ग्लोबल वार्मिंग में मीथेन गैस उत्सर्जन भी एक बड़ी वजह है. एनर्जी प्रोडयूसर, ट्रैफिक और खेती-पशुपालन इसे बढ़ाने में पहले, दूसरे और तीसरे नंबर पर आते हैं. लेकिन हम बात कर रहे है पशुपालन की. छोटे जुगाली करने वाले पशुओं के मुकाबले गाय-भैंस से मीथेन गैस का उत्सर्जन ज्यादा होता है. पशुपालन में ये एक बड़ी परेशानी है. हालांकि इसे लेकर बहुत ही गंभीरता के साथ काम चल रहा है, लेकिन जरूरत है कि पशुओं के चारे में कुछ बदलाव किए जाएं.
क्योंकि एक्सपर्ट की मानें तो चारे में बदलाव करके ही गाय-भैंस से होने वाले मीथेन गैस के उत्सर्जन को कम किया जा सकता है. डॉ. रमानुज पांडे फाउंडर, गोकारिन ने इसे बारे में किसान तक से बात करते हुए बताया कि एनिमल फीड में मामूली सा लेकिन महत्वपूर्ण बदलाव कर मीथेन गैस उत्सर्जन को बहुत कम किया जा सकता है. साथ ही पशुपालकों की इनकम भी डबल हो जाएगी.
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डॉ. रमानुज पांडे ने बताया कि गाय-भैंस सबसे ज्यादा मुंह के रास्ते मीथेन गैस का उत्सर्जन करती हैं. वो जिस तरह का चारा खाती हैं उसे चबाने की पहली स्टेज के चलते ही मीथेन गैस ज्यादा बनती है. लेकिन रेड अल्गी से इसे कम किया जा सकता है. लेकिन रेड अल्गी को एक कट्टे फीड में कितना मिलाना है इसका भी बहुत ख्याल रखना पड़ता है. क्योंकि अगर फीड में रेड अल्गी ज्यादा हो गई तो फिर गाय-भैंस के दूध का उत्पादन कम हो जाएगा. जबकि हमे फीड भी ऐसा तैयार करना है जो दूध उत्पादन बढ़ाने वाला हो. गौरतलब रहे भारत में हर साल करीब 21.4 मिलियन टन मीथेन गैस का उत्पादन होता है.
रमानुज ने बताया कि जब पशुपालक रेड अल्गी वाला खास एनिमल फीड खरीदते हैं तो फीड के कट्टे में अंकों वाला एक कोड निकलता है. इस कोड को कंपनी के ऐप पर जाकर सबमिट करना होता है. इस अंकों वाले कोड से पता चल जाता है कि पशुपालक ने अपने पशुओं को कितना रेड अल्गी वाला फीड खिलाया जिससे मीथेन गैस का उत्सर्जन कम करने में मदद मिली. इसकी मदद से वाल्यूम में ये भी पता चल जाएगा कि पशुपालक ने कितनी गैस का उत्सर्जन होने से रोक लिया. उसी आधार पर पशुपालक को क्रेडिट नंबर मिल जाएंगे. इसके बाद पशुपालक इन नंबरों को बेचकर नकद मुनाफा भी कमा सकता है.
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