Blue Tongue: भेड़-बकरी के बच्चा देने की दर को कम कर देती है नीली जीभ बीमारी, ऐसे करें पहचान और बचाव 

Blue Tongue: भेड़-बकरी के बच्चा देने की दर को कम कर देती है नीली जीभ बीमारी, ऐसे करें पहचान और बचाव 

Blue Tongue Disease नीली जीभ संक्रमक बीमारी है इसलिए एक से दूसरी भेड़-बकरी में तेजी से फैलती है. मच्छरों की एक खास प्रजाति के चलते ये बीमारी भेड़-बकरियों में फैलती है. इस बीमारी की सबसे बड़ी खास बात ये है कि ये मच्छर एक साल या उससे कम उम्र वाली भेड़-बकरियों को ही अपना शि‍कार बनाता है. इसलिए ये जरूरी हो जाता है कि खासतौर पर बरसात के दिनों में कम उम्र वाले भेड़-बकरियों का खास ख्याल रखा जाए. 

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Blue Tongue: भेड़-बकरी के बच्चा देने की दर को कम कर देती है नीली जीभ बीमारी, ऐसे करें पहचान और बचाव बकरी का प्रतीकात्मक फोटो. फोटो क्रेडिट-किसान तक

Blue Tongue Disease भेड़-बकरियों की बहुत सारी बीमारियों के साथ ही एक नीली जीभ बीमारी भी है. एनिमल एक्सपर्ट के मुताबिक नीली जीभ (ब्ल्यू टंग) बीमारी कम होती है, लेकिन जब होती है तो तेजी से फैलती है. इतना ही नहीं एक बार नीली जीभ बीमारी होने पर ये भेड़-बकरियों की प्रजनन दर यानि की बच्चा देने की दर को कम कर देती है. दूध और मीट उत्पादन पर भी इसका असर पड़ता है. भेड़-बकरी पालन की लागत को बढ़ा देता है और मुनाफा कम हो जाता है. एनिमल एक्सपर्ट की मानें तो पशुओं का टीकाकरण कराकर नीली जीभ बीमारी को फैलने से रोका जा सकता है. 

इसके लिए तीन महनी की उम्र पर और साल में एक बार भेड़-बकरी का टीकाकरण कराना जरूरी होता है. वहीं मक्खी भगाने वाली चीजों का इस्तेमाल करके क्यूलिकोइड्स की आबादी को भी फैलने से रोका जा सकता है, जो नीली जीभ बीमारी को फैलाने का सबसे बड़ा कारण है. शाम के वक्त शेड में धुआं करके भी कीट की आवाजाही कम की जा सकती है. 

ये हैं नीली जीभ बीमारी के लक्षण

बुखार और निमोनिया का होना. 
उदास रहना और खरा ना खाना. 
नाक और मुंह की श्लेष्मा झिल्ली का लाल होना और सूजन आना.
नाक और मुंह से लगातार लार टपकना. 
होठों, मसूड़ों, मुख म्यूकोसा और जीभ पर सूजन आना. 
भेड़-बकरी की जीभ का नीला पड़ना.
गर्दन का एक ओर झुकना (टेढ़ी गर्दन).
पैरों में लंगड़ापन आने के चलते ठीक से ना चलना. 
 बॉडी पॉर्टस की कोरोनरी बैंड का लाल होना और सूजन आना. 
कंजंक्टिवल श्लेष्मा झिल्ली पर जमाव और पलकों का उलझना.
बदबूदार दस्त का करना. 
सांस लेने में परेशानी होना और खर्राटे लेना. 

नीली जीभ होने पर ऐसे कर सकते हैं इलाज 

बीमार पशुओं को अलग रखा जाना चाहिए.
बीमारी से प्रभावित पशुओं को सूरज की रोशनी से दूर रखें. 
पीडि़त पशु को पूरा आराम करने दें. 
पीडि़त पशुओं को चावल, रागी और कंबू से बना दलिया खिलाना चाहिए.
छालों वाली जगह पर ग्लिसरीन या एनिमल फैट लगाएं.
घरेलू उपचार के साथ पास के पशु चिकित्सक से सलाह लेते रहें. 
पीडि़त पशुओं को चराने के लिए ना ले जाएं. 
एक लीटर पानी में घोले गए पोटेशियम परमैंगनेट से दिन में दो-तीन बार पशुओं का मुंह धोएं.
पीडि़त पशु के टीकाकरण के लिए पशु चिकित्सक से सलाह लें. 

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