Cow Care in Flood: बाढ़-बरसात में गायों की इन 8 परेशानियों पर रखें पैनी नजर, नहीं होंगी बीमार 

Cow Care in Flood: बाढ़-बरसात में गायों की इन 8 परेशानियों पर रखें पैनी नजर, नहीं होंगी बीमार 

Cow Care in Flood and Rainy Season गाय का दूध ही नहीं घी भी उत्तम माना जाता है. भैंस के मुकाबले गाय के दूध को कहीं ज्यादा गुणकारी बताया गया है. रेट के मामले में भी बात करें तो देसी घी गाय का सबसे ज्यादा महंगा बिकता है. देश के दूध कारोबार में गायों का खासा आर्थिक योगदान है. लेकिन बाढ़-बरसात के दौरान सबसे ज्यादा बीमारियां गायों को ही परेशान करती हैं. 

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Cow Care in Flood: बाढ़-बरसात में गायों की इन 8 परेशानियों पर रखें पैनी नजर, नहीं होंगी बीमार यमुना का रौद्र रूप

Cow Care in Flood and Rainy Season देशभर में भैंसों से ज्यादा गायों की संख्या है. भारत में गायों का दूध के अलावा खेती के काम में बहुत ही महत्व है. देश में गायों की 50 से ज्यादा रजिस्टर्ड नस्ल हैं. साथ ही सभी राज्यों में गायों की कुछ ऐसी भी नस्ल हैं जो रजिस्टर्ड नहीं हैं. इतना ही नहीं देश के कुल दूध उत्पादन में गायों की हिस्सेदारी 50 फीसद है. इसमे विदेशी नस्ल की वो गाय शामिल नहीं हैं जिन्हें जर्सी और होस्टीन फ्रिसियन कहा जाता है. लेकिन गाय देसी नस्ल की हो या विदेशी, उन्हें बाढ़-बरसात के दौरान और बाद में सबसे ज्यादा बीमारियां परेशानी करती हैं. लेकिन, अगर उनकी इन परेशानियों पर लगातार नजर रखी जाए तो कुछ उपाय अपनाकर उन्हें कंट्रोल किया जा सकता है. 

बाढ़-बरसात में गायों की बीमारी और उनके लक्षण 

गलघोंटू बुखार 

सांस लेने में दिक्कत, गले में सूजन होती है. एंटीबायोटिक दवा और इंजेक्शन इलाज है. साथ ही बरसात के मौसम से पहले वैक्सीनेशन कराना चाहिए. 

थनैला    

थनों में दिक्कत, दूध में छर्रे आना, थनों में सूजन इस बीमारी के लक्षण है. अलग-अलग दवाएं दी जाती हैं. पशु के दूध और थन की समय-समय पर जांच करते रहना चाहिए. 

लंगड़ा बुखार    

106-107 डिग्री तक बुखार होना, पशु के पैरों में सूजन, पशु का लंगड़ा कर चलना. बरसात से पहले वैक्सीनेशन करवाना और बीमार पशुओं को हेल्दी पशुओं से दूर रखना.

मिल्क फीवर    

शरीर का तापमान कम हो जाना, सांस लेने में परेशानी होना. प्रसव के 15 दिन तक पूरा दूध न निकालें और पशु को कैल्शियम से भरा आहार और सप्लीमेंट दें.

खुरपका मुहंपका    

मुंह और खुर में दाने होते हैं, दाने छाला बनकर फट जाते हैं और घाव गहरा हो जाता है. फौरन ही डॉक्टर को दिखाना चाहिए    बरसात से पहले टीकाकरण कराना चाहिए और बारिश में पशु को खुले में चरने नहीं देना चाहिए.

प्लीहा (एंथ्रेक्स)    

पेशाब और गोबर में खून आना, तेज बुखार होना. पशु चिकित्सक से संपर्क कर स्थिति के हिसाब से उपचार करना चाहिए. इस रोग से बचाने के लिए वक्त रहते टीकाकरण करा लेना चाहिए.

यक्ष्मा (टीबी)    

पशु सुस्त हो जाता है, सूखी खांसी और नाक से खून आने लगता है. रोग के लक्षण दिखते ही पशु को अस्पताल में भर्ती कराना चाहिए. पशु के आहार का खास ध्यान रखना चाहिए.

संक्रामक गर्भपात    

पांच-छह महीने में योनिमुख से तरल गिरता है, बच्चे होने के लक्षण दिखते हैं, लेकिन गर्भपात हो जाता है. पशु की ठीक से सफाई करनी चाहिए, डीवॉर्मिंग करनी चाहिए और पशु चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए. छह से आठ महीने के पशु को ब्रुसेला का टीका लगवाना चाहिए. 

अफारा    

पशु का बायां पेट फूल जाता है, पेट को थपथपाने पर ढोलक की आवाज आती है.

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