दूध-मीट हो या अंडा, तीनों के ही उत्पादन में भारत पहले से लेकर पांचवें स्थान पर है. डेयरी-पोल्ट्री सेक्टर का इंफ्रास्ट्रक्चर भी ऐसा है कि कभी भी उत्पादन को जरूरत के हिसाब से बढ़ाया जा सकता है. बावजूद इसके ना तो दूध-मीट, अंडे का एक्सपोर्ट बढ़ रहा है और ना ही पोल्ट्री-डेयरी फार्मर की इनकम बढ़ रही है. इसके पीछे जो सबसे बड़ी वजह बताई जाती है वो है उनको दी जाने वाली दवाईयां. वहीं इंडिया टुडे (किसान तक) के कार्यक्रम किसान सम्मि ट में बोलते हुए पोल्ट्री एक्सपर्ट ने दावा किया है कि पशु-पक्षियों को जरूरत के हिसाब से बीमारी में दवाई दी जाती है.
ग्रोथ बढ़ाने के लिए किसी तरह के एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. उल्टे मुर्गियों की सेहत अच्छी रखने के लिए उन्हें खाने में वो आइटम दिए जाते हैं जो इस देश में या तो ओलम्पि़यन खाते हैं या फिर मुर्गियां. अंडे-चिकन के लिए मुर्गियों को दवाई खिलाने की बात कोरी अफवाह है.
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किसान तक सम्मिट में आए इंडियन फेडरेशन ऑफ एनीमल हैल्थ कंपनीज के प्रेसिडेंट श्रीश निगम ने बताया कि सोशल मीडिया पर पोल्ट्री से जुड़ी अफवाहें शेयर होती रहती हैं. एंटीबायोटिक्स खिलाकर ज्यादा अंडे लिए जाते हैं और चिकन के लिए ग्रोथ बढ़ाई जाती है. जबकि ये बात सौ फीसद गलत है. एंटीबायोटिक्स खिलाने से मुर्गी ना तो ज्यादा अंडे देगी और ना ही उसका वजन बढ़ेगा. डेयरी में भी यही हाल है. एंटीबायोटिक्स खाने के बाद गाय-भैंस दूध भी ज्यादा नहीं देती हैं. जबकि हकीकत कुछ और है. मुर्गियों की सेहत अच्छी रखने और अंडे-चिकन की क्वालिटी बरकरार रखने के लिए उन्हें महंगे फीड एडिटिव्स खिलाए जाते हैं. ये एडिटिव्स देश में बनने के साथ ही विदेशों से भी मंगाए जाते हैं.
एनीमल एक्सपर्ट की मानें तो मुर्गियों और पशुओं को फीड एडिटिव्स खिलाने से पशुओं की जन्मदर बढ़ती है. फीड एडिटिव्स खिलाने से पशुओं की पोषण संबंधी समस्याएं, पाचन संबंधी समस्याएं, कमजोर हड्डियां, और तनावपूर्ण गर्भधारण जैसी समस्याएं दूर हो जाती हैं. हर्बल फीड एडिटिव्स से पशुओं का स्वास्थ्य अच्छा रहता है और ऊर्जा का लेवल बढ़ता है. इतना ही नहीं हर्बल फीड एडिटिव्स से पशुओं की बीमारी से लड़ने की क्षमता बढ़ती है. वहीं अब फीड एडिटिव्स में पौधों के अर्क का इस्तेमाल बढ़या जा रहा है.
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