केन्द्रीय पशुपालन और डेयरी मंत्रालय सोशल मीडिया पर जागरुकता अभियान चला रहा है. ये अभियान पशुपालक और बरसात से जुड़ा हुआ है. मंत्रालय का कहना है कि पशुपालक अपने बाड़े में या खेतों में रेन वॉटर हॉर्वेस्टिंग सिस्टम तैयार कर लें. टैंक या तालाब बनाकर भी ये काम किया जा सकता है. बरसात शुरू होने से पहले इस काम को कर लें. मंत्रालय का तर्क है कि ऐसा करने से पशुओं के लिए स्थायी पानी सप्लाई का रास्ता बन जाएगा. साथ ही गर्मी जैसे मौसम में पशुओं के लिए पीने का पानी सुरक्षित हो जाएगा.
पशुपालन हो या पोल्ट्री पालन, दोनों ही जगह पीने के पानी का बड़ा ही महत्व है. आपको सुनकर अटपटा लगेगा कि पशु उत्पादन का उत्पादन घटने और बढ़ने में पीने का पानी भी एक बड़ा कारण हैं. पीने का पानी अगर साफ नहीं है तो पशु को बीमार पड़ने और उत्पादन घटने में देर नहीं लगेगी. वहीं अगर साफ-सफाई के साथ पानी पिलाया जा रहा है, पानी में मौजूद टीडीएस को कंट्रोल किया जा रहा है तो पशु-पक्षियों के बीमार पड़ने का खतरा कम हो जाता है.
पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने सोशल मीडिया पर पशुओं को पीने के पानी से जुड़ी टिप्स देते हुए कहा है कि हर संभव कोशिश की जाए कि पशुओं को ताजा पानी ही पीने के लिए दें. जैसे सुबह उस बर्तन या जगह से पानी को खाली कर दें जहां पशु पानी पीता है. पानी खाली करने के बाद उस बर्तन और जगह की अच्छी तरह से सफाई कर दें. अगर पानी की उस जगह पर अल्गी और गंदगी लगी है तो उसे अच्छी तरह से साफ कर दें. जब ये लगे कि सफाई अच्छी तरह से हो गई है तो उसमे ताजा पानी भर दें. अगर सर्दियों का मौसम है तो एकदम ठंडा यानि खुले में रखा रात का पानी बिल्कुल भी न पिलाएं. नलकूप का निकला ताजा पानी ही पशुओं को पिलाएं.
जब पशुओं में पानी की कमी हो जाती है तो कई तरह के लक्षण से इसे पहचाना जा सकता है. जैसे पशुओं को भूख नहीं लगती है. सुस्ती और कमजोर हो जाना. पेशाव गाढ़ा होना, वजन कम होना, आंखें सूख जाती हैं, चमड़ी सूखी और खुरदरी हो जाती है और पशुओं का दूध उत्पादन भी कम हो जाता है. और सबसे बड़ी पहचान ये है कि जब हम पशु की चमड़ी को उंगलियों से पकड़कर ऊपर उठाते हैं तो वो थोड़ी देर से अपनी जगह पर वापस आती है.
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