इंटीग्रेटेड फॉर्मिंग सिस्टम से मीट क्वालिटी सुधरेगी, एक्सपोर्ट बढ़ेगा, एक फार्म में अंडा-दूध मिलेगा, जानिए डिटेल्स

इंटीग्रेटेड फॉर्मिंग सिस्टम से मीट क्वालिटी सुधरेगी, एक्सपोर्ट बढ़ेगा, एक फार्म में अंडा-दूध मिलेगा, जानिए डिटेल्स

एक्सपर्ट की मानें तो इंटीग्रेटेड फॉर्मिंग सिस्टम (आईएफएस) का एक बड़ा फायदा ये है कि बकरियों की मेंगनी (गोट मेन्योर) का इस्तेमाल कर उगाया गया चारा पूरी तरह से ऑर्गनिक होगा. और इसे जब बकरियां खाएंगी तो दूध ऑर्गनिक मिलेगा और बकरे खाएंगे तो उनके मीट में चारे वाले पेस्टी साइट के इफेक्ट नहीं आएंगे, जिससे बकरे का मीट एक्सपोर्ट करने में परेशानी नहीं होगी. 

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इंटीग्रेटेड फॉर्मिंग सिस्टम से मीट क्वालिटी सुधरेगी, एक्सपोर्ट बढ़ेगा,  एक फार्म में अंडा-दूध मिलेगा, जानिए डिटेल्सबकरियों का प्रतीकात्मक फोटो. फोटो क्रेडिट-किसान तक

एक ही फार्म में अंडा-दूध साथ मिले तो इससे अच्छी और क्या बात हो सकती है. मतलब आम के आम और गुठलियों के भी दाम. जी हां, कुछ ऐसा ही है. इंटीग्रेटेड फॉर्मिंग सिस्टम (आईएफएस). इस सिस्टम के तहत बकरियों और मुर्गियों को एक साथ पाला जाता है. इसका सबसे बड़ा फायदा ये है कि बहुत ही कम लागत पर मुर्गियों से अंडा मिलने लगता है. या फिर चिकन के लिए देसी मुर्गा कम लागत पर तैयार हो जाता है. आईएफएस को केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा ने तैयार किया है. 

सीआईआरजी अभी इसे पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर चला रहा है. हालांकि गांवों के लिए ये कोई नई बात नहीं है. ज्यादातर गांवों में आज भी गाय-भैंस, बकरी और मुर्गियों को संग पाला जाता है. सीआईआरजी के सांइटिस्ट का कहना है कि आईएफएस के एक नहीं कई फायदे हैं.  

ऐसे शुरू कर सकते हैं इंटीग्रेटेड फॉर्मिंग सिस्टम

सीआईआरजी के साइंटिस्ट डॉ. मोहम्मद आरिफ ने किसान तक को बताया कि आईएफएस सिस्ट्म के तहत एक ऐसा शेड तैयार किया जाता है जिसमे बकरी और मुर्गियां बराबर में साथ-साथ रहती हैं. दोनों के बीच फासले के तौर पर लोहे की एक जाली लगी होती है. जैसे ही बकरियां सुबह चरने के लिए चली जाती हैं तो जाली में लगा एक छोटी सा गेट खोल दिया जाता है. गेट खुलते ही मुर्गियां बकरियों की जगह पर आ जाती हैं. यहां जमीन पर या लोहे के बने स्टॉल में बकरियों का बचा हुआ चारा जिसे अब बकरियां नहीं खाएंगी पड़ा होता है. इसे मुर्गियां बड़े ही चाव से खाती हैं. 

इस हरे चारे में बरसीम, नीम, गूलर और उस तरह के आइटम भी हो सकते हैं जो बकरियों को कई तरह की बीमारी में फायदा पहुंचाते हैं. इस तरह से जो फिकने वाली चीज होती है उसे मुर्गियां खा लेती हैं. इस तरह से जो मुर्गी दिनभर में 110 ग्राम या फिर 130 ग्राम तक दाना खाती है तो इस सिस्टम के चलते 30 से 40 ग्राम तक दाने की लागत कम हो जाएगी. 

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मुर्गियों के लिए बकरी की मेंगनी से उगता है अजोला

डॉ. आरिफ ने बताया की पानी में उगने वाले अजोला में बड़ी मात्रा में प्रोटीन होता है. और अजोला को उगाने के लिए न तो कोई बहुत ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है और न ही बहुत ज्यादा लागत आती है. करना बस इतना है कि पानी का एक छोटा सा तालाब जैसा बना लें. इसका साइज मुर्गियों की संख्या पर भी निर्भर करता है. इसकी गहराई भी ना के बराबर ही होती है. इसमे थोड़ी सी मिट्टी डालने के साथ ही बकरियों की मेंगनी मिला दें. साइज के हिसाब से मिट्टी और मेंगनी का अनुपात भी अलग-अलग होगा. 

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इस अनुपात में रखी जाती हैं बकरियां और मुर्गियां 

आईएफएस के बारे में जानकारी देते हुए डॉ. आरिफ ने बताया कि इस सिस्टम के तहत आप एक बकरी पर पांच मुर्गी पाल सकते हैं. सीआईआरजी ने एक एकड़ के हिसाब से प्लान को तैयार किया है. इस प्लान के तहत आप बकरियों संग मुर्गी पालने के साथ ही बकरियों की मेंगनी से कम्पोकस्ट भी बना सकते हैं. इस कम्पोपस्ट का इस्तेमाल आप बकरियों का चारा उगाने में कर सकते हैं. ऐसा करने से आपको एकदम ऑर्गनिक चारा मिलेगा. अजोला भी उगा सकते हैं.   

 

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