव को भी याद किया जाता है.
यही वो शख्स थे जिन्होंने NECC की स्थापना कर अंडे खाने की खपत को बढ़ाने और लोगों में प्रोटीन की कमी को पूरा करने के लिए ये स्लोगन दिया था. भारत सरकार ने बीवी राव को पदमश्री से सम्मानित किया था. आज उनका जन्मदिन है. आज उनकी बेटी अनुराधा देसाई NECC की अध्यक्ष हैं.आपको बता दें कि NECC का काम अंडे को बढ़ावा देने के साथ ही अंडे के दाम तय करना भी है. डॉ. राव पोल्ट्री फार्म में में तकनीक और साइंटिफिक तरीकों को शामिल करने के हिमायती थे.
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डॉ. राव की पहली नौकरी और जिंदगी का सफर 500 मुर्गियों की देखभाल से शुरू हुआ था. साल 1935 में जन्मे राव ने एनजी रंगा कृषि विश्वविद्यालय, आंध्र प्रदेश से एक डिप्लोमा कोर्स किया था. ये पोल्ट्री और डेयरी से जुड़ा कोर्स था. इसी डिप्लोमा के आधार पर उनकी पहली नौकरी 500 मुर्गियों की देखभाल करने पर लगी थी. यहीं से राव ने पोल्ट्री सेक्टर में एक ऐसा सफर तय किया जो उन्हें पदमश्री तक ले गया. भारत सरकार ने साल 1990 में राव को पदमश्री पुरस्कार से नवाजा था. डॉ. राव 26 जनवरी 1996 को इस दुनिया से चले गए, लेकिन उनका दिया स्लोगन हमेशा लोगों की जुबान पर रहता है. आज पोल्ट्री सेक्टर में वैनकोब, वैंकी और वीएच ग्रुप के नाम से उनकी कई कंपनियां चल रही हैं. देश ही नहीं विदेशों में भी उनके प्रोडक्ट और सर्विस की डिमांड रहती है.
पोल्ट्री से जुड़े जानकारों की मानें तो साल 1980 में अंडों के दाम बहुत कम हो गए थे. पोल्ट्री फार्मर्स के बीच खलबली मच गई थी. पोल्ट्री फार्म बंद करने तक की नौबत आ गई थी. इसी दौरान डॉ. राव ने देशभर के पोल्ट्री फार्मर को इकट्ठा किया. उनके साथ हर पहलू पर बात करने के बाद साल 1982 में NECC की स्थापना की. तब से लेकर आजतक तक NECC रोजाना कई राज्यों और शहरों में अंडे के दाम तय करती है. NECC के ही रेट पर या उसके आसपास अंडों की खरीद-फरोख्त होती है.
वो चाहते थे कि दूसरे सेक्टर की तरह से पोल्ट्री में भी तकनीक का इस्तेमाल करते हुए साइंटीफिक तरीके से पोल्ट्री फार्म चलाए जाएं. अपनी इस सोच को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने महाराष्ट्र में पुणे के पास एक शैक्षिक संस्थान की स्थापना की थी. जहां दूसरे कोर्स समेत पोल्ट्री से जुड़ी शिक्षा भी दी जाती है.
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