आजकल किसान अपनी आय को बढ़ाने के लिए अलग-अलग प्रकार के व्यवसायों की ओर रुख कर रहे हैं. इनमें बत्तख पालन एक नया और लाभकारी विकल्प हो सकता है. दरअसल भूमिहीन मजदूरों या छोटे किसानों के लिए यह सामान्य बात है, जो बत्तखें पालते हैं और झुंड के झुंड लेकर प्रतिदिन सुबह किसी तालाब की ओर जाते हैं. और शाम को लौट आते हैं, लेकिन बत्तख पालन का एक नया मॉडल इजात हुआ है. इस मॉडल का परीक्षण ओडिशा के संबलपुर, मयूरभंज, क्योंझर और खुर्दा जिलों में 150 किसानों के बीच किया गया है.
इसे अन्य स्थानों पर भी सफलतापूर्वक दोहराया जा रहा है. इस मॉडल में बत्तख को पॉलीथिन से बने गड्ढे में पाला जाता है, जिसमें किसानों को बहुत कम खर्चे में बेहतर मुनाफा मिलता है.
पॉलीथिन तकनीक के लिए पशुपालकों को आयताकार 1.5-2.0 फीट गहरा गड्ढा खोदना होता है. ये गड्ढा 5 से 6 फीट का होना चाहिए. फिर गड्ढे के अंदर किनारों पर 7-8 फीट चौड़ी मोटी पॉलिथीन शीट से पूरी तरह से ढक दिया जाता है. शीट के बाहरी किनारे को बड़े पत्थरों से दबा दिया जाता है, ताकि गड्ढे में पानी भरने पर शीट अंदर की ओर न फिसले. इस आकार के गड्ढे को भरने के लिए लगभग 300 लीटर पानी की आवश्यकता होती है. वहीं हर 10 दिन में एक बार लगभग आधा पानी बदलना पड़ता है.
बत्तखों के खानपान का खर्चा अधिक नहीं होता है. इसलिए बत्तख पालन में लागत बहुत कम आती है. अच्छी बात यह है कि अच्छी नस्ल की बत्तख एक साल में 300 से अधिक अंडे दे दती हैं. बत्तख पालन में कोई परेशानी नहीं होती है. यह जमीन और पानी दोनों जगह पर ही पाली जा सकती हैं.
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बत्तख के रहने के लिए उचित बंदोबस्त की जरूरत होती है. उनके रहने वाले वाले स्थान पर शेड होना चाहिए. ध्यान रहे कि यह थोड़े ऊंचे स्थान पर हो. शेड में हल्की धूप और हवा की व्यवस्था होनी चाहिए. शेड के आसपास पॉलिथीन वाली तालाब होनी चाहिए. बत्तख पालन के लिए ऐसी जगह का चयन किया जाना चाहिए, जहां अधिक शोर न हो. वहीं तापमान को सामान्य बनाए रखने के लिए एक 100 वॉल्ट का बिजली बल्ब लगाना चाहिए. इसके अलावा बत्तख घर के फर्श पर बिछाने के लिए सूखी चावल की भूसी या रेत का उपयोग करना चाहिए.
बत्तखों को सूखा खाना नहीं खिलाना चाहिए क्योंकि सूखा खाना उनके गले में फंस सकता है. ध्यान रहे कि खाना थोड़ा गीला जरूर हो. बत्तखों को चावल, मक्का, चोकर, घोंघे, मछली खाना बहुत पसंद होता है. यदि इनका पालन पॉलिथीन वाले मॉडल से कर रहे हैं तो वहां कीड़े मकोड़े खाकर बत्तख अपना पेट भर लेती हैं. इसके अलावा बत्तख का मैश चारा (गेहूं आधारित) को पानी में भिगोकर प्लास्टिक के कटोरे में चारे के रूप में रखना चाहिए. वहीं उनको प्रतिदिन स्वच्छ पेयजल देना चाहिए.
बत्तखों को 10 दिनों के बाद बत्तख घर के बाहर घूमने के लिए छोड़ दिया जाता है, ताकि उनको एक सीमित क्षेत्र के वातावरण का आदी बनाया जा सके, जहां एक कुंड में पानी और चारा उपलब्ध हो. 3-4 सप्ताह की उम्र के बत्तखों को पॉलिथीन तालाब में प्रवेश करने की अनुमति दी जाती है. वयस्क बत्तखों को बाहर चरने और तालाब का उपयोग करने की अनुमति दी जाती है, वहीं लगभग पांच महीने में मादाएं अंडे देना शुरू कर देती हैं. इस दौरान बत्तख घर के अंदर कुछ चौड़े मुंह वाले मिट्टी के बर्तन रखे जाते हैं. ताकी बत्तख अपने अंडे घर के अंदर ही दें, कहीं और नहीं.
पॉलीथिन का पूरा यूनिट लगाने पर 1000 रुपये का खर्च आता है. पॉलीथिन का पूरा खर्च 155 रुपये, 25 बत्तख के चूजे खरीदने के लिए 375 रुपये (एक का दाम 15 रुपये), 24 रुपये प्रति किलो की दर से 10 किलो का फीड कॉस्ट 240 रुपये और अन्य मद में 250 रुपये का खर्च आता है. इस तरह पूरा खर्च 1020 रुपये के आसपास होता है.
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