भारत में कृषि और इससे जुड़ी गतिविधियों का स्वरूप लगातार बदल रहा है. एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, नॉन-क्रॉप सेक्टर जैसे कि पशुपालन, मत्स्य पालन और एक्वाकल्चर की हिस्सेदारी कृषि के कुल ग्रॉस वैल्यू ऑफ आउटपुट (GVO) में लगातार बढ़ रही है. वहीं, फसल क्षेत्र की हिस्सेदारी घट रही है, भले ही वह अब भी सबसे बड़ा योगदानकर्ता है.
वर्ष 2011-12 में फसल क्षेत्र का कुल GVO में हिस्सा 62.4% था, जो कि 2023-24 में घटकर 54.1% रह गया है. यह आंकड़ा यह दर्शाता है कि अब कृषि में नॉन-क्रॉप गतिविधियों की भूमिका पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है.
पशुपालन क्षेत्र ने GVO में अपनी हिस्सेदारी 25.6% से बढ़ाकर 31.2% कर ली है. इस क्षेत्र से कुल उत्पादन का मूल्य 2011-12 में ₹4.88 ट्रिलियन से बढ़कर 2023-24 में ₹9.19 ट्रिलियन हो गया है. यह कृषि क्षेत्र के सबसे तेज़ी से बढ़ने वाले हिस्सों में से एक बन गया है.
मत्स्य पालन और एक्वाकल्चर ने भी GVO में अपनी हिस्सेदारी 4.2% से बढ़ाकर लगभग 7% तक पहुंचा दी है. इसमें भी कुछ दिलचस्प बदलाव देखने को मिले हैं:
इनलैंड फिश की घटती हिस्सेदारी: इनलैंड मछलियों की हिस्सेदारी 57.7% से घटकर 50.2% हो गई है.
मरीन फिश की बढ़ती हिस्सेदारी: समुद्री मछलियों की हिस्सेदारी 42.3% से बढ़कर 49.8% हो गई है, जिससे समुद्री मत्स्य पालन का महत्व बढ़ा है.
जहाँ पहले आम फलों की GVO में सबसे आगे था, वहीं 2023-24 में केले ने आम को पीछे छोड़ दिया है. आम से जहां ₹461 अरब का उत्पादन हुआ, वहीं केले से ₹471 अरब का उत्पादन दर्ज किया गया.
कृषि और इससे जुड़ी गतिविधियों का कुल GVO (स्थिर कीमतों पर) 2011-12 में ₹19.08 ट्रिलियन था, जो 2023-24 में बढ़कर ₹29.49 ट्रिलियन हो गया. यह लगभग 55% की वृद्धि को दर्शाता है. फसल क्षेत्र अब भी सबसे बड़ा भागीदार है, जिसकी GVO 2023-24 में ₹15.95 ट्रिलियन रही और यह कुल GVO का 54.1% हिस्सा बनाता है.
यह साफ है कि भारत में कृषि अब केवल फसलों तक सीमित नहीं रही है. पशुपालन, मछली पालन और अन्य नॉन-क्रॉप सेक्टर्स कृषि की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. यह बदलाव ग्रामीण भारत की आय बढ़ाने, पोषण सुधारने और रोजगार के नए अवसर पैदा करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है.
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